
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम फैसले में कहा है कि अगर सोशल मीडिया या डिजिटल माध्यम के जरिए आतंकवाद की घटना करने का उकसावा दिया जाता है, तो संबंधित व्यक्ति पर यूएपीए कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस सुब्रहमण्यम प्रसाद और जस्टिस हरीश विद्यनाथन शंकर की बेंच ने इस आधार पर अर्सलान फिरोज अहंगर की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। अर्सलान फिरोज अहंगर पर आरोप है कि वो सोशल मीडिया के जरिए आतंकवाद संबंधी विचारधारा फैला रहा था।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं करने वाले द रेजिस्टेंस फोर्स (टीआरएफ) से संबंधों के आरोप में अर्सलान को गिरफ्तार किया था। अर्सलान पर इंटरनेट के जरिए भारत विरोधी भड़काऊ जानकारी साझा करने का आरोप एनआईए ने लगाया है। एनआईए के मुताबिक अर्सलान फिरोज अहंगर युवाओं को भड़काकर कट्टरपंथी और आतंकी संगठनों में उनको लाने की कोशिश कर रहा था। दिल्ली हाईकोर्ट ने यूएपीए कानून की धारा 18 का उल्लेख कर कहा कि अगर कोई डिजिटल माध्यमों से आतंकवाद की विचारधारा को फैलाने का काम करता है, तो उसके खिलाफ मामला बनता है। कोर्ट ने कहा कि यूएपीए की धारा 18 सिर्फ भौतिक रूप से देश के खिलाफ गतिविधियों पर ही नहीं लगती।
कोर्ट में एनआईए ने सबूत पेश किए कि अहंगर किस तरह आतंकियों के फोटो प्रसारित कर लोगों को दहशतगर्दी के प्रति खींचने का काम कर रहा था। कोर्ट ने कहा कि यूएपीए के तहत ऐसा काम अपराध की श्रेणी में आता है। दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि अहंगर चार साल से जेल में है, लेकिन अदालत उसे जमानत नहीं देना चाहती। कोर्ट ने कहा कि यूएपीए के तहत जमानत की शर्तों को अर्सलान फिरोज अहंगर पूरा नहीं करता। कोर्ट ने कहा कि अगर ट्रायल में देरी होती है, तो अहंगर एक बार फिर उसे आधार बनाकर जमानत की अर्जी दे सकता है। एनआईए के मुताबिक अहंगर ने सोशल मीडिया पर गजवत-उल-हिंद और शाइकू नाइकू जैसे ग्रुप बनाए थे। साथ ही दर्जनों जी-मेल आईडी भी उसने तैयार की थी। इनके जरिए ही वो आतंकी विचारधारा का प्रसार करता था।