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Hasdeo Arand: विकास के खिलाफ राजनीति!, जानिए किस तरह इसमें पिस रहा है छत्तीसगढ़ के हसदेव अरंड के आदिवासियों का जीवन

Hasdeo Arand: कोयला खदानों के कारण रोजगार और बेहतर जीवन स्तर भी लोगों को मिला है। साथ ही ये देश को ऊर्जा की सुरक्षा भी देता है। लेकिन यहां कांग्रेस जैसे कुछ राजनीतिक दल और एनजीओ के कार्यकर्ताओं को कोयला खदानों का विरोध करते हुए “हसदेव बचाओ” की राजनीति करते भी देखा जा सकता है।

रायपुर। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरंड कोयला खदान मामले में खूब सियासत होती रही है और हो भी रही है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से हसदेव का इलाका करीब 220 किलोमीटर दूर है। यहां जाने पर रास्ते में समृद्ध जैव विविधता, नव निर्मित कॉलोनियां, नई सड़कें, स्कूल वगैरा दिखते हैं। स्थानीय आबादी की शिक्षा के रूप में विकास की आकांक्षाएं भी यहां हैं। कोयला खदानों के कारण रोजगार और बेहतर जीवन स्तर भी लोगों को मिला है। साथ ही ये देश को ऊर्जा की सुरक्षा भी देता है। लेकिन यहां कांग्रेस जैसे कुछ राजनीतिक दल और एनजीओ के कार्यकर्ताओं को कोयला खदानों का विरोध करते हुए “हसदेव बचाओ” की राजनीति करते भी देखा जा सकता है। हसदेव उत्तरी छत्तीसगढ़ में है। यहां 23 कोयला खदानें हैं। इन कोयला खदानों में से एक यानी पीईकेबी को साल 2007 में आरवीयूएनएल को आवंटित किया गया था। कांग्रेस की सरकार जब 2013 में छत्तीसगढ़ में आई, तभी से ये खदान चल रही है। मौजूदा समय में अडानी ग्रुप यहां के कोयला खदानों के लिए डेवलपर और ऑपरेटर के तौर पर काम कर रहा है।

विकास के खिलाफ सियासत

स्थानीय लोगों के मुताबिक कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जब भारत जोड़ो यात्रा निकाली, तो वो गांधी मोर्गा बस्ती गए थे और वहां से 15 किलोमीटर दूर हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति यानी एचएबीएसएस जैसे कुछ एनजीओ के लोगों से मुलाकात की थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि आंदोलन करने वाले एनजीओ को सियासी संरक्षण है। राहुल गांधी इस इलाके में कोयले का खनन बंद कराना चाहते हैं। राहुल गांधी ने हमेशा की तरह यहां भी अडानी पर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि हर जगह ये कारोबारी ग्रुप है और सरकार अडानी को बंदरगाह, एयरपोर्ट, बुनियादी ढांचा वगैरा दे रही है। राहुल गांधी ने जो बयान दिए, उससे साफ है कि वो स्थानीय लोगों की भावनाओं को अपने पक्ष में करना चाहते हैं और साथ ही जैव विविधता को नुकसान का डर भी पैदा करना चाहते हैं। कोशिश उनकी यही है कि राजनीतिक तौर पर अपने उद्देश्यों को पूरा किया जाए।

हकीकत क्या है?

अगर पीईकेबी ब्लॉक की बात करें, तो केंद्र में यूपीए की सरकार जब मनमोहन सिंह चला रहे थे, तब 2007 में उसे आरयूवीएनएल को आवंटित किया गया था। इस ब्लॉक में कोयला खनन की संभावना 1980 के दशक में कांग्रेस सरकार के दौरान ही हुई थी। साल 2004 और 2014 के बीच कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र के दौरान ऐसी कोई नीति न तैयार हुई और न ही लागू हुई, जो जैव विविधता या हसदेव अरण्य के स्थानीय आदिवासियों की जरूरी मांगों के बारे में कुछ कहती हो। तब तो आदिवासी अपनी आजीविका तक नहीं पा रहे थे। आदिवासी चाहते हैं कि वनों के संरक्षण के साथ शिक्षा और रोजगार मिले। विकास हो, लेकिन लगता है कि राहुल गांधी और एनजीओ मिलकर उस डर को उठा रहे हैं कि आजीविका वाले वनों की कटाई होगी। छत्तीसगढ़ में 53 कोयला ब्लॉक हैं, लेकिन सिर्फ इसी एक ब्लॉक पर सवाल खड़े करना भी साफ तौर पर सियासत लगती है।

