
मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक RBI कल यानी 1 दिसंबर 2022 से रिटेल डिजिटल करेंसी का पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च करने जा रहा है। अभी सिर्फ नई दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और भुवनेश्वर में रिटेल डिजिटल करेंसी का प्रोजेक्ट शुरू होगा। इस काम के लिए आरबीआई ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया SBI, आईसीआईसीआई ICICI बैंक, यस बैंक Yes Bank और आईडीएफसी IDFC बैंक को चुना है। रिटेल का मतलब ये है कि इस डिजिटल करेंसी को आम लोगों के साथ ही व्यापार करने वाले भी इस्तेमाल कर सकेंगे। इस डिजिटल करेंसी का मूल्य भी मौजूदा करेंसी नोटों के जैसा ही होगा। बस अंतर ये है कि नोट को आप हाथ में लेकर गिन सकते हैं, लेकिन डिजिटल करेंसी में ऐसा नहीं कर सकेंगे।
अब सवाल ये है कि अगर भविष्य में रिजर्व बैंक नोट छापना बंद कर दे और पूरी तरह डिजिटल करेंसी ले आए, तो क्या होगा? ऐसा अगर हुआ, तो सरकार के हजारों करोड़ रुपए तो बचेंगे ही, कालाधन इकट्ठा करने और भ्रष्टाचार-हवाला करने वालों की नींद भी उड़ जाएगी। अगर पूरी तरह डिजिटल करेंसी को लागू किया जाए, तो नोट छापने में इस्तेमाल होने वाला कागज, स्याही और सिक्युरिटी थ्रेड का आयात बंद हो जाएगा। इससे सरकार को काफी फायदा होगा। अभी कागज और स्याही जर्मनी और ब्रिटेन से आता है। सिर्फ नोट छापने की स्याही पर ही सालाना 1500 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। जबकि, कागज खरीदने में इससे भी ज्यादा खर्च होता है। इनसे जब नोट छापे जाते हैं, तो सरकार का खर्च कई गुना बढ़ जाता है।
डिजिटल करेंसी अगर पूरी तरह लागू कर दी जाए (हालांकि सरकार ने अभी ऐसा कुछ नहीं कहा है), तो भ्रष्टाचार और कालाधन पर रोक लगेगी। क्योंकि हर एक रुपए का ट्रांजेक्शन ऑनलाइन होगा और सरकारी तंत्र की नजर इस ट्रांजेक्शन पर रहेगी। इसके अलावा हवाला के जरिए करेंसी का लेन-देन पूरी तरह बंद हो जाएगा। साथ ही एटीएम लगाने और इसे चलाने पर होने वाला करोड़ों का खर्च भी सरकार और बैंक बचा लेंगे।
बड़ी बात ये है कि डिजिटल करेंसी पूरी तरह लागू करने के फायदे बहुत हैं, लेकिन नोटबंदी के दौरान जिस तरह बैंकों में लाइनें लगीं और अफरातफरी मची, उससे फिलहाल ये नहीं लगता कि सरकार एकदम से करेंसी नोट बंद करने का फैसला करेगी। हां, इसे चरणों में धीरे-धीरे लागू जरूर किया जा सकता है। इस बारे में अंतिम फैसला सरकार को ही करना है।