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मानसिक बीमारियां, आधुनिक युग की देन! कैसे करें बचाव, क्या है उपाय: मनोचिकित्सक डॉ श्याम भट से खास साक्षात्कार

Psychiatrist Dr. Shyam Bhatt on mental illnesses: भारत में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में तेजी से बदलाव आ रहा है। एक ओर जहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, वहीं अब ज्यादा से ज्यादा लोग चिकित्सकीय मदद मांग रहे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर तृतीयक संस्थानों तक, हेल्थ केयर के सभी स्तरों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं को मजबूत बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

नई दिल्ली। आज के आधुनिक युग में एक तरफ जहां साइंस और टेक्नॉलोजी ने रोजमर्रा की जिंदगी को आसान और सहज बना दिया है, वहीं दूसरी तरफ तनाव, चिंता, उदासी या फिर अवसाद तेजी से नई पीढ़ी पर हावी हो रहा है। अक्सर जागरूकता की कमी के कारण पहले तो इसका पता ही नहीं चलता और जब तक आप किसी ‘दिमागी डॉक्टर’ के पास पहुंचते हैं तब तक यह समस्या विकराल हो चुकी होती है। समाज में मानसिक विकारों की रफ्तार पर रोक लगाने की दिशा में देश के जाने-माने डॉ श्याम भट ने एक बड़ी पहल की है। उनके ‘द लिवलवलाफ फाउंडेशन’ ने इस बीमारी पर जागरूकता फैलाने से लेकर सरकारों की भागीदारी सुनिश्चित कराने की दिशा में बड़ा काम किया है। फाउंडेशन की ‘स्टोरीज़ ऑफ़ होप’ पहल को जनता का समर्थन भी मिल रहा है। यहां प्रस्तुत है डॉ. श्याम भट, मनोचिकित्सक एवं चेयरपर्सन, द लिवलवलाफ फाउंडेशन के साथ खास साक्षात्कार के मुख्य अंश:

Dr Shyam Bhat

1. भारत में मानसिक बीमारियों के तेजी से बढ़ने की समस्या कितनी गंभीर है? यह बीमारी कितनी तेजी से बढ़ रही है? कृपया उपलब्ध आंकड़े प्रदान करें।

भारत में मानसिक बीमारियां ठीक उसी रफ्तार से बढ़ रही हैं, जिस रफ्तार से दुनियाभर में इनका प्रसार हो रहा है। द लैंसेट साइकिएट्री के अनुसार, 2017 में, सात में से एक भारतीय अलग-अलग गंभीरता के मानसिक रोगों से पीड़ित था: भारत में 197.3 मिलियन लोग मानसिक रोगों से ग्रसित हैं, जिनमें 45.7 मिलियन अवसाद से जुड़े रोगों और 44.9 मिलियन तनाव से जुड़े रोगों से पीड़ित थे। तनाव का दायरा अनुमान से कहीं अधिक है, कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि 50% से अधिक कॉर्पोरेट शहरी भारतीय किसी न किसी प्रकार के तनाव से पीड़ित हैं, यह तनाव उनके कामकाज और जीवन की गुणवत्ता पर असर डालता है। भारत में सभी प्रकार के रोगों में मानसिक बीमारियों की हिस्सेदारी 1990 के बाद से लगभग दोगुनी हो गई है। दुनियाभर में मानसिक स्वास्थ्य पर नए सिरे से ध्यान दिया जा रहा है। भारत में प्रभावित लोग, अपने साथ जो हो रहा है उसके प्रभावों, मानसिक सेहत से जुड़ी समस्याओं और वे जिन तनावों का सामना कर रहे हैं, इन सभी के बारे में वे अब खुलकर बात करने लगे हैं।

2. वर्तमान में उपचार के लिए किन विकल्पों को अपनाया जा रहा है? क्या उपचार की कोई नए एप्रोच सामने आई है? कृपया उनके फायदे और चुनौतियों के बारे में बताएं।

