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पश्चिम बंगाल की हालत बेहद चिंताजनक, रक्त रंजित हो सकते हैं चुनाव

पश्चिम बंगाल (West Bengal) में हत्याओं का दौर जारी है। आशंका जताई जा रही है कि जैसे-जैसे चुनाव का वक्त नजदीक आएगा, हत्याओं का सिलसिला और भी तेज होगा। इस सबको देखते हुए अब बंगाल की कानून व्यवस्था के मद्देजनर केंद्र के हस्तक्षेप की मांग तेज होने लगी है।

कोलकाता। पश्चिम बंगाल (West Bengal) में हत्याओं का दौर जारी है। आशंका जताई जा रही है कि जैसे-जैसे चुनाव का वक्त नजदीक आएगा, हत्याओं का सिलसिला और भी तेज होगा। इस सबको देखते हुए अब बंगाल की कानून व्यवस्था के मद्देजनर केंद्र के हस्तक्षेप की मांग तेज होने लगी है। खुद पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankar) ने राज्य के हालातों में हस्तक्षेप का बड़ा इशारा कर दिया है। उन्होंने साफ कहा है कि वे संविधान के अनुच्छेद 157 का इस्तेमाल करने पर मजबूर हो जाएंगे। इस अनुच्छेद के तहत राज्य की कार्यकारी शक्तियां राज्यपाल के हाथ आ जाती हैं।

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राज्यपाल की दी इस चेतावनी की विशेष वजहें हैं। पश्चिम बंगाल में टीएमसी के नेता और कार्यकर्ताओं पर हत्याओं की चेन बनाने का संगीन आरोप है। उन पर एक के बाद दूसरे बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या का संगीन इल्जाम है। ताजा मामले में पश्चिम बंगाल के कूचबिहार के एक बीजेपी कार्यकर्ता की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। दुर्गाप्रतिमा के विसर्जन के दौरान हुए विवाद में यह घटना घटी। घटना का सीधा आरोप टीएमसी पर है। बीजेपी के मुताबिक अब तक उसके 120 से अधिक कार्यकर्ताओं की टीएमसी काडर के जरिए हत्या की जा चुकी है। यहां तक पीएम नरेंद्र मोदी भी इस बाबत टीएमसी सरकार को आगाह कर चुके हैं।

बिहार विजय के बाद पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने स्पष्ट कहा- “देश के कुछ हिस्सों में ऐसे लोगों को लगता है कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारकर वे अपने मंसूबे पूरे कर लेंगे। मैं उन सबको आग्रहपूर्वक निवेदन करता हूं, मैं चेतावनी नहीं देता हूं, वो काम जनता करेगी।” पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का पुराना इतिहास है। दिलचस्प बात यह है कि जब तक ममता बनर्जी सत्ता बाहर थीं, वे वामपंथी पार्टियों पर हिंसा के गंभीर आरोप लगाती थीं। मगर सत्ता में आने के साथ ही उन्होंने अपने विरोधियों को खामोश करने के लिए हिंसा की वही राह पकड़ ली।

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2011 के विस चुनाव में ममता ने मां, माटी और मानुष का नारा दिया और बंगाल में 34 सालों से कायम वामपंथ को उखाड़कर फेंक दिया। इस जीत के बाद टीएमसी के काडर लेफ्ट के काडर के खिलाफ बेहद हिंसक हो गए। एक के बाद दूसरी हिंसा की वारदातें सामने आना शुरू हो गईं। मगर साल 2019 के आते-आते हालात बदल गए। अब तक बीजेपी ने यहां अपनी पैठ बना ली थी। 2 में 2014 सीटने जीतने वाली बीजेपी ने साल 2019 के चुनावों में 14 लोकसभा सीटें जीतकर टीएमसी की चूलें हिला दीं। अब तक टीएमसी को समझ में आ चुका था कि राज्य में उसका मुकाबला अब लेफ्ट से नही, बल्कि बीजेपी और संघ परिवार से है। इसके साथ ही बीजेपी कार्यकर्ताओं ने हिंसा के पीड़ितों की कतार में लेफ्ट की जगह ले ली और उनके खिलाफ हिंसा का सिलसिला तेज हो गया।

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चुनाव आयोग ने पहले ही साफ कर दिया है कि पश्चिम बंगाल में चुनाव तय समय पर होंगे। उधर बीजेपी ने मिशन 200 प्लस की तैयारियों को और भी तेज कर दिया है। ओवैसी के बंगाल की सियासत में इंट्री के ऐलान ने सियासी समीकरणों में और भी खलबली मचा दी है। ममता बनर्जी को अल्पसंख्यक वोटों के ध्रुवीकरण का खतरा सता रहा है। इन हालातों ने बंगाल की राजनीति को और भी आक्रामक बना दिया है। सत्ताधारी पार्टी होने के चलते टीएमसी राज्य की मशीनरी का अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सकने में सक्षम है। यही वजह है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं को टीएमसी की प्रतिद्दंदिता की कीमत जान देकर चुकानी पड़ रही है।