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V.D. Savarkar: जानिए वीर सावरकर ने क्यों कहा था कि इस देश का हर इंसान मूलत: हिंदू है!

V.D. Savarkar:लंदन से जब उन्हें एसएस मौर्य नामक पानी के जहाज से वतन लाया जा रहा था तो जहाज जैसे ही फ्रांस के मार्से बंदरगाह पर पहुंचा वे शौचालय के ‘पोर्ट होल’ से वे बीच समुद्र में कूद गए। 15 मिनट की तैराकी के बाद जब वे तट पर पहुंचे तो वे करीब करीब नंगे थे। पीछे से पुलिस उन्हें पकड़ने में लगी थी, और सावरकर को फिर उसी हालत में भागना पड़ा। कुछ देर की भागदौड़ के बाद सावरकर अब पुलिस के गिरफ्त में थे।

नई दिल्ली। विनायक दामोदर सावरकर यानी वीर सावरकर को दुनिया से गए आज 56 साल हो गए हैं। लेकिन ये कैरेक्टर आज भी भारतीय राजनीति में उतना ही प्रासंगिक है, जितना गांधी, नेहरू और सुभाष। अपनी मृत्यु के कई सालों बाद भी आज वे एक ऐसे फीगर हैं जिनमें पोलाराइज करने की अच्छी खासी क्षमता है। पोलाराइज का सीधा मतलब होता है या तो इस तरफ, या उस तरफ। और जब भी कभी वी.डी सावरकर का नाम आता है, लोग दो धड़ों में बंटे मिलते हैं। जहां एक धड़ा सावरकर को हीरो मानता है, तो दूसरा विलेन। सावरकर का व्यक्तित्व भी कुछ ऐसा ही रहा है, आप श्योर नहीं हो सकते कि आखिर उनको क्या कहा जाए। क्योंकि 1910 तक की बात करें तो भारतीय इतिहास में उनके जैसा क्रांतिकारी व्यक्तित्व हमें नहीं दिखता, लेकिन उसके बाद से देखें तो हमें कुछ और ही नजर आता है। उनके क्रांतिकारी छवि को आप ऐसे समझ सकते हैं कि जब लंदन में 1906 में गांधी जी उनसे मिले थे तो गांधी ने उनसे कहा था कि आपकी रणनीति अंग्रेजों के खिलाफ जरूरत से ज्यादा आक्रामक है। तो सावरकर ने गांधी जी को बीच में टोकते हुए कहा था कि चलिए पहले खाना खाइए। लेकिन वहीं 1910 में जब सावरकर को गिरफ्तार कर अंग्रेज अंडमान के सेलुलर जेल ले जाते हैं तो हम देखते हैं कि वे अंग्रेजों को एक के बाद एक कई माफीनामा भी लिखते हैं। इसके अलावा उनका कैरेक्टर तब और धूमिल हो जाता है जब 1949 में गांधी की हत्या के आरोप में उनको गिरफ्तार किया जाता है। आइए आगे सावरकर को और जानने का प्रयास करते हैं..

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सावरकर क्रांतिकारी या अंग्रेजपरस्त कैरेक्टर?

सावरकर को और करीब से देखें तो हम पाएंगे कि उनके कॉलेज के दिनों में उन्हें उनके राजनीतिक विचारों के लिए पूणे के फर्ग्युसन कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था। बाद में सावरकर ने 1857 की क्रांति पर एक किताब भी लिखी, इसके अलावा नासिक के कलेक्टर की हत्या के आरोप में जब उनके भाई को गिरफ्तार किया गया था, तो सावरकर पर भी ये आरोप लगा कि उन्होंने ही जैक्सन को मारने के लिए इस्तेमाल की गई पिस्टल को लंदन से अपने भाई के लिए भेजा था। इस आरोप में लंदन से जब उन्हें एसएस मौर्य नामक पानी के जहाज से वतन लाया जा रहा था तो जहाज जैसे ही फ्रांस के मार्से बंदरगाह पर पहुंचा वे शौचालय के ‘पोर्ट होल’ से वे बीच समुद्र में कूद गए। 15 मिनट की तैराकी के बाद जब वे तट पर पहुंचे तो वे करीब करीब नंगे थे। पीछे से पुलिस उन्हें पकड़ने में लगी थी, और सावरकर को फिर उसी हालत में भागना पड़ा। कुछ देर की भागदौड़ के बाद सावरकर अब पुलिस के गिरफ्त में थे। इसके बाद सावरकर को दो मामलों में 25-25 साल की सजा सुनाई गई, और उन्हें सजा काटने के लिए अंडमान यानी काला पानी भेज दिया गया।

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अंडमान का भयावह सेल्यूलर जेल