वर्तमान में, अवसाद और तनाव के साथ ही दूसरी मानसिक बीमारियों का इलाज उनकी गंभीरता के आधार पर साइकोथैरेपी की मदद से,दवाओं के साथ,या फिर दवाओं के बिना किया जाता है। इलाज की कुछ नई एप्रोच भी हैं, जिसमें मन और शरीर को एकीकृत करने की जरूरत को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है, इसके साथ ही ध्यान जैसी पारंपरिक प्रथाओं का उपयोग करना भी इसमें शामिल है।इसके अलावा कई नए बायोलॉजिकल इलाज भी हैं, जिनमें ब्रेनस्टिमुलेशन (रिपिटिटिव ट्रांसक्रानियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन), और नए फार्माकोलॉजिकल एजेंट भी शामिल हैं, जिनकी जांच चल रही है। तकनीक इस मामले में एक बड़ी भूमिका निभाती है, कई विशेषज्ञ ऑनलाइन परामर्श उपलब्ध कराते हैं।COVID-19 महामारी के कारण ऑनलाइन परामर्श और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।टेलीथेरेपी की बढ़ती स्वीकार्यता और उपयोग से ग्रामीण या दूरदराज के क्षेत्रों सहित अधिक लोगों तक पहुंचने में मदद मिल रही है।

mental illnesses

यहां हमें इलाज के बजाय रोकथाम पर जोर देना होगा। इलाज करने की तुलना में इसे रोकना बहुत आसानहै।वहीं भारत की बात करें, तो हमारी आबादी बहुत ज्यादा है, इसमें मानसिक बीमारी से प्रभावित लोग भी शामिल हैं और मानसिक बीमारी का इलाज करने के लिए योग्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर बहुत ही कम हैं। इसके लिए व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामुदायिक जैसे सभी स्तरों पर रोकथाम को संरचना का एक अहम हिस्सा बनाना चाहिए। इसके लिए सामाजिक स्तर पर, मानसिक स्वास्थ्य हमारी स्वास्थ्य प्रणाली का एक अहम हिस्सा बनाना बेहद जरूरी है। तनाव, चिंताया अवसाद का आकलन और स्क्रीनिंग करने के लिए किसी भी प्राइमरी केयर फिजिशियन को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।इसके साथ ही जरूरी है कि वह आवश्य करे फरल तैयार करे, या परामर्श प्रदान करे या फिर किसी अन्य काउंसलर के पास रेफर करे और यदि जरूरी हो तो उपचार शुरू करें। इसके अलावा, हमें अपने स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य पर जोर देना होगा, जहां प्रत्येक बच्चे को सिखाया जाए कि अपने विचारों, भावनाओं, रिश्तों और विकसित होती पहचान को कैसे नियंत्रित किया जाए।तीसरा पहलू यह है कि दफ्तर यहसुनिश्चित करें कि उनके सभी कर्मचारियों को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के बारे जानकारी हो और साथ ही वे इसके बारे में जागरूक हों और मानसिक चिकित्सकों तक उनकी पहुंच हो। यह जानकर ख़ुशी होती है कि यह सब हमारे देश में पहले से ही हो रहा है, और जरूरी है कि हम सामाजिक स्तर पर यह सब करना आगे भी जारी रखा जाए।

भारतीयों के लिए परिवार अभी भी बेहद जरूरी है। जब किसी व्यक्ति की मानसिक बीमारी का इलाज किया जा रहा हो, या फिर इसकी रोकथाम करनी हो, दोनों ही स्थितियों में परिवार की भूमिका सबसे अहम होती है।जब परिवार के सदस्य आपसी सम्मान, बातचीत, मदद और सहानुभूति के साथ एक-दूसरे से मिलते हैं और मन और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बातचीत करते हैं, तो यह मानसिक बीमारी को रोकने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।

mental illnesses pic

प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक बीमारी से मुकाबला करने के तरीकों के बारे में सीखना चाहिए और ऐसी जीवनशैली अपनानी चाहिए जो मानसिक बीमारी को रोकने में मदद कर सके।

इसका पहला तरीक है व्यायाम। सप्ताह में कम से कम 4-5 बार कम से कम 30 मिनट का व्यायाम हमें मानसिक बीमारियों से सुरक्षित रखता है, साथ ही तनाव और चिंता के खतरे को कम करता है।दूसरा है पर्याप्त नींद। देर से सोने से तनाव और चिंता का खतरा बढ़ जाता है। 7-9 घंटे की नींद लेना और एक ही समय पर सोना और जागना बहुत जरूरी होता है। बेहतर मानसिक सेहत के लिए पोषण भी बहुत महत्वपूर्ण है।यह शरीर के लिए बहुत जरूरी होने के साथ-साथ दिमाग के लिए भी महत्वपूर्ण होता है।ढेर सारे फलों और सब्जियों वाले आहार का सेवन करना, कम कैलोरी वाला मांसाहारीआहार लेना, चीनी, फास्टफूड और प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेट से परहेज करना हमारे लिए बहुत ही उपयोगी है।एक अच्छा आहार न्यूरोट्रांसमीटरों की मदद करके और स्वस्थ बैक्टीरिया को पोषण देकर मानसिक सेहत में सुधार कर सकता है।इसके अलावा अन्य लोगों के साथ हमारा जुड़ाव भी बेहद जरूरी है।

3. ग्रामीण भारत के मरीज़ों की क्या चुनौतियां हैं? क्या जागरूकता की कमी, सामाजिक कलंक आदि के कारण यहां मानसिक बीमारियों को लंबे समय तक नज़र अंदाज़ किया जाताहै?