इसके अलावा एचएबीएसएस के साथ कांग्रेस का जुड़ाव भी सवाल खड़े करता है। इसी एनजीओ ने अप्रैल 2022 में कांग्रेस का तब विरोध किया, जब इस पार्टी की छत्तीसगढ़ सरकार ने खनन के लिए परसा कोयला ब्लॉक को मंजूरी दी थी। ये ब्लॉक पीईकेबी खदान के पास है और अडानी ग्रुप को ही इस ब्लॉक को भी चलाना था। अब एक और मसले पर नजर दौड़ा लेते हैं। दिसंबर 2023 में छत्तीसगढ़ विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त मिली और हसदेव इलाके में हर विधानसभा सीट पर कांग्रेस की हार भी हुई। जबकि ये इलाका कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। वहीं, हसदेव के इस क्षेत्र में अडानी ग्रुप ने 5000 रोजगार के अवसर पैदा हुए। कांग्रेस शासन के दौरान भी आबादी के विकास में मदद हो सकती थी, लेकिन वैसा नहीं हुआ। साफ है कि कांग्रेस के लोग आदिवासियों का मुद्दा समझ नहीं रहे हैं और उनको बरगलाकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रहे हैं। हसदेव में कोयला खदानों के खिलाफ राहुल गांधी के बयान कांग्रेस के विरोधाभासी रुख को भी दिखाते हैं। कांग्रेस पहले कहती रही है कि कोयला ब्लॉक आवंटन से देश को ऊर्जा सुरक्षा मिलेगी।

क्या कोयला खदानों के खिलाफ हो रही सियासत को स्थानीय लोगों का समर्थन है?

आमतौर पर दावा किया जाता है कि हसदेव क्षेत्र के लोग कोयला खदानों के खिलाफ हैं, लेकिन पसरा गांव के उप सरपंच ने विरोध प्रदर्शन पर चिंता जताते हुए साफ कहा कि वो कोयला खदानों का समर्थन करते हैं, लेकिन आलोक शुक्ला के विरोध में हैं। उप सरपंच के मुताबिक आलोक शुक्ला बाहरी लोगों को इलाके में लाते हैं और स्थानीय लोगों को भड़काते हैं। उप सरपंच ने कलेक्टर के लिए ये भी कहा कि उनसे गुहार है कि कोयला खदानें शुरू कराएं। उन्होंने ये भी कहा कि अगर खदानें शुरू न हुईं, तो रायपुर जाकर सरकार चला रहे लोगों से इस वास्ते अनुरोध करेंगे, ताकि यहां रोजगार मिल सके। उनका ये भी कहना है कि प्रदर्शन कर रहे बाहरी लोगों की जगह खदान संबंधी कंपनियां कोरोना महामारी के दौरान जनता के साथ खड़ी थीं। हाल ही में करीब 150 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण हुआ। इस दौरान 821 लोगों को मुआवजा दिया गया और वे भी प्रोजेक्ट का समर्थन कर रहे हैं।

इन तथ्यों पर भी गौर करना जरूरी

जब साल 2007 में आरवीयूएनएल को कोयला ब्लॉक दिया गया था, उस वक्त कांग्रेस की सरकार ही केंद्र में थी। जंगल काटने की मंजूरी भी कांग्रेस की छत्तीसगढ़ सरकार ने 2022 में दी। अब यही कांग्रेस पेड़ों की कटाई का विरोध कर रही है। वहीं, बीजेपी जैव विविधता की बात करती है और पेड़ों को बचाने के मुद्दे के तहत जैव विविधता बचाने का प्रतीक बनी है। हकीकत ये है कि जैसे ही कॉरपोरेट हित नए पर्यावरणवाद के आमने-सामने होते हैं, तो एनजीओ इसमें दोधारी कुल्हाड़ी जैसी सक्रियता दिखाते हैं और कांग्रेस की सत्ता हासिल करने की धुन में अडानी ग्रुप जैसे कारोबारियों और स्थानीय लोगों को सबसे ज्यादा पीड़ित और परेशान करती है। इसके अलावा ये तरीका उद्योगों को बलि का बकरा भी बनाता है। एक तथ्य ये भी है कि हसदेव में कोयला खनन के लिए बीते 10 साल में करीब 83000 पेड़ काटे गए। इनमें से 52 फीसदी के करीब यानी 43000 पेड़ कांग्रेस की सरकार के दौरान ही काटे गए।

हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्र में पीईकेबी के लिए विभिन्न वैधानिक मंजूरी कांग्रेस शासन के दौरान एमओईएफ एंड सीसी और तत्कालीन पर्यावरण मंत्री की तरफ से गहन जांच के बाद ही दी गई थी। ये ब्लॉक हसदेव अरण्य के किनारे पतले वानस्पतिक क्षेत्र में खनन के लिए उपयुक्त है।

अडानी ग्रुप ने यहां किए हैं लोगों के हित में बड़े काम

आरयूवीएनएल के स्वामित्व वाली इकाई, अडानी समूह इस ब्लॉक के लिए एमडीओ के रूप में काम कर रहा है। उसने सबसे कम कीमत पर प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से टेंडर हासिल किया था। तबसे उद्योग की ये दिग्गज कंपनी कोयला खनन के जरिए बिजली संयंत्रों जैसे छबड़ा, कालीसिंध, सूरतगढ़ वगैरा से ऊर्जा उत्पादन कर राजस्थान की जरूरतों को भी पूरा कर रही है। इससे जरूरत की बिजली का 50 फीसदी उत्पादन होता है। साथ ही स्थानीय लोगों का विकास भी इससे हो रहा है। आरयूवीएनएल ने छत्तीसगढ़ सरकार को रॉयल्टी और सेवा कर वगैरा में सालाना 1000 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान भी किया है। अकेले पीईकेबी ने राज्य सरकार को आज तक अलग-अलग टैक्स और शुल्क के जरिए 7000 करोड़ रुपए दिए हैं।

इस कोयला इकाई ने पर्यावरण का भी ध्यान रखा है। उसने फिर से हासिल जमीन पर करीब 11.5 लाख पेड़ लगाए हैं और 40 लाख पेड़ों के बदले वन विभाग को भी मुआवजा दिया है। इतना ही नहीं, अडानी ग्रुप ने अपने कुल लाभ का करीब 2 फीसदी अडानी फाउंडेशन के जरिए विभिन्न सीएसआर पहलों में निवेश भी किया है और पीईकेबी प्रोजेक्ट के जरिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से करीब 45000 लोगों का जीवन भी संवारा है। अडानी विद्या मंदिर के जरिए इस क्षेत्र के 800 गांवों के छात्रों को कोचिंग और शैक्षिक सामग्री भी दी गई है और उनके गुणवत्ता वाले सपने को पूरा किया गया है। इसके अलावा सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाने, रोजगार के अवसर और उद्यमों के विकास में भी अडानी ग्रुप ने काफी काम हसदेव क्षेत्र में किया है। हाल में हुई एक कार्यशाला में अडानी ग्रुप के अफसर आए थे। उनमें से एक ने बताया कि परसा-साल्ही गांव में पीईकेबी खदान में अडाणी कौशल विकास केंद्र ने एसएमओ/सिलाई मशीन चलाने के व्यवसाय में आसपास के गांवों की 25 युवतियों और महिलाओं को 3 महीने का प्रशिक्षण भी दिया।

कुल मिलाकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपने एजेंडे के तौर पर आदिवासियों की मदद भले करते दिखते हों, लेकिन हकीकत है कि ये कांग्रेस के झूठे वादों और वास्तविक विकास के बीच आदिवासियों की मुख्य समस्या को दिखाता है। वहीं, पीईकेबी का काम दरअसल विकास और बेहतर अवसर, रोजगार और बुनियादी ढांचे के साथ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करना है। यहां एक ही जगह अडानी जैसे कॉरपोरेट सीएसआर के अलग-अलग पहल, स्कूलों वगैरा से लोगों को अपार अवसर दे रहे हैं। वहीं, जैव विविधता को बचाने के लिए वन भी लगा रहे हैं। जबकि, कांग्रेस और एनजीओ मिलकर लोगों की भावना के साथ खेलने और पर्यावरणवाद की जहरीली राजनीति के जरिए लोगों की भावनाओं के साथ खेल रहे हैं।