नई दिल्ली। कच्चातिवु द्वीप को लेकर देश में सियासत तेज हो गई है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने आज इस मुद्दे को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। कच्चातिवु द्वीप को लेकर भारत और श्रीलंका के बीच 1974 में हुए समझौते पर बात की। उन्होंने इस मामले पर तत्कालीन कांग्रेस सरकार और पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू पर निशाना साधते हुए कहा कि जनता को जानने का हक है कि कच्चातिवु को लेकर आखिर क्या हुआ था?
#WATCH | On Katchatheevu issue, EAM Dr S Jaishankar says, “We know who did this, what we don’t know is who hid it…We believe that the public has the right to know how did this situation come up.” pic.twitter.com/rmzRUEmJRF
— ANI (@ANI) April 1, 2024
जयशंकर ने कहा कि ये कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जो अचानक से चर्चा में आ गया है। ये दशकों पुराना मुद्दा है। इस मामले पर कांग्रेस और डीएमके ने इस तरह बर्ताव किया है, जैसे उनकी इसे लेकर कोई जिम्मेदारी नहीं है। इसका सबसे अधिक असर मछुआरों पर पड़ा है। उन्होंने कहा कि इस मामले को उस समय भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अधिक महत्व नहीं दिया था। पंडित नेहरू को इसकी कोई चिंता नहीं थी, उन्होंने इसे खास तवज्जो नहीं दी। वह चाहते थे कि जितनी जल्दी हो सके, इससे छुटकारा मिल जाए। जयशंकर ने कहा कि बीते 20 सालों में श्रीलंका ने 6184 भारतीय मछुआरों को डिटेन किया है और 1175 भारतीय मछुआरों की नौकाओं को जब्त की है। बीते पांच साल में विभिन्न पार्टियों ने कच्चातिवु और मछुआरों के मामले को बार-बार संसद में उठाया है। इस पर संसद में काफी चर्चा हुई है। मैंने तमिलनाडु के मौजूदा मुख्यमंत्री को 21 बार इस मुद्दे पर जवाब दिया है।
#WATCH | EAM Dr S Jaishankar addresses a press conference explaining the relevance of the Katchatheevu issue today
“in 1974, India & Sri Lanka concluded an agreement where they drew a maritime boundary, and in drawing the maritime boundary Katchatheevu was put on the Srilankan… pic.twitter.com/MHpzQWsMAZ
— ANI (@ANI) April 1, 2024
कांग्रेस और डीएमके दोनों पार्टियों ने इस मुद्दे को इस तरह लिया है, जैसे उनकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं है। जयशंकर ने कहा कि 1974 में भारत और श्रीलंका ने मैरीटाइम समझौता किया था, जिसमें कच्चातिवु श्रीलंका को दे दिया गया। इस समझौते के तहत कच्चातिवु भारतीय मछुआरे जा सकेंगे और इसके लिए किसी डॉक्यूमेंट की जरूरत नहीं होगी। तब के विदेश मंत्री ने संसद को बताया था कि समझौते के तहत इस द्वीप पर भारत के मछुआरे जा सकेंगे और आसपास के समुद्री जल में मूवमेंट हो सकेगा। मगर दो साल बाद के समझौते में भारत और उसके मछुआरों से उस द्वीप और आसपास के एरिया से अधिकार ले लिए गए।