ग्रामीण क्षेत्रों में, मानसिक बीमारियों पर लोगों का ध्यान तभी जाता है जब वह गंभीर स्थिति में पहुंच जाती हैं।वहीं शहरी क्षेत्रों में, समाज के कुछ वर्गों के लोग- उदाहरण के लिए, दफ्तर में काम करने वाले लोग- जब असहज महसूस करते हैं, तब चिकित्सकीय मदद लेते हैं।

परंपरागत रूप से, ग्रामीण क्षेत्रों में, मानसिक बीमारियों को भूत बाधा के रूप में भी देखा जाता है, यह सोच अभी भी कुछ ग्रामीण समुदायों में देखी जा सकती है।वहां इस बात की जानकारी अभी भी बहुत कम है कि चिकित्सकीय मदद से इसका इलाज किया जा सकता है।लेकिन अब यह स्थिति बदल रही है और लिवलवलाफ अपने प्रयासों से इस प्रकार की धारणा में बदलाव ला रहा है, साथ ही जमीनी स्तर पर बदलाव लाने में मदद कर रहा है। समुदायों में अब इसकी चर्चा खुलकर की जाती है और लोग भी चिकित्सकीय मदद की जरूरत को स्वीकार कर रहे हैं।

लेकिन दोनों स्थितियों में मानसिक बीमारी को कलंक मानने की भावना अभी भी जारी है, हालांकि कलंक के कारण अलग-अलग हैं। अंधविश्वास, मानसिक बीमारी के बारे में शिक्षा की कमी, और मानसिक बीमारी के लिए एक रोग मॉडल का न होना, ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक लांक्षन के प्रमुख कारण हो सकते हैं।यही कारण है कि लोग झाड़ फूंक करने वाले ओझाओं के पास जाते हैं।बीमारी से पीड़ित लोग सामाजिक तानों और अपने तथा अपने परिवार को शर्मिंदगी से भी बचाना चाहते हैं। लेकिन, LLL के प्रयासों से पता चला है कि जब वे बेहतर महसूस करेंगे तभी उन्हें बदलाव का अहसास होगा।

4. मानसिक बीमारियों से निपटने के लिए योग, ध्यान, होम्योपैथी जैसी वैकल्पिक चिकित्सा कितनी प्रभावी हैं?

चिंता और अवसाद के सामान्य उपचार के अलावा योग, ध्यान और कुछ आयुर्वेदिक तरीके भी मददगार हो सकते हैं। ध्यान एक शक्तिशाली और प्रभावी तरीका है जो तनाव को कम करने और हल्की चिंता और अवसाद का इलाज करने में मदद करता है। हालाँकि, जब कोई व्यक्ति भावनात्मक रूप से अधिक गंभीर स्थिति महसूस कर रहा हो, तो ऐसी स्थिति में मनोवैज्ञानिक की देखरेख में ही ध्यान किया जाना चाहिए। पारंपरिक मनोचिकित्सा में ध्यान को शामिल करना एक अत्यधिक प्रभावी उपचार साबित हुआ है। प्राप्त सबूतों से पता चलता है कि ये तरीके ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को व्यवस्थित करती हैं और उत्तेजना को कम करती हैं। इसके साथ ही ये लाभ शरीर के साथ-साथ दिमाग की संपूर्ण सेहत को बेहतर बनाते हैं। इन प्राचीन तरीकों की क्षमता का वास्तव में लाभ उठाने और आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़कर इन्हें उपयोग करने के लिए और भी अधिक रिसर्च की जरूरत है।

