
नई दिल्ली। आगामी 28 मई को नवनिर्मित संसद भवन का उद्घाटन पीएम मोदी करने जा रहे हैं। इस मौके को ऐतिहासिक और अभूतपूर्व बनाने की पूरी तैयारियां की जा चुकी हैं। आजादी के सात दशकों के बाद हमारे द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि भारतीयों के कर से निर्मित संसद भवन में बैठेंगे, जो कि हम सभी के लिए गर्व की बात है, लेकिन कुछ विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। जी हां… कुछ ही कर रहे हैं, क्योंकि बहुत से विपक्षियों ने इस पूरे मसले पर केंद्र का पक्ष भी लिया है। आखिर इस विरोध की वजह क्या है? आगे हम आपको इसके बारे में सबकुछ विस्तार से बताएंगे, लेकिन उससे पहले हम आपको सेंगोल के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल, नए संसद भवन के उद्धाटन के साथ-साथ सेंगोल को लेकर सियासी घमासान छिड़ गया है। चलिए, पहले आप यह जान लीजिए कि सेंगोल क्या है ?
क्या है सेंगोल ?
तो ये उन दिनों की बात है, जब देश में अंग्रेजों और मुगलों का राज नहीं, बल्कि हिंदू राजाओं का शासन हुआ करता था। देश विभिन्न रजवाड़ों में बंटा हुआ था। हर रजवाड़ों के अपने अलग-अलग राजा हुआ करते थे। एक ऐसा ही राजवंश था, जिसका इतिहास में अमूल्य योगदान रहा है। उस राजवंश का नाम है चोल। जी हां… आपको बता दें कि सेंगोल की शुरुआत चोल राजवंश से हुई थी। दरअसल, राजवंश के दौरान सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में एक राजा दूसरे राजा को सेंगोल सौंपता था। इसे एक उदारहण द्वारा समझिए।
मान लीजिए, अभी किसी अमूक राज्य में A का शासन चलता है। उस राज्य के रहने वाले लोग A के अधीन शासित होते हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद उस राज्य में B अपना शासन स्थापित कर लेता है, तो A और B के बीच सत्ता के हस्तांतरण के रूप में यानी की पॉवर ऑफ ट्रांसफर को प्रकट करने के लिए A , B को सेंगोल सौंप देता है, जो कि इस बात का प्रतीक है कि अब इस राज्य में A का नहीं, बल्कि B का शासन है। दूसरे शब्दों में कहें कि सेंगोल का अर्थ ही अधिकार, शक्ति और कर्तव्यनिष्ठा माना जाता है और जब उन दिनों कोई राजा किसी दूसरे राजा को सेंगोल सौंपता था, तो यह इस बात का प्रतीक होता था कि अब उसने अपना राजपाठ दूसरे को सौंप दिया। इतिहास बताता है कि यह प्रथा चोल सहित दक्षिण के कुछ राजवंश में ही था, जो कि अब विलुप्त हो चुकी है, लेकिन जब से नए संसद भवन को लेकर विपक्षियों ने एकजुट होकर केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोला है, तब से यकायक यह चर्चा में आ गया है।
अब क्यों चर्चा में आया सेंगोल?
दरअसल, बीते बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रेस कांफ्रेंस किया था, जिसमें उन्होंने यह ऐलान किया था कि नए संसद भवन के लोकसभा स्पीकर के बगल में सेंगोल रखा जाएगा, जो कि इस बात का प्रतीक होगा कि अब हम अपनी संस्कृतियों की ओर लौट रहे हैं, लेकिन इस पर सियासत शुरू हो चुकी है। बता दें कि कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस सेंगोल को बोगस यानी की बेकार बता दिया है, जिस पर थिरुववदुथुरै अधीनम की प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता द्वारा सेंगोल पर सवाल उठाने पर नाराजगी जाहिर की है। आखिर कांग्रेस नेता इस पर ऐसा क्या कह दिया था जिससे खफा हो गए थे थिरुववदुथुरै अधीनम? आइए , आगे जानते हैं।
कांग्रेस नेता ने ऐसा क्या कह दिया था
दरअसल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कहा कि क्या यह कोई आश्चर्य की बात है कि नई संसद को व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के झूठे आख्यानों से पवित्र किया जा रहा है? अधिकतम दावों, न्यूनतम साक्ष्यों के साथ भाजपा/आरएसएस के ढोंगियों का एक बार फिर से पर्दाफाश हो गया है।
1. तत्कालीन मद्रास प्रांत में एक धार्मिक प्रतिष्ठान द्वारा कल्पना की गई और मद्रास शहर में तैयार की गई एक राजसी राजदंड वास्तव में अगस्त 1947 में नेहरू को प्रस्तुत किया गया था।
2. माउंटबेटन, राजाजी और नेहरू द्वारा इस राजदंड को भारत में ब्रिटिश सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में वर्णित करने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं है। इस आशय के सभी दावे सादे और सरल हैं — बोगस। पूरी तरह से और पूरी तरह से कुछ लोगों के दिमाग में निर्मित और व्हाट्सएप में फैल गया, और अब मीडिया में ढोल पीटने वालों के लिए। त्रुटिहीन साख वाले दो बेहतरीन राजाजी विद्वानों ने आश्चर्य व्यक्त किया है।
3. राजदंड को बाद में इलाहाबाद संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखा गया था। 14 दिसंबर, 1947 को नेहरू ने वहां जो कुछ कहा, वह सार्वजनिक रिकॉर्ड का मामला है, भले ही लेबल कुछ भी कहें।
4. राजदंड का इस्तेमाल अब पीएम और उनके ढोल-नगाड़े तमिलनाडु में अपने राजनीतिक फायदे के लिए कर रहे हैं। यह इस ब्रिगेड की विशेषता है जो अपने विकृत उद्देश्यों के अनुरूप तथ्यों को उलझाती है।
Is it any surprise that the new Parliament is being consecrated with typically false narratives from the WhatsApp University? The BJP/RSS Distorians stand exposed yet again with Maximum Claims, Minimum Evidence.
