नई दिल्ली। उत्तराखंड में फिर से इतिहास ने अपने पन्ने पलटे हैं। जिसका असर ये हुआ है कि एक और मुख्यमंत्री ने अपने तय कार्यकाल से पहले ही घर वापसी कर ली। बता दें बीती रात शुक्रवार को तीरथ सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। रावत ने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपने के पीछे संवैधानिक संकट का हवाला दिया है।
बता दें, तीरथ सिंह रावत का सीएम सफर भले ही शुरू कुंभ मेले के साथ शुरू हुआ था लेकिन चारधाम यात्रा से पहले समाप्त हो गया है। आसान शब्दों में कहें तो रावत महज 115 दिनों के लिए राज्य के सीएम पद पर रहे। वहीं अब राज्य में तीरथ कथा का अंत के साथ ही नए सीएम के स्वागत सत्कार के लिए राज्य तैयार है।
कब कैसे शुरू हुआ तीरथ का सीएम सफर
10 मार्च ये वो दिन था जब हर कोई मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले तीरथ सिंह रावत के अचानक से इस मुकाम पर पहुंचने को लेकर हैरान थे। रावत के राजनीतिक सफर की शुरूवात बतौर RSS कार्यकर्ता हुई थी। इसके बाद से ही वो बतौर बीजेपी कार्यकर्ता भी लगातार अपने कामों में लगे रहे। रावत ने प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाली और वो राज्य के पहले शिक्षा मंत्री भी बने थे। हालांकि जब से सीएम पद पर रावत आसीन हुए उन्हें कई मुश्किलों से गुजरना पड़ा।
बात अगर उनके फैसलों की करें या फिर उनके बयानों की सभी को लेकर विपक्ष ने उनकी किरकरी की। जब एक तरफ रावत ने सीएम पद को संभाला तो वहीं दूसरी ओर कोरोना की दूसरी लहर अपना प्रचंड रूप धारण कर रही थी। इन सब के बीच कुंभ मेला उनके गले की फांस बन रहा था। उन्हें लोगों को कोरोना से सुरक्षित रखने के साथ ही लोगों की आस्था को बरकरार रखना था ऐसे में रावत ने आस्था पर जोर देते हुए शुरुआती समय में कुंभ को हरी झंडी दिखा दी लेकिन नतीजा ये निकला की कोरोना के नए केसों की बाढ़ सी आ गई। मुख्यमंत्री बनते ही ये फैसला तीरथ के लिए बड़ी मुसीबत बन गया।इसके अलावा इस सब के उपर दिए गए विवादित बयानों ने भी रावत को चैनलों में सुर्खिया बन दिया। कुंभ को लेकर एक मीटिंग में तो पूर्व सीएम तीरथ यहां तक कह गए थे कि मां गंगा की कृपा से कोरोना का प्रसार नहीं होगा।