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5. इस चुनौती से निपटने में मदद में सरकार (केंद्र और राज्य) की क्या भूमिका हो सकती है? कृपया उदाहरण सहित विवरण प्रदान करें।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में तेजी से बदलाव आ रहा है। एक ओर जहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, वहीं अब ज्यादा से ज्यादा लोग चिकित्सकीय मदद मांग रहे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर तृतीयक संस्थानों तक, हेल्थ केयर के सभी स्तरों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं को मजबूत बनाने पर जोर दिया जा रहा है।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2016) और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (2017) से भी पता चलता है कि किस प्रकार नीतिगत स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों को पहचानने और उन पर ध्यान के मामले में काफी प्रगति हुई है। हालाँकि, जागरूकता बढ़ने के साथ ही, अयोग्य कौन्सेलेर्स भी खुद को स्वयं नियुक्त क्र रहे हैं| इसकी संख्या में जोरदार इजाफा हुआ है। देश में अच्छी गुणवत्ता वाली मानसिक चिकित्सा उपलब्ध हो, इसके लिए इन्हें नियंत्रित किया जाना बहुत ही जरूरी है।

7. इस चुनौती से निपटने के लिए लिवलवलाफ फाउंडेशन क्या कदम उठा रहा है, कुछ ताजा उदाहरण भी दीजिए।

द लिव लव लाफ फाउंडेशन (लाइवलवलाफ) एक चैरिटेबल ट्रस्ट है, जिसकी स्थापना 2015 में दीपिका पादुकोण ने की थी। इस संगठन का लक्ष्य तनाव,चिंता और अवसाद का अनुभव करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आशा प्रदान करना है। LLL के प्रयास मुख्यत: जागरूकता बढ़ाने और किफायती मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने पर केंद्रित हैं।

भारत की लगभग 70% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है जहां मानसिक बीमारी के इलाज और उससे जुड़ी मदद उपलब्ध होना एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक बीमारी को एक कलंक माना जाता है, इसी के साथ ही यहां काले जादू, झाड़फूक करने वाले ओझाओं के पास जाने और मानसिक बीमारी के इलाज के लिए धार्मिक अनुष्ठानों पर लोग अधिक विश्वास करते हैं। लोगों के बीच मानसिक बीमारी से जुड़ी समझ की कमी के कारण मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति और उनके परिवार को समाज से बाहर कर दिया जाता है। आम तौर पर अच्छी गुणवत्ता की मानसिक चिकित्सा सिर्फ गाँव के पास के शहर में ही उपलब्ध होती है। ऐसे में ग्रीमीण क्षेत्रों में रहने वालों परिवारों के लिए यह आसानी से सुलभ भी नहीं होती है। इलाज के लिए इतना दूर जाने के लिए, वे इलाज के खर्च के अलावा अपना बहुत सा समय और पैसा भी खर्च करते हैं। ऐसे में सीमित आय के साथ, परिवार आमतौर पर मानसिक बीमारी का इलाज नहीं कराते हैं। इसलिए, हमारा ग्रामीण कार्यक्रम 3 A पर केंद्रित है – अवेयरनेस, एक्सेस और अफोर्डेबिलिटी। मैं हमारे कार्यक्रम के दो लाभार्थियों- दावणगेरे के लक्ष्मण और गुलबर्गा की ज्योति – की कहानी बताकर इस बात को और भी स्पष्ट करना चाहता हूं।

1. लक्ष्मण 2016 से LLL के ग्रामीण कार्यक्रम के लाभार्थी हैं। एक सड़क दुर्घटना में दिमागी चोट के चलते उन्हें सिज़ोफ्रेनिया का पता चला था। आक्रामक व्यवहार और अलगाव जैसी समस्या के साथ, वे अपने रोजमर्रा के कामकाज को काफी संघर्ष का सामना कर रहे थे। उनके परिवार ने निजी अस्पतालों में उनके इलाज पर चार लाख रुपये से ज्यादा पैसे खर्च किए। वहीं LLL के प्रोग्राम ने लक्ष्मण को ठीक होने की सही राह दिखाई, इसके साथ ही उनके परिवार को दवाएं, परामर्श और सलाह उपलब्ध कराई। आशा कार्यकर्ताओं और गांव के वॉलेंटियर्स ने उनके उपचार और बीमारी को ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस बदलाव से लक्ष्मण के जीवन में स्थिरता आई है। इस मदद से वे अपनी देखभाल करने के काबिल हुए। इसके साथ ही एक स्थिर आय मिलने से, परिवार का बोझ काफी हद तक कम हो गया। इस कार्यक्रम ने लक्ष्मण के जीवन को बदल दिया है और उनके परिवार पर भी बेहतर असर डाला है। अब एक एक्टिव पैरेंट चैंपियन की तरह, उनकी माँ गाँव में इसी तरह की समस्या का सामना करने वाले दूसरे परिवारों की मदद कर अपना आभार व्यक्त करती हैं। LLL की मदद से, उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया है, साथ ही बीमार व्यक्ति के साथ ही पूरे समुदाय को भी सशक्त बनाने में मदद मिली है।

