
नई दिल्ली। चलिए गुजरात चलते हैं। इन दिनों गुजरात की वीरान गलियां नेताओं की आमद से गुलजार हो रही हैं। किसी की जुबां पर मोदी का खुमार है, तो किसी की जुबां पर राहुल का जायका। कोई अपनी उपलब्धियां गिना रहा है, तो कोई अपनी महत्वाकांक्षाएं बता रहा है। वहीं, महत्वाकांक्षाओं और उपलब्धियों के बीच सूबे की जनता रेफरी की भूमिका में है। ऐसे में रेफरी का फैसला किसके हक में जाएगा। इसके लिए तो फिलहाल पांच दिसंबर का इंतजार करना होगा। पांच दिसंबर यानी की नतीजों का दिन। खैर, ये तो रही गुजरात चुनाव को लेकर हमारी छोटी-सी भूमिका। अब जरा मुद्दे पर आते हैं।
तो मुद्दा है गुजरात चुनाव के बीच बीजेपी का आदिवासियों को लेकर दिया गया बयान। जिस पर पलटवार करते हुए राहुल गांधी ने महुवा विधानसभा में आदिवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि “बीजेपी के लोग आपको आदिवासी नहीं कहते हैं। वह आपको क्या कहते हैं? वनवासी। इसका मतलब है कि वे यह नहीं कहते कि आप हिन्दुस्तान के पहले मालिक हो। वे आपसे कहते हैं कि आप जंगलों में रहते हैं, मतलब वे नहीं चाहते कि आप शहरों में रहें, आपके बच्चे इंजीनियर बनें, डॉक्टर बनें, विमान उड़ाएं, अंग्रेजी में बात करें।” दरअसल, बीजेपी ने आदिवासियों को वनवासी बताया था। जिसे लेकर कांग्रेस और बीजेपी के बीच जंग छिड़ चुकी है। बीजेपी का कहना है कि आदिवासी, आदिवासी नहीं, बल्कि वनवासी है।
वहीं, राहुल अपने उक्त बयान को लेकर सवालों के घेरे में आ चुके हैं। सवाल आदिवासियों की अस्मिता को लेकर है। राहुल पर आदिवासियों की अस्मिता पर चोट पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं। उन पर आरोप है कि वे गुजरात चुनाव में सियासी हित साधने के लिए वनवासी की परिभाषा को गलत तरीके से परिभाषित कर रहे हैं। जहां तक बात है वनवासी शब्द की, तो यह ऐसा शब्द है जो भारतभूमि पर सहस्त्राब्दियों से बोला, सुना और लिखा जा रहा है।
राहुल गांधी ने जिस तरह से ‘वनवासी ‘ शब्द का अर्थ पिछड़ेपन या समाज के निचले तबके से लगाया है, वह ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी गलत साबित होता है। ऐतिहासिक परिपेक्ष्य एवं दृष्टिकोण से इस शब्द को समझे तो भगवा न श्री राम ने भी वनवासी का रूप धारण किया और इसी रूप में उन्हों ने वनवासियों के ही सहयोग से लंका पर विजय प्राप्त की। वर्तमान में हम आत्मनिर्भरता या ‘वोकल फ़ॉर लोकल’ की बात करते हैं, दरअसल यह प्रणाली अरण्य संस्कृति में पहले से ही मौजूद थी।
आरएसएस से बीजेपी में आए राम माधव ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “हम उन्हें वनवासी कहते हैं. हम उन्हें आदिवासी नहीं कहते क्योंकि आदिवासी का मतलब मूल निवासी या आदिवासी होता है, जिसका मतलब है कि बाकी सभी बाहरी हैं। लेकिन संघ का मानना है कि हम सभी इस महाद्वीप के मूल निवासी हैं।” बहरहाल, अभी आदिवासी बनाम वनवासी का मुद्दा गुजरात चुनाव में खासा चर्चा में है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच जुबानी जंग छिड़ चुकी है।
अब ऐसी स्थिति में यह पूरा माजरा चुनाव में नतीजों को किस तरह से प्रभावित करता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। तब तक के लिए फिलहाल आप नतीजों के दिन का इंतजार कीजिए। आपको बतातें चलें कि प्रदेश में दो चरणों में चुनाव होने हैं। पहले चरण के चुनाव एक दिसंबर को और दूसरे चरण के पांच दिसंबर और नतीजों की घोषणा 8 दिसंबर को होने जा रही है। अब ऐसी स्थिति में आगामी दिनों में सूबे की सियासी स्थिति क्या रुख अख्तियार करती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।