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CAA पर सरकार के बाद संघ ने जाहिर कर दी अपनी मंशा, ट्वीट कर कही ये बात

सीएए पर मोदी सरकार के रूख के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) ने भी अपनी मंशा साफ कर दी है। सोमवार को RSS की तरफ से 5 ट्वीट किए गए, जिसमें कहा गया कि CAA नागरिकता लेने का नहीं देने का कानून है।

नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन के बीच मोदी सरकार कई बार साफ कर चुकी है कि इस कानून से किसी भी भारतीय की नागरिकता नहीं जाएगी। सरकार के इस रूख के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) ने भी अपनी मंशा साफ कर दी है। सोमवार को RSS की तरफ से 5 ट्वीट किए गए, जिसमें कहा गया कि CAA नागरिकता लेने का नहीं देने का कानून है।

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RSS ने अपने ट्वीट में कहा कि, सरकार द्वारा संसद में तथा बाद में यह स्पष्ट किया गया है कि CAA से भारत का कोई भी नागरिक प्रभावित नहीं होगा। यह संशोधन तीन देशों में पांथिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए दुर्भाग्यपूर्ण लोगों को नागरिकता देने के लिए है तथा किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता वापस लेने के लिए नहीं है।

RSS Tweet Caa

दूसरे ट्वीट में RSS ने कहा कि, “परंतु, जिहादी–वामपंथी गठजोड़, कुछ विदेशी शक्तियों तथा सांप्रदायिक राजनीति करने वाले स्वार्थी राजनैतिक दलों के समर्थन से, समाज के एक वर्ग में काल्पनिक भय एवं भ्रम का वातावरण उत्पन्न करके देश में हिंसा तथा अराजकता फैलाने का कुत्सित प्रयास कर रहा है।”

एक और ट्वीट में संघ ने लिखा कि, “1947 में भारत का विभाजन पांथिक आधार पर हुआ था। दोनों देशों ने अपने यहाँ पर रह रहे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा, पूर्ण सम्मान तथा समान अवसर का आश्वासन दिया था। भारत की सरकार एवं समाज दोनों ने अल्पसंख्यकों के हितों की पूर्ण रक्षा की।”

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अगले ट्वीट में लिखा, “भारत से अलग होकर निर्मित हुए देश नेहरु-लियाकत समझौते और समय-2पर नेताओं के आश्वासनों के बावजूद ऐसा वातावरण नहीं देसके। इन देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों का पांथिक उत्पीड़न,उनकी संपत्तियों पर बलपूर्वक कब्जा तथा महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं ने उन्हें नए प्रकार की गुलामीकी ओर धकेल दिया।”

इस मुद्दे पर अपने अंतिम ट्वीट पर संघ की तरफ से लिखा गया है कि, “वहां की सरकारों ने भी अन्यायपूर्ण कानून एवं भेदभावपूर्ण नीतियाँ बनाकर इन अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को बढ़ावा ही दिया। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में इन देशों के अल्पसंख्यक भारत में पलायन को बाध्य हुए। इन देशों में विभाजन के बाद अल्पसंख्यकों के जनसंख्या %में तीव्र गिरावट उसका प्रमाण है।”