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Banke Bihari Temple: इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से मथुरा के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर को जमीन मिली वापस, मुलायम सिंह की सपा सरकार के दौरान कब्रिस्तान बताया गया था

मथुरा के प्रसिद्ध और प्राचीन बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में शुक्रवार को बड़ा मुकदमा जीत लिया। बांके बिहारी मंदिर की जमीन के गाटा को कब्रिस्तान के तौर पर दर्ज कर दिया गया था। हाईकोर्ट ने छाता तहसील एसडीएम को 1 महीने में मंदिर का नाम दस्तावेजों में दर्ज करने का आदेश दिया है।

प्रयागराज। मथुरा के प्रसिद्ध और प्राचीन बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में शुक्रवार को बड़ा मुकदमा जीत लिया। बांके बिहारी मंदिर की जमीन के गाटा को कब्रिस्तान के तौर पर दर्ज कर दिया गया था। हाईकोर्ट के जज सौरभ श्रीवास्तव ने छाता तहसील के एसडीएम को 1 महीने में बांके बिहारी मंदिर का नाम सरकारी दस्तावेजों में दर्ज करने का आदेश दिया है। साल 2004 में यूपी में मुलायम सिंह यादव की सपा सरकार के दौरान उनकी पार्टी के यूथ ब्रिगेड के नेता भोला खान पठान ने सीएम को अर्जी दी थी। इस अर्जी पर तब के मुख्य सचिव ने आदेश दिया था और बांके बिहारी मंदिर की जमीन को कब्रिस्तान के तौर पर सरकारी दस्तावेजों में दर्ज कर दिया गया। मंदिर ट्रस्ट ने इसके खिलाफ कई बार शिकायत की, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई। यहां तक कि बाद में बांके बिहारी मंदिर की जमीन को पुरानी आबादी तक दिखा दिया गया।

letter of bhola khan pathan
बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट का आरोप है कि सपा नेता भोला खान पठान की इस चिट्ठी के बाद ही मंदिर की जमीन को सरकारी दस्तावेजों में कब्रिस्तान और फिर पुरानी आबादी बताया गया।

बांके बिहारी मंदिर की जमीन का गाटा संख्या 1081 पहले बांके बिहारी महाराज के नाम से सरकारी दस्तावेजों में था। मथुरा की छाता तहसील के शाहपुर गांव में ये गाटा आता है। ये मामला वक्फ बोर्ड और दूसरे विभागों तक गया। एक 8 सदस्यीय जांच कमेटी बनी। जिसकी रिपोर्ट में था कि मनमाने तरीके से बांके बिहारी मंदिर की जमीन को कब्रिस्तान में दर्ज किया गया। फिर भी मंदिर के नाम जमीन नहीं हुई। इस पर बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट ने पिछले साल इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दी थी। अगस्त में हाईकोर्ट ने छाता तहसील की एसडीएम और अफसरों को तलब भी किया था।

allahabad high court

बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट की तरफ से शुक्रवार को ही हाईकोर्ट में संशोधित अर्जी दी गई थी। इस संशोधित अर्जी में आरोप लगाया गया था कि सियासी दबाव में बांके बिहारी मंदिर की जमीन को कब्रिस्तान दिखाया गया। इस अर्जी को कोर्ट ने मंजूर करते हुए सुनवाई कर छाता एसडीएम को कब्रिस्तान की जगह बांके बिहारी मंदिर के नाम से सरकारी दस्तावेजों में दर्ज करने के आदेश दिए।