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Chandrayaan 3: सूरज की रोशनी से चमका चांद, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को फिर चालू करने की कोशिश करेंगे इसरो वैज्ञानिक, अगर मिली सफलता तो रचेंगे एक और इतिहास

चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर को इसरो के वैज्ञानिकों ने चांद की सतह पर 23 अगस्त की शाम 6 बजे सफलता से उतारा था। फिर विक्रम लैंडर से प्रज्ञान रोवर बाहर आया। प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर घूम-घूमकर अपने यंत्रों से तमाम प्रयोग और खोज करता रहा। प्रज्ञान रोवर 10 दिन में चांद की सतह पर 100 मीटर चला था।

बेंगलुरु। भारत के चंद्रयान-3 अभियान के लिए फिर अहम मौका आ गया है। चांद पर बुधवार से फिर सूरज की किरणें पड़ने लगी हैं। सूरज की रोशनी से चांद का दक्षिणी ध्रुव फिर उजाले से भर गया है। ऐसे में इसरो के वैज्ञानिक कोशिश करने वाले हैं कि चांद पर रात होने के दौरान चंद्रयान-3 के जिस विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की पावर सप्लाई बंद कर उन्हें सुला दिया गया था, उनकी पावर सप्लाई दोबारा शुरू करने की कोशिश हो। अगर ऐसा होता है, तो विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर के जरिए इसरो के वैज्ञानिक और 14 दिन तक चांद पर शोध कर सकेंगे।

chandrayaan 3

चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर को इसरो के वैज्ञानिकों ने चांद की सतह पर 23 अगस्त की शाम 6 बजे सफलता से उतारा था। फिर विक्रम लैंडर से प्रज्ञान रोवर बाहर आया। प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर घूम-घूमकर अपने यंत्रों से तमाम प्रयोग और खोज करता रहा। प्रज्ञान रोवर 10 दिन में चांद की सतह पर करीब 100 मीटर चला था। फिर चांद पर सूरज की रोशनी पड़नी बंद हो गई। जिसकी वजह से वहां का तापमान शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला गया। जिसकी वजह से इसरो के वैज्ञानिकों ने विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की बैटरियां पूरी तरह चार्ज होने के बाद उनकी पावर सप्लाई बंद कर दी थी। इसरो के वैज्ञानिकों ने ऐसा इस वजह से किया, ताकि जब चांद पर फिर सूरज की रोशनी आए, तो विक्रम और प्रज्ञान को फिर चालू करने की कोशिश की जा सके।

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विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को चांद के एक दिन यानी धरती के 14 दिन तक ही काम करने लायक बनाया गया था। अगर अब फिर विक्रम और प्रज्ञान काम करने लगते हैं, तो ये इसरो के वैज्ञानिकों के लिए बड़ी उपलब्धि होगी। ताजा जानकारी के मुताबिक चांद पर धूप आ तो गई है, लेकिन अभी तापमान सामान्य नहीं हुआ है। तापमान सामान्य होने के बाद आज या कल विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को फिर चालू करने की कोशिश इसरो के वैज्ञानिक कर सकते हैं।