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Uttar Pradesh: गौशालाओं से पैदा होंगे रोजगार के नए अवसर, योगी सरकार ने शुरू की मुहिम

Uttar Pradesh: गाय (COW) का गोबर सिर्फ उपले, खाद या बॉयोगैस बनाने के ही काम नहीं आता, बल्कि ये कमाई का जरिया भी बन सकता है। इसी गोबर से रोज़मर्रा के लिए उपयोगी कई कमाल की चीजें भी बन सकती हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) की योजना के तहत गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने एवं रोज़गार सृजन की कड़ी में तेजी से अग्रसर है।

लखनऊ। गाय का गोबर सिर्फ उपले, खाद या बॉयोगैस बनाने के ही काम नहीं आता, बल्कि ये कमाई का जरिया भी बन सकता है। इसी गोबर से रोज़मर्रा के लिए उपयोगी कई कमाल की चीजें भी बन सकती हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की योजना के तहत गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने एवं रोज़गार सृजन की कड़ी में तेजी से अग्रसर है। मुख्यमंत्री की गौ संरक्षण अभियान के चलते अब तक प्रदेश के 11.84 लाख निराश्रित गोवंशों में से अब तक 5 लाख 21 हज़ार गोवंशों को संरक्षित किया गया है। सरकार द्वारा 4500 अस्थायी निराश्रित गोवंश आश्रय स्थल संचालित हैं। ग्रामीण इलाकों में 187 वृहद गौ-संरक्षण केंद्र बनाए गए हैं। शहरी इलाकों में कान्हा गोशाला तथा कान्हा उपवन के नाम से 400 गौ-संरक्षण केंद्र स्थापित किए गए हैं।

yogi with cow

इसी योजना के तहत यूपी के प्रयागराज जिले स्थित कौड़िहार ब्लॉक के श्रींगवेरपुर के बायोवेद कृषि प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान शोध संस्थान में गोबर से बने उत्पादों को बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। उत्तर प्रदेश समेत अन्य प्रदेशों के के कई लोग इसका प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं। संस्थान में गोबर की लकड़ी भी बनाई जाती है, जिसे गोकाष्ठ कहते हैं। इसमें लैकमड मिलाया गया है, इससे ये ज्यादा समय तक जलती है।

जनपद आगरा की जिला जेल में बंद कैदी अन्य जनपदों के कैदियों के लिए उदाहरण बने हुए हैं। ये कैदी जेल के अंदर ही गाय के गोबर से बनी लकड़ी यानि गोकाष्ठ बनाते है जिसे दाह संस्कार में उपयोग किया जाता है। फ़िरोज़ाबाद के स्वर्ग आश्रम में भी इसी गोकाष्ठ का प्रयोग हो रहा है। लोगों की माने तो इस काष्ठ के प्रयोग से जहां दाह संस्कार में खर्च कम होता है वहीं पेड़ों को कटना भी नहीं पड़ता। इस गोकाष्ठ को लकड़ी के बुरादे, बेकार हो चुका भूसा और गाय के गोबर से तैयार किया जाता है।

जनपद उन्नाव के कल्याणी मोहल्ला निवासी किसान व पर्यावरण प्रेमी रमाकांत दुबे ने भी इस ओर पहल की है। रमाकांत दूबे का 75 हजार से एक लाख रुपये लागत वाला प्लांट रोज दो क्विंटल गो-काष्ठ तैयार करता है। इसके लिए गौ आश्रय स्थलों से गोबर खरीदा जाता है, इस आमदनी से गौ आश्रय स्थलों में गौ-सेवा सम्भव होगी।

cow

लकड़ी में 15 फीसदी तक नमी होती है, जबकि गो-काष्ठ में मात्र डेढ़ से दो फीसदी ही नमी रहती है। लकड़ी जलाने में 5 से 15 किलो देसी घी या फिर रार का उपयोग होता है, जबकि गो-काष्ठ जलाने में एक किलो देसी घी ही पर्याप्त होगा। लकड़ी के धुएं से कार्बन डाईआक्साइड गैस निकलती है जो पर्यावरण व इंसानों के लिए नुकसानदेह है, जबकि गो-काष्ठ जलाने से 40 फीसदी ऑक्सीजन निकलती है जो पर्यावरण संरक्षण में मददगार होगी।

cm yogi

गोकाष्ठ के बाद अब गोबर से बना गमला भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। गोबर से गमला बनाने के बाद उसके ऊपर लाख की कोटिंग की जाती है। इस गमले में मिट्टी भरकर पौधा लगाइए और जब भी पौधे को जमीन में लगाना हो तो इस गमले को ही ज़मीन में गाड़ दीजिए। इससे पौधा नष्ट नहीं होगा और पौधे को गमले के रूप में गोबर की खाद भी मिल जाएगी।

Yogi Adityanath

बायोवेद शोध संस्थान कई तरह के मूल्यवर्धित वस्तुओं के निर्माण का प्रशिक्षण देकर कई परिवारों को रोजगार के साथ अतिरिक्त आय का साधन उपलब्ध करा रहा है। जानवरों के गोबर, मूत्र में लाख के प्रयोग से कई मूल्यवर्धित वस्तुएं बनाई जा रही हैं। गोबर का गमला, लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति, कलमदान, कूड़ादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, जैव रसायनों का निर्माण, मोमबत्ती एवं अगरबत्ती स्टैण्ड आदि शामिल हैं।