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CAA : सीएए पर बोलने से पहले अपने गिरेबान में झांक ले विपक्ष

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं का शोषण करते हुए, नागरिकता संशोधन अधिनियम को निंदनीय तरीके से पुनर्जीवित करके अपने डूबते जहाज को बचाना चाहते हैं।

नागरिकता संशोधन कानून की अधिसूचना जारी होने के बाद विपक्षी खेमे में घमासान मचा हुआ है। तमाम विपक्षी दल और उनके नेता बयानबाजी कर रहे हैं। भाजपा पर ध्रुवीकरण किए जाने का आरोप लगा रहे हैं।
आइए, विपक्ष के कुछ नेताओं के बयानों पर नजर डालते हैं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सीएए भेदभावपूर्ण है और भारतीय संविधान के मूल सिद्धांतों और भावना के खिलाफ है।
एनसीपी के संस्थापक शरद पवार ने कहा है केंद्र सरकार ने इस तरह का कानून लागू किया है, जिसका मतलब संसदीय लोकशाही प्रक्रिया पर सीधे-सीधे आक्रमण है, जिसकी हम निंदा करते हैं।
अरविंद केजरीवाल बोल रहे हैं, भाजपा अपना वोट बैंक बनाना चाहती है, पड़ोसी देशों से आने वालों को रोजगार कहां से दोगे।

एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी कह रहे हैं सीएए विभाजनकारी है।जब देश के नागरिक रोजी-रोटी के लिए बाहर जाने पर मजबूर हैं तो दूसरों के लिए ‘नागरिकता क़ानून’ लाने से क्या होगा ?

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं का शोषण करते हुए, नागरिकता संशोधन अधिनियम को निंदनीय तरीके से पुनर्जीवित करके अपने डूबते जहाज को बचाना चाहते हैं।

anti caa protest

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ बोलने वाले नेताओं को यह जानना चाहिए इस कानून की आधिसूचना जारी किए जाने का अर्थ वोटों का ध्रुवीकरण है ही नहीं। इस प्रक्रिया के तहत नागरिकता मिलने में अभी महीनों का समय लगेगा, तो फिर ध्रुवीकरण कहां से हुआ ? जितने भी नेताओं ने इस संबंध में सवाल उठाए हैं वे अपने गिरेबान में झांककर देंखे कि वह सत्ता में आने के लिए क्या—क्या वायदे नहीं करते, क्या उनके यहां जाति की, क्षेत्र की और मजहब की राजनीति कर वोट नहीं मांगे जाते। ओवैसी तो स्पष्ट तौर पर मजहब के नाम पर वोट मांगते है।

अरविंद केजरीवाल बोल रहे हैं रोजगार कहां से देंगे, जबकि उनकी ही पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान का वीडियो सोशल मीडिया में है जिसमें वह देश में अवैध तरीके से घुस आए रोंहिग्याओं को इंसानियत नाम पर यहां रहने दिए जाने की बात करते हैं। यही नहीं वह स्पष्ट बोलते हैं कि इंसानियत के नाम पर हम उनकी मदद कर रहे हैं। वह जाएंगे कहां ? कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इसे भेदभाव पूर्ण बता रहे हैं। कश्मीर में जो हिंदुओं के साथ हुआ उसको लेकर क्या किसी कांग्रेसी ने स्पष्ट तौर पर आज तक कुछ कहा क्या ? कश्मीरी पंडितों के लाखों परिवारों को एक रात में अपना घर छोड़कर जाना पड़ा। आज भी देश के अलग—अलग हिस्सों में रहकर वह रह रहे हैं, आज तक वे लोग वापस अपने घरों को नहीं लौट पाए। इस पर कभी कांग्रेस के किसी भी अध्यक्ष का बयान नहीं आया।

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी बोल रहे हैं कि जब देश के नागरिक ही रोजी रोटी के बाहर जा रहे हैं तो दूसरो के लिए नागरिकता कानून लाने से क्या होगा ? अयोध्या में कारसेवकों पर गोलियां चलावाने वाली समाजवादी पार्टी के मुखिया को यह बोलना शोभा नहीं देता। सपा की राजनीति किसी आधार पर टिकी है, यह दुनिया से छिपा नहीं है। एक ही परिवार के कितने लोग राजनीति में हैं, किस आधार पर वह चुनावों में वोट मांगते हैं, यह बताने की किसी को जरूरत नहीं है। और भी तमाम नेताओं ने नागरिकता संशोधन कानून की अधिसूचना जारी होने पर अपनी प्रतिक्रिया दी है, ऐसे में उन नेताओं को दो प्रश्नों का जवाब देना चाहिए, पहला मजहबी उत्पीडन के शिकार अल्पसंख्यक हिंदू, पारसी और सिख लोगों को यदि भारत आश्रय देता है तो इससे किसी का क्या बिगड़ता है ? बेबस हिन्दुओं, अन्य अल्पसंख्यकों को पनाह देने और उन्हें नागरिकता देने से भारत या भारतीय मुसलमानों या किसी अन्य का अहित कैसे हो सकता है?

सीएए की अधिसूचना पर बयान देने वाले नेताओं को इन आंकड़ों पर भी नजर डालनी चाहिए। हम अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की बात करें तो विभाजन के समय पाकिस्तान में हिंदू सिख, बौद्ध और जैन समुदाय वहां की तत्कालीन कुल आबादी का 15.16 प्रतिशत थे, जो अब घटकर 1.5 से 2 प्रतिशत तक ही रह गए हैं। एक आंकड़े के अनुसार वर्ष 2002 में पाकिस्तान में सिख जहां 40,000 थे, वे अब घटकर 8000 से नीचे पहुंच गए हैं। इसी तरह बंग्लादेश (1971 से पहले पूर्वी पाकिस्तान) में हिन्दू और बौद्ध अनुयायियों की संख्या 1947 में वहां की कुल जनसंख्या का 30 प्रतिशत थी, वह आज 8 प्रतिशत भी नहीं रह गई है। अफगानिस्तान में 1970 के दशक में अफगान हिंदुओं और सिखों की संख्या लगभग 7 लाख थी, जो 1990 में
गृहयुद्ध के बाद निरंतर घटती हुई आज केवल 3000 लोगों तक पहुंच गई है। इन देशों में ‘काफिर’ अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति का मुख्य कारण यह है कि कालांतर में उन्हें इस्लाम अपनाने के लिए विवश होना पड़ा है।


फिर, भारत तो अपनी उदारता के लिए जाना जाता है। चीनी दमन चक्र के शिकार होकर तिब्बत के शरणार्थियों को भारत में क्या पनाह नहीं मिली ? भारत तो तिब्बत के धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा और उनके अनुयायियों की आजादी की लड़ाई आज भी लड़ रहा है। ऐसे में यदि कोई प्रताड़ित हिंदू, सिख या पारसी हमारे यहां आकर शरण मांगता है, तो हम उसे शरण क्यों न दें। तो सीएए की अधिसूचना पर सवाल उठाने या बयान देने से पहले तमात नेताओं को इस बारे में जान लेना चाहिए कि यह राजनीतिगत कदम नहीं है बल्कि भारतीयता, मानवता और हमारे संस्कारों से जो हमने सीखा है उस भावना को ध्यान में रखते हुए उठाया गया कदम है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।