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UP: कानपुर के राम-जानकी मंदिर का वजूद मिटाकर खोली बिरयानी बनाने की रसोई, पाक चले गए शख्स ने किया खेल

जांच से ये भी पता चला है कि मंदिर के बाहर हिंदुओं की 18 दुकानें थीं। उन्हें भी एक-एक कर तोड़ दिया गया। कानपुर के एसीएम-7 और शत्रु संपत्ति प्रभारी दीपक पाल ने मीडिया को बताया कि उनके पास पिछले साल शिकायत आई थी।

कानपुर। यूपी के कानपुर में एक मंदिर को बिरयानी रेस्तरां में बदल दिया गया। ये खुलासा शत्रु संपत्ति की तलाश के दौरान हुआ है। बेकनगंज इलाके के डॉक्टर बेरी चौराहा पर राम-जानकी मंदिर हुआ करता था। इस मंदिर का रिकॉर्ड 99/14-ए के नाम से है। यहां 80 के दशक तक पूजा होने की बात लोग कहते हैं, लेकिन अब मंदिर का कुछ हिस्सा ही बचा है। मंदिर के अन्य हिस्सों को तोड़कर उसे रेस्तरां की रसोई बना दिया गया है। जहां बिरयानी पकाई जाती है। रेस्तरां चलाने वाले महमूद उमर ने प्रशासन को बताया कि उसने ये संपत्ति 1982 में पाकिस्तान चले गए आबिद रहमान से खरीदी थी। उसने ये संपत्ति मंदिर परिसर में साइकिल मरम्मत करने वाले मुख्तार बाबा को बेची थी। आबिद इससे पहले ही 1962 में पाकिस्तान चला गया था।

महमूद उमर का कहना है कि उसके पास बिक्री और खरीद के सारे दस्तावेज हैं। जांच से ये भी पता चला है कि मंदिर के बाहर हिंदुओं की 18 दुकानें थीं। उन्हें भी एक-एक कर तोड़ दिया गया। कानपुर के एसीएम-7 और शत्रु संपत्ति प्रभारी दीपक पाल ने मीडिया को बताया कि उनके पास पिछले साल शिकायत आई थी। एसडीएम की जांच से पता चला कि इशहाक बाबा नाम का शख्स मंदिर का केयरटेकर था। उसका बेटा मुख्तार बाबा था और साइकिल मरम्मत की दुकान चलाता था। शत्रु संपत्ति दफ्तर के मुख्य पर्यवेक्षक कर्नल संजय साहा के मुताबिक इस मामले में नोटिस भेजकर 2 हफ्ते में जवाब मांगा गया है। अभी ये भी साफ नहीं है कि आखिर मंदिर को किसी मुस्लिम शख्स के हाथ कैसे बेचा गया।

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अब आपको बताते हैं कि शत्रु संपत्ति एक्ट आखिर है क्या। ये कानून 1965 में भारत-पाकिस्तान जंग के बाद बनाया गया था। इसके तहत जो लोग पाकिस्तान या बांग्लादेश जाकर बस गए, उनकी संपत्ति भारत सरकार ने जब्त कर ली। संपत्ति का हक उस शख्स के कानूनी प्रतिनिधि को दिया गया। मोदी सरकार के दौरान इस कानून में बदलाव किया गया। साल 2017 में हुए बदलाव के तहत विरासत में ऐसे लोगों को मिली संपत्ति भी जब्त होगी, क्योंकि उसका असली मालिक पाकिस्तानी या बांग्लादेशी हो गया। ऐसे में संपत्ति का हक अब वहां गए लोगों के किसी वारिस या कानूनी प्रतिनिधि को नहीं दिया जाता है और सरकार इसे अपने पास रखती है।