वाराणसी। आज से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वे कर रहा है। 30 पुरातत्ववेत्ताओं की टीम इस काम में आधुनिक यंत्रों समेत लगी है। सर्वे के दौरान हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के वादी और प्रतिवादियों के साथ उनके वकील और प्रशासन के लोग साथ हैं। ज्ञानवापी मस्जिद का मसला 353 साल पुराना है। हिंदू पक्ष का आरोप है कि मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर आदि विश्वेश्वर का मंदिर साल 1669 में ढहा दिया गया था। आदि विश्वेश्वर के मंदिर के अलावा बिंदु माधव मंदिर समेत कई और मंदिरों को भी ढहाकर मस्जिद बनाए जाने का आरोप है।
हिंदू पक्ष का दावा है कि औरंगजेब की तरफ से आदि विश्वेश्वर का मंदिर तोड़कर उसकी जगह ज्ञानवापी मस्जिद तामीर किए जाने का लिखित फरमान भी मौजूद है। औरंगजेब के दौर को बताने वाली एक किताब मासिरी-ए-आलमगीरी में भी मुगल बादशाह के आदेश पर आदि विश्वेश्वर का मंदिर ढहाकर उसके मलबे से वाराणसी में मस्जिद तामीर किए जाने की बात लिखी है। इन्हीं सब आधार पर हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद को खुद को देने का केस किया है। मुस्लिम पक्ष ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत केस नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने ये मसला वाराणसी के जिला जज को ट्रांसफर किया था। जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने पहले फैसला दिया था कि ज्ञानवापी का मसला प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत नहीं आता है।
एएसआई की तरफ से ज्ञानवापी का सर्वे 4 से 5 दिन में पूरा हो सकता है। इस सर्वे के तहत पूरे मस्जिद, उसकी पश्चिमी दीवार, गुंबद और मस्जिद में कलाकृतियों का परीक्षण होगा। सर्वे में वजूखाने और उसमें मिली शिवलिंग जैसी आकृति का सर्वे अभी नहीं होगा। वजूखाने पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे है। इस स्टे को हटाने के बाद ही सर्वे किया जा सकता है। सर्वे में खास बात ये है कि ज्ञानवापी मस्जिद के तहखानों को भी खोला जाएगा। इससे पता चलेगा कि मस्जिद के नीचे आखिर क्या है। साथ ही ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार से भी ये पता किया जाएगा कि मस्जिद के नीचे 15 मीटर तक कोई पुराना ढांचा है या नहीं।