नई दिल्ली। मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को सबसे बड़ा आतंकी हमला हुआ। तीन दिन तक पाकिस्तान से आए लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी देश की आर्थिक राजधानी पर कहर बरपाते रहे। बतौर पत्रकार मैं भी उस दिल दहला देने वाले सबसे बड़े आतंकी हमले का गवाह बना। दरअसल, एक न्यूज चैनल आने वाला था। मैं उसके लिए मुंबई गया था। 25 नवंबर 2008 की रात मैं मुंबई पहुंचा था। उस दिन मुझे तो क्या, किसी को भी अंदाजा नहीं था कि अगली तारीख यानी 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर किस कदर कहर बरपने वाला है और कैसे हमारे जवान अपनी शहादत देकर अजमल आमिर कसाब को जिंदा पकड़ने समेत उसके बाकी 9 साथियों को निपटाने वाले हैं।
बात 26 नवंबर 2008 की शाम की है। टीवी चैनल के मैनेजिंग एडिटर सैयदेन जैदी के साथ मैं उनके केबिन में बैठा था। स्टाफ के दूसरे लोग भी थे। अचानक खबर आई कि सीएसटी रेलवे स्टेशन पर फायरिंग हुई है। चैनल पर ब्रेकिंग चलने लगी थी। कुछ लोगों के मारे जाने की खबर थी। पहले हमलोगों ने समझा कि कोई गैंगवॉर है। मुंबई में तमाम गैंग्स हैं। ऐसे में वहां इस तरह की घटनाएं होती रही थीं, लेकिन अचानक जब ये खबर आई कि लोग प्लेटफॉर्म पर मारे गए, तो हम सभी समझ गए कि ये गैंगवॉर नहीं है। इसके बाद की खबरों ने पुष्टि कर दी कि ये आतंकी हमला है।
टीवी पर अब ब्रेकिंग बैंड में और भी जगह हमलों की खबर आने लगी। लियोपोल्ड कैफे, ताज होटल और चबाद हाउस लश्कर के कारकून अजमल आमिर कसाब और उसके साथियों का निशाना बन चुके थे। चैनल के एक रिपोर्टर उस आतंकी हमले के वक्त कामा हॉस्पिटल के पास थे। उन्होंने हॉस्पिटल में घुसकर अपनी जान बचाई। तीन दिन तक चले इस आतंकी हमले में हमारे जवानों ने जमकर आतंकियों से मोर्चा लिया। मुंबई पुलिस के जांबाज तुकाराम ओंबले ने एके-47 की बर्स्ट फायर को झेलकर अजमल आमिर कसाब को पकड़ा। मेजर उन्नीकृष्णन और हेमंत करकरे समेत कई और अफसर शहीद हुए। 10 विदेशियों समेत 160 से ज्यादा लोगों की जान उस आतंकी हमले में गई। आज भी 26 नवंबर की तारीख आते ही मेरी आंखों के सामने जैसे सबकुछ किसी फिल्म की तरह घूमता रहता है। ये वो याद है, जो कभी भूली नहीं जा सकती।