नई दिल्ली। यूं तो विधानसभा चुनाव देश पांच राज्यों में आगामी 10 फरवरी से होने जा रहे हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब और मणिपुर शुमार है, लेकिन शायद आपको यह ना पता हो कि सियासी गलियारों सियासी पंडितों के बीच उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव के नतीजों को जानने की आतुरता अन्य सूबों के मुकाबले कुछ ज्यादा ही है। वो इसलिए, क्योंकि प्रदेश के गठन से लेकर अब तक वहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच अदलाबदली का दौर ही जारी रहा है। यानी पांच साल कांग्रेस तो पांच बीजेपी। यह सिलसिला प्रदेश गठन से लेकर अब तक जारी है। ऐसे में लोगों के जेहन में यह जानने का आतुरता का अपने चरम पर होना लाजिमी है कि क्या इस बार सूबे की यह सियासी रवायत जारी रहती है या फिर सियासी इतिहास को बदलते हुए पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री के रूप में वापसी करने में कामयाब हो पाते हैं? अब यह तो फिलहाल आने वाला वक्त यानी की आगामी 10 मार्च नतीजों के दिन ही पता लग पाएगा। लेकिन फिलहाल तो सभी के जेहन में यह जानने की आतुरता अपने चरम पर पहुंच चुकी है कि सूबे में किसकी सरकार बनने जा रही है। लेकिन चुनाव से पहले इस पर टिका टिप्पणी करना मुश्किल है, मगर उससे पहले ओपिनियन पोल के रूप में सूबे की जनता का मिजाज की पोटली सामने आई है, जिससे यह साफ जाहिर हो रहा है कि सूबे में किसकी सरकार बनने जा रही है, तो आपको बताते चले कि इस बार देवभूमि उत्तराखंड में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है।
राज्य की 70 विधानसभा सीटों पर बीजेपी के खाते में 43 फीसद वोट जाते हुए नजर आ रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस के खाते में 41 फीसद सीट जाती हुई नजर आ रही है, जबकि आम आदमी पार्टी के खाते में 13 फीसद सीट जाती हुई नजर आ रही है। उधर, अन्य दलों को महज 3 फीसद वोटों से ही संतुष्टि करनी होगी। बता दें कि यह ओपिनियन पोल राज्यों के पूर्व सियासी अनुभवों व जनता के मिजाज के आधार पर तैयार किया गया है। अब ऐसे में आगे चलकर ओपिनियन पोल की ये बातें कितनी सार्थक हो पाती है। यह तो फिलहाल आगामी 10 मार्च यानी की नतीजों के दिन ही पता चल पाएगा।
वहीं, अगर विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच सीटों के लिहाज सूबे की सियासी स्थिति की बात करें, तो बीजेपी के खाते में 31 से 37 सीटें जाती हुई नजर आ रही है। उधर, कांग्रेस के खाते में 30 से 36 सीटें मिलने की अनुमान है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी को महज 3 से 4 सीटों के साथ ही संतुष्ट होने की बातें कही जा रही है और अन्य दलों को महज 1 सीटों के साथ ही संतुष्टि करनी होगी। अब ऐसे में ओपिनियन पोल के रूप में सामने आया जनता का यह मिजाज आगे चलकर कितना सार्थक साबित हो पाता है। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा।