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UP Nikay Chunav: यूपी निकाय चुनावों को OBC आरक्षण रहित कराने के पीछे सपा की थी चाल, हुआ खुलासा

UP Nikay Chunav: यूपी सरकार में मंत्री एके शर्मा ने भी बताया कि चूंकि एक सपा नेता की सीट खतरे में थी। तो इस मसले को कोर्ट में घसीटा गया। दरअसल, रायबरेली जनपद की एक सीट ओबीसी घोषित हो गई थी। यहां सपा के एक नेता नगर पालिका में उच्च पद पर पदासीन हुआ करते थे, सीट के OBC हो जाने के कारण वह सीट उनके हाथ से जाती दिख रही थी।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी निकाय चुनाव को लेकर बुधवार को बड़ा फैसला आया। सुप्रीम कोर्ट ने योगी सरकार को निकाय चुनाव में राहत दी। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर पलटते हुए स्टे लगा दिया था। जिसमें हाईकोर्ट ने राज्य में निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण करने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने 3 माह के भीतर निकाय चुनाव कराए जाने का भी निर्देश दिया था। बता दें कि हाईकोर्ट ने पिछले साल 27 दिसंबर को राज्य सरकार की ओबीसी सूची खारिज कर दी थी और बिना आरक्षण के ही चुनाव के निर्देश दिए थे। लेकिन अब HC के फैसले पर रोक लगने से राज्य सरकार ओबीसी आरक्षण के साथ निकाय चुनाव करवा सकती है। सुप्रीम कोर्ट से इस राहत के बीच बड़ा खुलासा हुआ है कि इस पूरे प्रकरण के पीछे समाजवादी पार्टी का हाथ है। अपना राजनीतिक मकसद साधने के लिए सपा नेताओं ने जानबूझकर निकाय चुनावों में रोड़ा अटकाने की चाल चली। राजनीतिक मसले को कोर्ट के दांव-पेंच में फंसाकर पूरे प्रक्रिया को विफल करने की तैयारी थी।

यूपी सरकार में मंत्री एके शर्मा ने भी बताया कि चूंकि एक सपा नेता की सीट खतरे में थी। तो इस मसले को कोर्ट में घसीटा गया। दरअसल, रायबरेली जनपद की एक सीट ओबीसी घोषित हो गई थी। यहां सपा के एक नेता नगर पालिका में उच्च पद पर पदासीन हुआ करते थे, सीट के OBC हो जाने के कारण वह सीट उनके हाथ से जाती दिख रही थी।

सपा के एक विधायक ने जो रायबरेली जनपद की एक नगर पालिका में उच्च पद पर पदासीन हुआ करते थे वहां इस बार सीट ओबीसी हो जाने के कारण यह क़ानूनी दांवपेंच खड़ा किया गया। विधायक जी ने अपने नज़दीकी से PIL दाखिल करवाकर जब सरकार को परेशान करना शुरू किया तब तो सपा के लोगों को परिवारवाद में बहुत मज़ा आया। अपने चुनावी स्वार्थ के चलते पीआईएल करने और कराने वालों ने खुद कोर्ट में इस इस बात की मांग की कि सरकार अगर आयोग गठित करके आँकड़ा इकट्ठा करने में समय लेती है तो चुनाव बिना OBC आरक्षण के ही कर लिया जाए।

वहीं भाजपा सरकार का कहना था कि अपने राज्य के क़ानून के तहत रैपिड सर्वे जो पिछले 12 साल के पंचायत और निकाय चुनावों में हुआ था वह किया गया है। उसके आधार पर ही 5 दिसंबर 2022 को जारी अधिसूचना में ओबीसी को आरक्षण-27% सभी प्रकार की सीटों और पदों पर दिया गया है। जो कि नियम से न तो कम है और न ही अधिक। इन सबके बावजूद समाजवादी पार्टी के विधायक के करीबियों ने हाईकोर्ट में OBC आरक्षण के विरुद्ध अपनी लिखित और मौखिक दलीलें जारी रखीं और ओबीसी को आरक्षण न मिले उसके लिए क़ानूनी दांव पेंच चलते रहे क्योंकि उनको तो अपनी सीट सामान्य करनी थी।

बता दें कि योगी सरकारओबीसी समाज को उनका हक दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सरकार के एक्शन की मंशा से साफ है। इसीलिए सरकार ने कोर्ट के आदेश के 24 घंटे के भीतर ही आयोग का गठन कर दिया और आयोग ने अपनी बैठके भी शुरू कर दीं, राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण के लिए 36 घंटे के अन्दर ही एसएलपी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी। जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय का फैसला भी आ गया और राज्य सरकार OBC वर्ग को नियमानुसार पर्याप्त आरक्षण देते हुए चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध दिखी।