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War For Independence: मेरठ में आज PM मोदी ने जहां माथा टेका, भारत के इतिहास में खास है वो जगह

पीएम नरेंद्र मोदी आज मेरठ के दौरे पर पहुंचे। सबसे पहले उन्होंने मेरठ कैंट स्थित औघड़नाथ मंदिर में पूजा की। इस मंदिर को काली पल्टन मंदिर भी कहते हैं। इसके बाद मोदी शहीद स्मारक पहुंचे। इन दोनों ही जगहों का दौरा कर मोदी ने इतिहास को फिर से जीवित कर दिया।

मेरठ। पीएम नरेंद्र मोदी आज मेरठ के दौरे पर पहुंचे। सबसे पहले उन्होंने मेरठ कैंट स्थित औघड़नाथ मंदिर में पूजा की। इस मंदिर को काली पल्टन मंदिर भी कहते हैं। इसके बाद मोदी शहीद स्मारक पहुंचे। इन दोनों ही जगहों का दौरा कर मोदी ने इतिहास को फिर से जीवित कर दिया। ये इतिहास है 1857 का। इसी साल भारत में अंग्रेजों के खिलाफ सिपाहियों ने आजादी का बिगुल फूंका था। कम ही लोगों को पता होगा कि 1857 में क्रांति की शुरुआत मेरठ से हुई थी और मोदी जिन दो जगहों पर आज गए, उनका उस क्रांति में क्या खास जगह है। 1857 की क्रांति 10 मई को शुरू हुई थी। शाम को 4 बजे विद्रोही सिपाहियों ने अंग्रेजों पर हमला बोल दिया था। अपने साथियों को जेल से छुड़ाकर वे दिल्ली की तरफ कूच कर गए थे।

kali paltan mandir

भगवान शिव का औघड़नाथ मंदिर अंग्रेजों के लिए काली पल्टन का मंदिर था। यानी हिंदुस्तानी सिपाहियों का मंदिर। इसी मंदिर में आने वाले सिपाहियों में आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती ने कमल का फूल और रोटी बांटकर उन्हें क्रांति का संदेश दिया था। जिसके बाद मेरठ के सैनिकों ने अंग्रेजों को धूल चटाकर दिल्ली पहुंचकर मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को हिंदुस्तान का शासक घोषित किया था। इस तरह मेरठ की क्रांति का केंद्र वही काली पल्टन मंदिर बना था, जहां आज पीएम मोदी ने पूजा की। इस मंदिर के बारे में ये भी कहा जाता है कि यहां का शिवलिंग हर साल कुछ मिलीमीटर छोटा हो जाता है। मान्यता है कि जिस दिन शिवलिंग पाताल में समा जाएगा, उस दिन दुनिया में प्रलय आएगी।

dhan singh kotwal

अब बात करते हैं शहीद स्मारक की। इसी जगह अंग्रेजों ने क्रांति करने वाले तमाम भारतीय सैनिकों को तोपों में बांधकर उड़ा दिया था। इन शहीदों में धन सिंह कोतवाल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। वो मेरठ के सदर कोतवाल थे। जाति से गुर्जर धन सिंह ने ही सैनिकों के साथ मिलकर 10 मई 1857 को क्रांति की मशाल जलाई थी। धन सिंह मेरठ के ही पांचली गांव के थे। जब अंग्रेजों को 1857 की क्रांति को कुचलने में सफलता मिल गई, तो 4 जुलाई को उन्होंने बदला लेने के लिए पांचली पर हमला किया। पूरे गांव को उड़ा दिया गया। गांव के 80 लोगों को फांसी की सजा दी गई। जिस जगह ये सजा दी गई थी, वहीं पर शहीद स्मारक बना हुआ है।