अंडमान की सेल्युलर जेल में उन्हें 52 नंबर की कोठरी में  रखा गया,बता दें कि अंडमान की सेल्यलर जेल की सजा उस समय किसी बुरे स्वप्न से कम नहीं होती थी। उसकी भयावहता को अनेक किताबों में दर्ज किया गया है। आप इतना ही से समझिए कि जहां देश के दूसरे हिस्सों में बग्घी में जोतने के लिए जानवरों का इस्तेमाल किया जाता था, वहीं अंडमान में कैदी ही इस काम में लाए जाते थें। इसके अलावा जब कैदी बग्घी नहीं खींच पाते थें तो उनको बुरी तरफ पीटा जाता था, गालियां बकी जाती थी। और तो और उन्हें कुनैन पीने के लिए दिया जाता था, जो मलेरिया के उपचार में काम में लाया जाता है। जबरदस्ती कुनैन पीने के लिए मजबूर करने से कैदियों को चक्कर आते थें, कुछ उल्टियां करते थें और कुछ तो दर्द से तड़पते रहते थे।

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सावरकर ने क्यों लिखा माफीनामा

बहरहाल, 698 कमरों वाले सेल्यूलर जेल में जिस कमरे में सावरकर को रखा गया था , उसके ठीक नीचे वाले स्थान पर कैदियों को फांसी दी जाती थी। कभी-कभी कैदियों को अपने कोठरी में ही मल-मूत्र त्यागना पड़ता था, शायद यही सब दुश्वारियां रही होंगी जिससे सावरकर द्वारा अंग्रेजों को माफीनामा लिखना पड़ा , हालांकि बाद में खुद सावरकर और उनके समर्थक ये कहते रहें कि अंग्रेजों को जो माफीनामा उन्होंने लिखा वह उनकी रणनीति का हिस्सा था। ऐसा करने से उन्हें कुछ रियायतें मिलने की उम्मीद थी, रियायतें मिलने से वे देश के लिए योगदान करने में सक्षम हो सकते थे। लेकिन सवाल उठना तब शुरू हो जाता है जब सावरकर के कथनी और करनी में फर्क दिखता है। 1924 में जेल से जब वे सशर्त निकलते हैं तो उसके बाद वे एक तरह से अंग्रेजों का गुणगान करते दिखते हैं। अंग्रेजों द्वारा उन्हें 60 रुपया मासिक पेंशन दिया भी दिया जाता है, जिसकी वजह का हमें कोई ठोस आधार नहीं दिखता। हमें समझ नहीं आता कि क्यों सावरकर को अंग्रेज पेंशन देना स्वीकार करते हैं, जबकि उस समय अन्य किसी को ऐसी सुविधा मिल रही हो, ऐसा हमें देखने को नहीं मिलता।

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इस देश का इंसान मूलत: हिंदू है- सावरकर

अंडमान से वापस आने के बाद सावरकर ने एक किताब लिखी- ‘हिंदुत्व- हू इज हिंदू’ इसमें सावरकर ने हिंदुत्व को परिभाषित करते हुए उसे पहली बार एक राजनीतिक घोषणापत्र के रूप में इस्तेमाल किया। इसमें वे हिंदुत्व को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि इस देश का इंसान बेसिकली हिंदू है। इस देश का नागरिक वही है जिसकी यहां कि धरती पितृ भूमि हो, मातृ-भूमि हो और पुण्य भूमि हो। यानी आदि से अनंत तक उसका यहीं का इतिहास हो।  देखा जाए तो पितृ भूमि, मातृ भूमि तो किसी की भी हो सकती है, लेकिन पुण्य भूमि तो हिंदुओं, सिखों, जैनों और बुद्धों की ही हो सकती है, बाकियों की नहीं।

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गांधी की हत्या के आरोप में सावरकर की गिरफ्तारी

हालांकि सावरकर तब और विवादित हो जाते हैं जब 1949 में उनको गांधी की हत्या के षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है। भले ही ठोस सबूतों के अभाव में वे बरी हो जाते हैं, लेकिन इससे उनकी छवि को गहरा धक्का लगता है। यहां तक की आरएसएस भी उस समय उनसे पल्ला झाड़ने की कोशिश करती है। और कपूर कमीशन भी उन्हें क्लीन चिट नहीं दे पाती। उसके बाद सावरकर कुछ समय तक पटल से ओझल रहते हैं और सामने तब आते हैं जब वाजपेयी सरकार उनके नाम को भारत रत्न की सिफारिश के लिए राष्ट्रपति के आर नारायणन के पास भेजती है, हालांकि नारायण इसे नामंजूर कर देते हैं।एक बार फिर से सावरकर का नाम एक खामोशी में जाता है और फिर 2014 में वे तब सामने आते हैं जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनते हैं संसद के सेंट्रल हॉल में सावरकर के चित्र को सम्मान देने पहुंचते हैं। उसके बाद से सावरकर गाहे-बगाहे चर्चा में बने रहे हैं। अभी भी कई टीवी चैनलों की डिबेट में सावरकर विषय बने रहते हैं। भले ही उन्हें दुनिया छोड़े आज 56 साल हो गए हैं।