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BAPS Sant Diksha: गुजरात के गोंदल स्थित बीएपीएस अक्षर मंदिर में हुई संत दीक्षा, महंत स्वामी महाराज ने 29 युवाओं को परशादी और 37 को भगवती दीक्षा दे कहा- सहनशीलता ही संतत्व का सार

BAPS Sant Diksha: परम पूज्य महंत स्वामी महाराज ने कहा, मैं इन संन्यासियों के माता-पिता का आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और फिर उन्हें सेवा के लिए समर्पित कर दिया। महंत स्वामी महाराज ने कहा कि साधु बनने का मार्ग आसान नहीं है। इसमें तपस्या, व्रत, सेवा, भक्ति और मन पर नियंत्रण शामिल है।

गोंडल। गुजरात के गोंदल स्थित बीएपीएस अक्षर मंदिर में 66 युवाओं को दीक्षा दी गई। 23 अक्टूबर को 29 युवाओं को परशादी दीक्षा मिली। दीक्षा लेने वालों में 2 डॉक्टर, 11 इंजीनियर, 4 स्नातकोत्तर, 7 विज्ञान से स्नातक और 4 अन्य स्नातक शिक्षा हासिल करने वाले हैं। इनके अलावा 25 अक्टूबर को और 37 को भगवती संत दीक्षा हुई। भगवती संत दीक्षा लेने वालों में 1 डॉक्टर, 1 पीएचडी, 4 मास्टर्स डिग्री वाले, 12 इंजीनियर, 18 स्नातक तथा 1 अन्य शामिल हुए। दीक्षा लेने वालों में 19 विदेशी हैं। जिनमें 11 अमेरिका से, 2 कनाडा से, 2 यूके से, 3 अफ्रीका से और 1 ऑस्ट्रेलिया से हैं। उल्लेखनीय है कि महंत स्वामी महाराज ने अब तक कुल 322 स्वामियों को दीक्षा दी है और BAPS संगठन में वर्तमान में 1220 सक्रिय स्वामी हैं।

दीक्षा समारोह के शुभारंभ के लिए सुबह 8 बजे विशेष महापूजा समारोह का आयोजन किया गया। दीक्षा प्राप्त करने वाले इन युवाओं के माता-पिता और परिवारजन उपस्थित थे और इस अवसर पर वे खुशी मना रहे थे। इस समारोह को देखने के लिए तमाम श्रद्धालु भी मौजूद थे। अनुष्ठान के बाद, वरिष्ठ बीएपीएस स्वामियों ने सभा को संबोधित किया। फिर महंत स्वामी महाराज ने दीक्षा अनुष्ठान पूरा किया और प्रत्येक नए स्वामी को नया नाम दिया। दीक्षा महोत्सव की मुख्य सभा में दीक्षा लेने वालों के पिता का सम्मान वरिष्ठ स्वामियों की ओर से किया गया। जबकि माताओं का सम्मान वरिष्ठ महिला श्रद्धालुओं ने किया।

सभा को अपने आशीर्वाद में परम पूज्य महंत स्वामी महाराज ने कहा, “मैं इन संन्यासियों के माता-पिता का आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दी और फिर उन्हें सेवा के लिए समर्पित कर दिया। महंत स्वामी महाराज ने कहा कि साधु बनने का मार्ग आसान नहीं है। इसमें तपस्या, व्रत, सेवा, भक्ति और मन पर नियंत्रण शामिल है। यह केवल एक सच्चे गुरु के मार्गदर्शन से ही संभव है। सत्पुरुष यानी ज्ञानी गुरु के माध्यम से, मार्ग स्पष्ट हो जाता है। हमारे साधु व्रतों को मजबूत करना और सहनशीलता विकसित करना ही साधुता का सार है।” वरिष्ठ स्वामियों ने फिर श्रद्धा के भाव से महंत स्वामी महाराज को फूलों की मालाएँ अर्पित कीं।

वहीं, 29 उच्च शिक्षित और समर्पित युवाओं ने परशादी दीक्षा प्राप्त की और सांसारिक त्याग, आत्म-साक्षात्कार और ईश्वर और समाज की सेवा के अपने आजीवन पथ पर चल पड़े। बीएपीएस सारंगपुर मंदिर के ‘संत तालीम केंद्र’ में शैक्षिक पाठ्यक्रम में स्वामीनारायण हिंदू धर्मशास्त्र, इतिहास और साहित्य के साथ-साथ रामायण, महाभारत, भगवद गीता, उपनिषद और अन्य हिंदू धर्मग्रंथों का गहन अध्ययन शामिल है। इसमें संस्कृत, हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी जैसी भाषाओं और विश्व धर्मों का अध्ययन भी शामिल है।

उल्लेखनीय है कि विश्व के 55 से अधिक देशों में सेवा देने वाली बीएपीएस संस्था को संयुक्त राष्ट्र संघ से मान्यता मिली हुई है। महंत स्वामी महाराज की दिव्य प्रेरणा से बीएपीएस संस्था सनातन हिंदू धर्म के मूल मूल्यों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देती है। साथ ही राष्ट्र सेवा और चरित्र निर्माण की भावना जगाती है तथा बच्चों, युवाओं और महिलाओं के लिए सत्संग गतिविधियों में उद्देश्यपूर्ण भागीदारी प्रदान करती है। संस्था की परियोजनाओं में व्यसन निवारण और पर्यावरण देखभाल जैसी पहल शामिल हैं। भूकंप, सुनामी, बाढ़, कोविड-19 और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे संकट के समय में बीएपीएस ने सदैव ही पीड़ित लोगों की मदद की है।

पश्चिमी देशों की धरती पर सनातन वैदिक संस्कृति की ज्योति को सदैव जलाए रखने के उद्देश्य से महंत स्वामी महाराज ने अमेरिका के न्यूजर्सी के रॉबिंसविले में भव्य और दिव्य अक्षरधाम महामंदिर और संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में पहला पारंपरिक बीएपीएस हिंदू मंदिर बनवाया है। संगठन के समर्पित, सुप्रशिक्षित स्वामियों का विशाल नेटवर्क बिना किसी व्यक्तिगत छुट्टी या वेतन के सेवा करता है, अपना जीवन पूरी तरह से सेवा (निस्वार्थ सेवा) और भक्ति के लिए समर्पित करता है। उनका अटूट योगदान सनातन धर्म के जीवंत मूल्यों को कायम रखता है, जो समाज के प्रति उनकी समझ, समर्पण और सेवा के माध्यम से प्रदर्शित होता है।