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Jibe: AIMPLB को मिला ‘फर्जी फतवों की फैक्ट्री’ का तमगा, किसने और क्यों कहा जानिए यहां

पहले भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तमाम वजहों से विवाद में रहा है। बोर्ड ने मोदी सरकार के तीन तलाक विरोधी कानून का जमकर विरोध किया था। जबकि, ये कानून सुप्रीम कोर्ट के कहने पर बनाया गया। जब अपने फायदे की बात होती है, तो बोर्ड और इसके रहनुमा कहते हैं कि उन्हें संविधान और अदालतों पर भरोसा है।

नई दिल्ली। पहले तीन तलाक, फिर कॉमन सिविल कोड के खिलाफ आवाज और अब सूर्य नमस्कार का विरोध। तमाम वजहों से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड चर्चा और विवाद में बना रहता है। ये मुसलमानों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था है। अब इस संस्था पर ‘फर्जी फतवों की फैक्ट्री’ का तमगा लगा है। ये तमगा मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने लगाया है। दरअसल, नकवी के ऐसा कहने की वजह AIMPLB की ओर से आया बयान है। इस बयान में कहा गया था कि सूर्य नमस्कार हिंदुओं की पूजा पद्धति है और मुसलमान बच्चे स्कूलों में सूर्य नमस्कार कतई न करें।

पहले भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तमाम वजहों से विवाद में रहा है। बोर्ड ने मोदी सरकार के तीन तलाक विरोधी कानून का जमकर विरोध किया था। जबकि, ये कानून सुप्रीम कोर्ट के कहने पर बनाया गया। जब अपने फायदे की बात होती है, तो बोर्ड और इसके रहनुमा कहते हैं कि उन्हें संविधान और अदालतों पर भरोसा है, लेकिन जब कोर्ट के कहने पर संविधान के तहत सरकार कोई कदम उठाती है, तो यही बोर्ड उसका विरोध करते हुए इसे असंवैधानिक बताने लगता है। बोर्ड ने बीते दिनों चेतावनी दी थी कि किसी भी सूरत में कॉमन सिविल कोड यानी एक समान नागरिक संहिता को लागू नहीं होने दिया जाएगा।

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अब जानते हैं कि ये बोर्ड बना क्यों और किस वजह से इसकी स्थापना हुई थी। दरअसल, साल 1973 में केंद्र की तत्कालीन सरकार के विधि मंत्री एचआर गोखले बच्चों को गोद लेने के बारे में बने कानून में बदलाव कर मुसलमानों में भी गोद लिए बच्चों को संपत्ति में हक दिलाना चाहते थे। इस्लाम में इसकी मनाही है। इसी वजह से शरीयत का हवाला देकर तमाम उलेमाओं ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना की थी। बोर्ड ने उस वक्त दबाव डालकर केंद्र को गोद लेने संबंधी कानून में बदलाव नहीं करने दिया था।