
नई दिल्ली। यह कांग्रेस की राजनीतिक अपरिपक्वता नहीं तो और क्या है कि वो हमेशा ही ऐसे फैसले लेती है, जो बीजेपी को उन पर हमला बोलने का मौका देती है और हमला भी ऐसा जिसके दूरगामी असर होते हैं। अब आप बीते दिनों राहुल गांधी के तवांग झड़प पर दिए बयान को ही देख लीजिए। उस बयान में जिन अल्फाजों का इस्तेमाल किया गया, उसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि राहुल गांधी सियासी मोर्चे पर पूर्णत: अपरिपक्व हैं। अगर उनका यह रवैया बदस्तूर जारी रहा तो बीजेपी उनके विरोध में इसी तरह माहौल बनाती रहेगी। जिसका नतीजा होगा कि अगले वर्ष होने जा रहे विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनाव सहित लोकसभा चुनाव में पार्टी को हार मुंह देखना होगा। ध्यान रहे, विगत लोकसभा चुनाव राहुल गांधी की अगुवाई में लड़ा गया था, लेकिन पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा, लिहाजा राहुल ने पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए ना महज इस्तीफा दिया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि अब अध्यक्ष पद पर गैर-गांधी परिवार के सदस्य को ही बैठाया जाएगा।
हालांकि, काफी दिनों तक पार्टी अध्यक्षविहिन रही। इसके बाद सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन पार्टी की दुश्वारियां यथावत जारी रही। अब जब लगा कि पार्टी को स्थायी अध्यक्ष की दरकार है, तो मल्लिकार्जुन खरगे को आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व राष्ट्रीय अध्य़क्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है, लेकिन उन्हें गांधी परिवार का रिमोट कंट्रोल बताया जाता है। ध्यान रहे, गत दिनों राष्ट्रीय अध्य़क्ष पद के लिए हुए चुनाव में खरगे के प्रतिद्वंदी के रूप में शशि थरूर मैदान में थे। थरूर कांग्रेस जी-20 नेताओं के सदस्य रहे हैं। जी-20 कांग्रेस नेताओं का वो गुट है, जो हमेशा ही पार्टी शीर्ष नेतृत्व की आलोचना करता हुआ आया है।
अब इस गुट के अधिकांश नेता पार्टी छोड़कर दूसरा ठिकाना बना चुके हैं और जो रह गए हैं, वो अब पहले की तरह ज्यादा मुखर नहीं रहे। सिब्बल जहां सपा का दामन थाम चुके हैं, तो वहीं गुलाम नबी आजाद खुद की पार्टी का गठन कर चुके हैं। माना जा रहा है कि आगामी जम्मू-कश्मीर चुनाव में उनकी पार्टी मैदान में उतरेगी। उधर, राजस्थान में भी सियासी परस्थिति संवेदनशील ही हैं। कई मौकों पर पायलट और गहलोत के बीच रार परिलक्षित होती रहती है। हालांकि, गत दिनों राहुल ने दोनों नेताओं को पार्टी के लिए मूल्यवान बताकर दोनों को एकजुट करने की कोशिश की थी, जिसके बाद दोनों नेता एक साथ ना महज मंच साझा करते दिखें, बल्कि पायलट ने बाकायदा अशोक गहलोत के पैर तक छूए। उधर, हिमाचल में भी पार्टी की स्थिति डांवाडोल ही है। सरकार गठन की प्रक्रिया के दौरान यह देखने को भी मिला। जिस तरह प्रतिभा गुट और सुक्खू गुट में नोकझोंक दिखी, उससे जाहिर है कि अंदरखाने स्थिति दुरुस्त नहीं है।