1. A majestic sceptre conceived of by a religious establishment in… pic.twitter.com/UXoqUB5OkC
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) May 26, 2023
थिरुववदुथुरै अधीनम तीखी प्रतिक्रिया
वहीं, कांग्रेस के इस रुख पर थिरुववदुथुरै की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। जिसमें उन्होंने फेसबुक पर इस संदर्भ में बाकायदा एक पोस्ट लिखा है। अपने पोस्ट में उन्होंने कांग्रेस के इस रुख पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि मुझे यह जानकर अत्याधिक पीड़ा हो रही है कि आखिर क्यों कांग्रेस द्वारा इस ऐतिहासिक प्रथा पर सवाल उठाया जा रहा है। विज्ञप्ति में कहा गया, “यह हमारे अपने रिकॉर्ड सहित कई स्रोतों द्वारा अच्छी तरह से प्रलेखित किया गया है, कि हमें सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में एक अनुष्ठान करने के लिए आमंत्रित किया गया था।”
तिरुवदुथुरै अधीनम ने सी राजगोपालाचारी के निमंत्रण को “सम्मानित” किया और “हमने एक सेंगोल बनवाया।” रिलीज में आगे कहा गया, सेनगोल लॉर्ड माउंटबेटन को दिया गया था, “इसे उनसे वापस मिला और एक विस्तृत अनुष्ठान में पंडित जवाहरलाल नेहरू को प्रस्तुत किया।” “यह कहना कि ऐसी घटनाएँ फर्जी या झूठी हैं, हमारी विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाने की कोशिश की जा रही है, और राजनीति के लिए सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सेंगोल के उपयोग के महत्व को कम करने की कोशिश की जा रही है, यह बहुत ही दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
पंडित नेहरू से क्या है इसका कनेक्शन ?
दरअसल, देश की आजादी के बाद अंग्रेजों के आखिरी वॉयसराय लॉर्ड माउटबेंटन ने पंडित नेहरू से सवाल किया था कि आखिर सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में क्या किया जाए? तो इस संदर्भ में पंडित नेहरू ने राजागोपालाचारी से सुझावा मांगा कि आखिर सत्ता हस्तातंरण के लिए क्या किया जाए ? इसके लिए किन प्रतीकों का सहारा लिया जाए? तो इस पर राजागोपालचारी ने पंडित नेहरू को सुझाव दिया कि वह चोल राजवंश की तरह एक सेंगोल के जरिए अंग्रेज और अपने बीच सत्ता का हस्तांतरण करें। राजागोपालचारी के इस सुझाव पर पंडित नेहरू ने सहमति व्यक्त कर दी। इसके बाद राजागोपालचारी को यह जिम्मेदारी दी गई कि वो सेंगोल का निर्माण कराए तो इसके लिए उन्होंने थिरुवावादुथुरई अधीनम मठ के मठाधीश से संपर्क किया और उन्हें सेंगोल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी।
कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अंग्रेज और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के बीच सत्ता का हस्तांतरण कराने के लिए एक छोटा सा कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिसमें कुछ पुरोहितों ने भी हिस्सा लिया था। पुरोहितों ने पहले अंग्रेज को सेंगोल सौंपा। इसके बाद उस पर गंगा जल छिड़कर वापस उसे पंडित नेहरू को सौंप दिया। यह अनुष्ठान 14-15 अगस्त की मध्यरात्रि के समय आयोजित एक कार्यक्रम में संपन्न की कई थी, जिसमें कई लोगों ने हिस्सा लिया था। यह कार्यक्रम में अंग्रेजों और पंडित नेहरू के बीच सत्ता का हस्तांतरण का प्रतीक था। इसलिए आज जब कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाया, तो थिरुवावादुथुरई अधीनम मठ ने नाराजगी जाहिर की है, क्योंकि सेंगोल और दक्षिण भारत का आपस में गहरा जुड़ाव है।