नई दिल्ली। आदिवासियों के भगवान माने जाने वाले देश के महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर केंद्र सरकार ने बेहद खास तरीके से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। दिल्ली के आईएसबीटी बस स्टैंड के बाहर स्थित प्रसिद्ध सराय काले खां चौक का नाम बदलकर अब भगवान बिरसा मुंडा चौक कर दिया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज सुबह ही सराय काले खां चौक के पास बांसेरा पार्क में भगवान बिरसा मुंडा की भव्य प्रतिमा का भी अनावरण किया। इसके बाद केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सरकार की तरफ से सराय काले खां चौक के नए नाम की घोषणा कर दी।
VIDEO | Union Home Minister Amit Shah (@AmitShah) unveils a statue of #BhagwanBirsaMunda on the occasion of latter’s 150th birth anniversary in Delhi.
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— Press Trust of India (@PTI_News) November 15, 2024
खट्टर ने कहा कि अब से सराय काले खां चौक को भगवान बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा। भगवान बिरसा मुंडा की इस प्रतिमा और चौक के नाम को देखकर न केवल दिल्लीवासी बल्कि बस अड्डे पर आने वाले देशभर के लोग भी निश्चित रूप से उनके जीवन से प्रेरित होंगे। इससे पहले साल 2021 में मोदी सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया था।
#WATCH | Delhi: Union Minister Manohar Lal Khattar says, “I am announcing today that the big chowk outside the ISBT bus stand here will be known after Bhagwan Birsa Munda. Seeing this statue and the name of that chowk, not only the citizens of Delhi but also the people visiting… pic.twitter.com/wc9Mvz4dN9
— ANI (@ANI) November 15, 2024
भगवान बिरसा मुंडा के बारे में
बिरसा मुंडा पहले आदिवासी थे जिन्होंने अंग्रेजों और जमींदारों के जुल्मों के खिलाफ आवाज उठाई थी। 15 नवंबर 1875 को अविभाज्य बिहार (मौजूदा झारखंड) में जन्मे ने महज 25 साल की कम उम्र में देश की आजादी के लिए अपना जीवन बलिदान दे दिया था। बिरसा मुंडा ने जमींदारों और अंग्रेजों द्वारा आदिवासियों को उनकी परंपरागत जमीन से बेदखल करने और उनके जुल्मों को रोकने के लिए आदिवासियों को एकजुट किया और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। बिरसा मुंडा से प्रभावित होकर न सिर्फ आदिवासियों की मुंडा जनजाति बल्कि तमार, संथाल, खासी, भील, मिजो और कोल जनजातियों ने भी आजादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए अंग्रेजों से लोहा लिया। बिरसा मुंडा को आदिवासी भगवान की तरह पूजते हैं।