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पंडित नेहरू नहीं चाहते थे वर्ना समान नागरिक संहिता 1951 में ही लागू हो गई होती

भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने समान नागरिक संहिता को लागू करने की वकालत की थी लेकिन पंडित नेहरू नहीं माने और देश में समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो सकी।

भाजपा ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है। इसे ‘भाजपा का संकल्प-मोदी की गारंटी’ नाम दिया गया। घोषणा पत्र में बहुत से बातें हैं लेकिन एक बात सबसे खास है वह है समान नागरिक संहिता को देश में लागू करना।

समान नागरिक संहिता को लेकर लंबे समय से चर्चा चली आ रही लेकिन आज तक देश में लागू नहीं हो सकी है। हां उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने इसे जरूर लागू कर दिया है, लेकिन पूरे देश में आजादी के 76 वर्षों के बाद भी समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो सकी है।

यह एक बड़ा मुद्दा है जिसको भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में उठाया है। समान नागरिक संहिता को भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में शामिल किया है। यदि हम इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि पूरे देश में समान नागरिक संहिता पहले ही लागू हो चुकी होती अगर मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते पंडित नेहरू ने इसका विरोध नहीं किया होता और तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की बात मानी होती।

हालांकि 1956 में ही हिन्दू पर्सनल लॉ बिल पास हो गया था। लेकिन समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई प्रयास नहीं हुआ, जबकि भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र ने पंडित नेहरू से 1951 में सिर्फ हिन्दू लॉ को कानून में पिरोने का विरोध करते हुए कहा था कि अगर मौजूदा कानून अपर्याप्त और आपत्तिजनक है तो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू की जाती?

सिर्फ हिंदुओं को ही क्यों कानूनी प्रक्रिया का पालन करने के लिए चुना जा रहा है? तत्कालीन राष्ट्रपति के कहने के बावजूद भी तब भी कांग्रेस ने समान नागरिक संहिता के लिए कोई कदम नहीं उठाया और उसके बाद भी इसको लेकर कोई प्रयास नहीं हुए।

1951 में हिन्दू पर्सनल लॉ को लागू करने की कोशिश शुरू हुई और नेहरू सरकार हिन्दू कोड बिल लाई। इसका तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने कड़ा विरोध किया था। उन्होंने पंडित नेहरू को इस संबंध में पत्र भी लिखे।

14 सितंबर 1951 को राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर हिन्दू कोड बिल लाने का विरोध किया था। उन्‍होंने कहा था कि जो प्रावधान इस कानून के जरिए किए जा रहे हैं यदि वह लोगों के लिए फायदेमंद और लाभकारी हैं तो सिर्फ एक ही समुदाय यानी हिंदुओं के लिए ही क्यों लाए जा रहे हैं, बाकी समुदायों को भी इसके लाभ के से क्यों वंचित रखा जा रहा है? उन्होने लिखा कि यदि मौजूदा कानून अपर्याप्त और आपत्तिजनक हैं तो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू क्यों नहीं लागू की जानी चाहिए। उन्होंने इस बिल पर हस्ताक्षर करने से पहले इसे मेरिट पर परखने की बात कही।

15 सितंबर को उन्होंने पंडित नेहरू को पत्र लिखा, इसका जवाब उसी दिन पंडित नेहरू ने उन्हें भेजा। उन्होने राष्ट्रपति को लिखा कि आपने बिल को मंजूरी देने से पहले उसे मेरिट पर परखने की जो बात कही है वह गंभीर मुद्दा है। इससे राष्ट्रपति और सरकार व संसद के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। संसद द्वारा पास बिल के खिलाफ जाने का राष्ट्रपति को अधिकार नहीं है।

इस पत्र के जवाब में डॉक्टर प्रसाद ने नेहरू को 18 सितंबर को एक और पत्र लिखा जिसमें उन्होंने संविधान के तहत राष्ट्रपति को मिली शक्तियां गिनवाईं। साथ ही यह भी लिखा कि वह इस मामले में टकराव की स्थिति नहीं लाना चाहेंगे। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दोनों के बीच हुए इस पत्राचार के बाद इस संबंध में तत्कालीन अटार्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ की राय ली गई। सीतलवाड़ ने 21 सितंबर 1951 को दी गई राय में कहा कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से चलेंगे। मंत्रिपरिषद की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी है।

इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते अपना वोट बैंक बनाए रखने के लिए कभी समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश नहीं की। यदि उस समय डॉ. राजेंद्र प्रसाद की बात मानी गई होती तो समान नागरिक संहिता कभी की इस देश में लागू हो गई होती।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।