अब इन तमाम सियासी दुश्वारियों के बावजूद भी ना जाने क्यों कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ऐसे फैसले लेता है, जो ना महज उसे बीजेपी के निशाने पर ला देती है, बल्कि उसकी प्रासंगिकता पर भी सवाल खड़े कर देती है। इस बीच शीर्ष नेतृत्व ने जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी एक ऐसे शख्स को सौंपी है, जिस पर आतंकवादी संगठन से गहरे संबंध के आरोप लगते रहे हैं। बता दें, पार्टी ने विकार रसूल वानी को जम्मू-कश्मीर कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी है। जिसे लेकर कांग्रेस सवालों के घेरे में आ चुकी है। उधर, बीजेपी ने भी विकार को अध्य़क्ष पद की जिम्मेदारी सौंपे जाने को लेकर कांग्रेस पर करारा हमला बोला है। बीजेपी के आईटी प्रभारी अमित मालवीय ने ट्वीट कर कहा कि, एक ओर राहुल गांधी चीनी शासन की भाषा बोलते हैं, भारतीय सेना का उपहास करते हैं, दूसरी ओर विकार रसूल वानी को जम्मू-कश्मीर कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त करते हैं, जिन्हें लश्कर से गहरे संबंध रखने के लिए जाना जाता है।
On the one hand Rahul Gandhi speaks the language of Chinese regime, derides Indian Army, on the other appoints Vikar Rasool Wani as the president of J&K Congress, who is known to have deep links with the LeT.
Congress’s nexus with both Pakistan and China can’t get more obvious… pic.twitter.com/Zl2g4WrJyf
— Amit Malviya (@amitmalviya) December 18, 2022
पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ कांग्रेस की सांठगांठ इससे ज्यादा स्पष्ट नहीं हो सकती। ध्यान रहे, गत दिनों राहुल गांधी ने राजधानी जयपुर में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान तवांग में चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब देने वाले भारतीय सैनिकों के शौर्य का अपमान किया था। राहुल ने कहा था कि चीन हमारे सैनिकों को रोज पीट रहा है, जबकि सच्चाई इससे अलग है। तवांग झड़प में चीन के 30 जबकि भारत के 4 सैनिक घायल हुए थे। सेना ने खुद अपनी प्रतिक्रिया में कहा था कि झड़प में चीन को ज्यादा नुकसान हुआ है। बाद में चीन ने प्रतिक्रिया में कहा कि स्थिति नियंत्रित है, लेकिन इसके बावजूद भी राहुल गांधी द्वारा भारतीय सैनिकों का अपमान करना सियासी अपरिपक्वता ही है। राहुल के बयान को लेकर पार्टी अभी –भी सवालों के घेरे में है। बता दें, कांग्रेस पर पहले से ही पाकिस्तान की भाषा बोलने के आरोप लगते रहे हैं और अब राहल द्वारा उपरोक्त बयान देने के बाद कांग्रेस पर चीन की भाषा बोलने के आरोप लग रहे हैं।
चलिए अब विकार के मुद्दे पर आते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक विकार रसूल वानी ने साल 2005 के नगर निकाय चुनाव और 2008 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के लिए लश्कर के डिविजनल कमांडर अब्दुल हमीद की मदद की ली थी। हालांकि, बाद में अब्दुल हामिद पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था। उसके पास मोहम्मद शरीफ नाम का फर्जी आईडी कार्ड भी बरामद हुआ था। जिसमें उसे बनिहाल कांग्रेस कमेटी का एक्टिव मेंबर के रूप में दिखाया गया था। इस कार्ड में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष विकार रसूल वानी के हस्ताक्षर भी थे। विकार अभी कांग्रेस से विधायक है। उधर, इस पूरे मामले को लेकर राहुल गांधी को बाकायदा पत्र भी लिखा गया है, जिसमें विकार रसूल वानी पर लगे सभी आरोप विस्तारपूर्वक दर्ज हैं। लेकिन, राहुल गांधी द्वारा पत्र पर कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, लेकिन कांग्रेस विकार को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपे जाने को लेकर सवालों के घेरे में आ चुकी है।