
पटना। बिहार की सियासत में मंगलवार यानी 15 अप्रैल का दिन अहम हो सकता है। पटना में कल कांग्रेस और आरजेडी के नेताओं की बैठक है। इसमें महागठबंधन में सीट बंटवारे पर चर्चा होगी। पिछले कुछ समय से ऐसी चर्चा है कि कांग्रेस के स्थानीय नेता चाहते हैं कि पार्टी अपने दम पर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़े। वहीं, बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा था कि कांग्रेस महागठबंधन के साथ लड़ेगी, तो 70 से कम सीट का समझौता नहीं करेगी। बीते दिनों जब कन्हैया कुमार ने नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा निकाली, तो बेगूसराय में राहुल गांधी उसमें शामिल हुए थे। उस यात्रा में आरजेडी शामिल नहीं हुई थी।
बिहार में लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस के बीच खींचतान की अटकलें तभी से चल रही हैं, जब लालू यादव ने ये बयान दिया था कि इंडी गठबंधन की कमान अब पश्चिम बंगाल की सीएम और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को दी जानी चाहिए। ममता बनर्जी और लालू के बेटे तेजस्वी यादव की सियासी करीबी जगजाहिर है। ऐसे में सबकी नजर इस पर है कि क्या बिहार विधानसभा चुनाव के लिए आरजेडी और कांग्रेस में सीट बंटवारे पर समझौता होगा? एक बड़ी वजह ये भी है कि पिछली बार आरजेडी ने कांग्रेस के लिए जो 70 सीट छोड़ी थीं, उनमें से ज्यादातर पर एनडीए का दबदबा था। ऐसे में कांग्रेस के सूत्र ये भी बता रहे हैं कि पार्टी बिहार विधानसभा की ऐसी सीटें चाहती है, जिनपर वो मजबूत हो। ऐसे में सबकी नजर अब लालू और तेजस्वी पर है कि वो कांग्रेस की मांग पर क्या फैसला करते हैं।
बिहार विधानसभा में 243 सीट हैं। कांग्रेस साल 2020 में बिहार विधानसभा के चुनाव में 70 सीट पर लड़ी थी। जिसमें से वो 19 सीट ही जीत सकी थी। उसका स्ट्राइक रेट 27 फीसदी रहा था। वहीं, लालू यादव की आरजेडी को 75 सीट पर जीत मिली थी। बीजेपी ने 74 और नीतीश कुमार की जेडीयू ने 43 सीट पर जीत हासिल की थी। महागठबंधन ने 110 सीट हासिल की थी। वो बहुमत से 12 कम रह गई थी। इससे पहले कांग्रेस 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में 41 सीट पर लड़ी थी और 27 सीट पर जीत दर्ज की थी। इस तरह देखें, तो कांग्रेस लंबे अर्से से बिहार विधानसभा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी है और आरजेडी के साथ रहकर ही उसका सियासी बेड़ा कुछ हद तक चलता रहा है।