2. पिछले कई सालों से, गुलबर्गा की रहने वाली ज्योति काफी आक्रामक और हिंसक हो गई थी। उसके परिवार के सदस्यों को इससे निपटने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। परिवार का मानना था कि ज्योति की यह हालत काले जादू के कारण हुई। वे इस उम्मीद से ज्योति को कई मंदिरों में ले गए कि वह ठीक हो जाएगी। लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं हुआ। 2021 में ज्योति को मनोविकृति का पता चला और उन्हें एलएलएल के ग्रामीण कार्यक्रम के तहत इलाज के लिए भेजा गया। दवा और ऑन-ग्राउंड टीम की ओर से नियमित फॉलो-अप के कारण उनकी हालत अब स्थिर हो गई है। कार्यक्रम की मदद से उनके परिवार का आर्थिक बोझ भी कम हो गया है। पहले, वे निजी अस्पतालों से इलाज और दवा पर काफी पैसा खर्च करते थे। इसके अलावा उन्हें इलाज के लिए दूर-दराज के स्थानों की यात्रा भी करनी पड़ती थी। अब इलाज के लिए जरूरी दवाएं उनके घर से पैदल दूरी पर, नजदीकी पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) पर उपलब्ध हैं। उन्हें उम्मीद है कि ज्योति अब पूरी तरह ठीक हो जाएगी।

LLL के कार्यक्रमों और प्रयासों में अब ग्रामीण सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य, किशोरों के लिए मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा, क्षमता निर्माण, आमलोगों के बीच जागरुकता फैलाना और सामाजिक कलंक को कम करने से जुड़े अभियान जैसे दोबारा पूछो (2016) (मानसिक स्वास्थ्य पर भारत का पहला राष्ट्रव्यापी जन जागरूकता अभियान) और #NotShamed (2018) को शामिल किया गया है। इसके अलावा, LLL द्वारा रिसर्च भी की जा रही है, साथ ही एक निःशुल्क परामर्श हेल्पलाइन को फंड किया जा रहा है।

हमारे किशोर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में अब तक 210,000 छात्र और 21,000 शिक्षक शामिल हो चुके हैं। वहीं हमारे डॉक्टर कार्यक्रम में 2,383 डॉक्टर शामिल हो चुके हैं। पिछले साल हमारे रूरल मेंटल हेल्थकेयर प्रोग्राम का दायरा पांच गुना बढ़ गया और हम लगभग 3,000 लाभार्थियों तक पहुंचे हैं। वहीं हमें इस साल (वित्त वर्ष 2023-24) को लेकर उम्मीद है कि हम ~15,000 लाभार्थियों की मदद करेंगे। LLL की वेबसाइट पर देश भर के 15 हेल्पलाइन नंबरों और 300 से अधिक मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की जानकारी उपलब्ध है। हमारी ‘स्टोरीज़ ऑफ़ होप’ पहल ने मानसिक बीमारी का अनुभव करने वाले लोगों और उनकी देखभाल करने वालों द्वारा साझा की गई लगभग 500 साहसी अनुभवों को संजोया है।

इसके अलावा, हमारे डिजिटल चैनल, मीडिया आउटरीच और लिवलवलाफ लैक्चर सीरीज़ जैसे प्लेटफार्मों ने लोगों तक जानकारी पहुंचाने और उन्हें प्रेरित करने और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों का नजरिया बदलने में मदद की है। आम लोगों की धारणा को लेकर हमारे 2018 और 2021 के सर्वेक्षणों के बीच परिणामों की तुलना से हमें एक नजरिया प्राप्त हुआ। यह बताता है कि किस प्रकार हमारी वर्षों की कड़ी मेहनत बेहतर परिणाम लेकर आ रही है। आज मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बातचीत मुख्यधारा में शामिल हो गई है।

एलएलएल को 2019 में प्रतिष्ठित डॉ. गुइस्लैन “ब्रेकिंग द चेन्स ऑफ स्टिग्मा” ग्लोबल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) ने 2020 में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए हमारी संस्थापक, दीपिका पादुकोण को क्रिस्टल अवार्ड से सम्मानित किया था।
2021 में, हम 20 भारतीय राज्यों के 100 गैर सरकारी संगठनों के पहले समूह में शामिल हुए, जिसे ग्रो फंड की ओर से अनुदान प्राप्त हुआ।