मुंबई। विपक्षी दलों के गठबंधन I.N.D.I.A की 31 अगस्त और 1 सितंबर को मुंबई में बैठक होने वाली है। अब तक गठबंधन की दो बैठक पटना और बेंगलुरु में हो चुकी है। गठबंधन बनाकर विपक्षी दलों के नेता काफी उत्साहित दिख रहे हैं। वे दावा कर रहे हैं कि लोकसभा चुनाव 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी को सत्ता से हटा देंगे, लेकिन कुछ चीजें ऐसी हो रही हैं, जिनकी वजह से इस गठबंधन के स्थायित्व पर ही सवाल उठने लगा है। 3 अहम मसलों पर पेच फंसा हुआ है। पहला मामला ये है कि गठबंधन ने अपना नया नामकरण तो कर लिया, लेकिन इसमें शामिल विपक्षी दलों के बीच सहयोग बनाए रखने के लिए किसी नेता को अलग से जिम्मेदारी नहीं दी है। पहले खबर आ रही थी कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार को विपक्षी दलों के गठबंधन का संयोजक बनाया जाएगा, लेकिन आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने सोमवार को एक इंटरव्यू में कह दिया कि किसी एक की जगह कई संयोजक बनाए जा सकते हैं।
विपक्षी दलों के गठबंधन ने अब तक पीएम मोदी के खिलाफ अपना कोई पीएम चेहरा भी तय नहीं किया है। राहुल गांधी की सांसदी वापस आ गई है। इससे उनको पीएम चेहरा बनाने के प्रति कांग्रेस में चर्चा शुरू हो गई है। वहीं, ममता बनर्जी को पीएम का चेहरा बनाने की बात टीएमसी के तमाम नेता करने लगे हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस के पीएल पुनिया और सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव कहते रहे हैं कि पहले लोकसभा चुनाव जीत लें, तो पीएम पद के लिए चेहरा भी तय हो ही जाएगा। ऐसे में मोदी के खिलाफ सभी को एक दिखाने की कोशिश भले हो रही हो, लेकिन पीएम पद का चेहरा सामने न लाने से विपक्ष को चुनाव में दिक्कत हो सकती है।
तीसरा बड़ा मसला राज्यों में विपक्षी दलों के बीच सीटों के बंटवारे पर है। सीपीएम और टीएमसी ने साफ कर दिया है कि उनके बीच पश्चिम बंगाल में सीटों का बंटवारा नहीं होगा। दिल्ली कांग्रेस की प्रवक्ता अलका लांबा कह चुकी हैं कि पार्टी ने राजधानी की सभी 7 सीटों पर चुनाव की तैयारी करने को कहा है। वहीं, पंजाब में कांग्रेस के दिग्गज प्रताप सिंह बाजवा ने सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) से सीटों के तालमेल से साफ इनकार कर दिया है। यूपी में भी कांग्रेस अगर सपा से सीटें मांगेगी, तो देखना ये है कि सपा कितनी सीटें देती है। महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्यों में भी विपक्षी गठबंधन को सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय करना होगा। ये कम झमेले का काम नहीं है। खासकर इस वजह से क्योंकि नीतीश कुमार और कुछ नेता कहते रहे हैं कि विपक्ष को बीजेपी के खिलाफ हर सीट पर एक ही संयुक्त प्रत्याशी देना चाहिए। जबकि, क्षत्रप दलों के सुप्रीमो शायद ही इस पर राजी हों।