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Supreme Court On Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह पर आज आएगा सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, जानिए इसके पक्ष और विपक्ष में क्या दी गईं दलीलें

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ समलैंगिक विवाह मामले में फैसला देगी। इस पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली अन्य सदस्य हैं। इस साल अप्रैल से मई तक सुनवाई हुई थी।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट आज समलैंगिक विवाह के मामले में फैसला सुनाने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ समलैंगिक विवाह मामले में फैसला देगी। इस पीठ में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली अन्य सदस्य हैं। कोर्ट ने इस साल अप्रैल से लेकर मई मध्य तक लगातार सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह को वैध ठहराने की मांग वाली अर्जियां सुप्रियो चक्रवर्ती, अभय डांग, पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद समेत कई लोगों ने दाखिल की थीं। याचिका करने वालों की मांग रही कि समलैंगिकों के विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता मिले। उनका कहना था कि स्पेशल मैरिज एक्ट लिंग के आधार पर भेदभाव करता है। इस वजह से असंवैधानिक है। इसे मौलिक अधिकार से जुड़ा मसला बताया गया।

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कई समलैंगिकों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर शादी को वैध बनाने की मांग की थी।

याचिका में कहा गया कि सरकार ये नहीं कह सकती कि मामला संसद का है। संसद उनको संवैधानिक गारंटी से अलग नहीं कर सकती। याचिका देने वालों ने कहा कि ये दलील गलत है कि ये मामला खास शहरी वर्ग की सोच का नतीजा है। उन्होंने इसे सामाजिक सुरक्षा का मामला बताया। कुछ याचिकाकर्ताओं का कहना था कि साथ रहने के दौरान उनके बच्चे भी हैं। फिर भी वे कानूनी तौर पर शादी नहीं कर पा रहे और बच्चों को उनके पैरेंट्स होने का हक नहीं दिला सकते। इन लोगों ने तर्क दिया कि कानूनी तौर पर पति-पत्नी न होने से वे साथ बैंक खाता नहीं खोल सकते और पीएफ या पेंशन में पार्टनर को नॉमिनी भी नहीं बना सकते। याचिकाकर्ताओं की इन दलीलों का केंद्र सरकार के अलावा कई धार्मिक संगठनों ने कोर्ट में विरोध किया। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह के खिलाफ अर्जी देकर कहा कि शादी का मूल ढांचा महिला और पुरुष पर आधारित है। वहीं, केरल कैथोलिक बिशप्स काउंसिल का कहना है कि दो महिलाओं या दो पुरुषों में शादी को माना नहीं जा सकता, क्योंकि इसकी इजाजत तो प्रकृति खुद नहीं देती है। इसके खिलाफ किस तरह की आवाजें उठ रही हैं, उसे सुन लीजिए।

समलैंगिक विवाह के पक्षधरों की बात भी सुननी जरूरी है। सुनिए वरिष्ठ वकील करुणा नंदी ने इस संबंध में क्या कहा।

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समलैंगिक विवाह के विरोध में केंद्र की तरफ से दलीलें पेश की।

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी समलैंगिक विवाह का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इसका समाज पर बड़ा असर पड़ेगा और इस मामले को संसद के जरिए तय किया जाना चाहिए। तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि समलैंगिकों को विवाह की मान्यता दिए बिना कुछ कानूनी अधिकार देने पर फैसला लेने के लिए कमेटी बनाई जा सकती है। ये कमेटी मानवीय पहलू भी देखेगी। केंद्र ने कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता दी गई, तो दहेज, घरेलू हिंसा, तलाक, गुजारा भत्ता, दहेज हत्या जैसे मामलों में केस चलाना मुश्किल होगा। ये सभी कानून महिला-पुरुष की शादी के हिसाब से बने हैं। केंद्र ने ये भी कहा कि इससे आगे चलकर नजदीकी वर्जित संबंध और पसंद के अधिकार देने के दावे शुरू होंगे। वहीं, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने कोर्ट में कहा कि वो समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने की मंजूरी देने का विरोध किया। आयोग ने कहा कि कई शोध हुए हैं और इनमें पता चला है कि अगर समलैंगिक लोग बच्चों को पालेंगे, तो बच्चे का मानसिक और भावनात्मक विकास रुक सकता है।