नई दिल्ली। भगवान शंकर का परम धाम अमरनाथ की यात्रा कल यानी 30 जून से शुरू होने जा रही है। अमरनाथ धाम को शिव-भक्त ‘बाबा बर्फानी’ के नाम से पुकारते हैं। सदियों पुराना इतिहास रखने वाले इस धाम के बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर माता पार्वती को अमर होने के गूढ़ रहस्य के विषय में बताया था। ऐसी मान्यता है कि यहां के हिमलिंग के दर्शन करने से मनुष्य को सभी प्रकार के पापों से छुटकारा मिल जाता है। छह पड़ावों वाली अमरनाथ की यात्रा को बहुत कठिन माना जाता है। यात्रा के दौरान पड़ने वाले प्रत्येक पड़ाव का अपना महत्व और कथाएं हैं। कहा जाता है कि इन पड़ावों पर भगवान शिव के समीप होने का एहसास होता है। तो कौन से हैं वो पड़ाव आइए आपको इनके बारे में कुछ रोचक जानकारियां देते हैं…
पहलगाम
ऐसा माना जाता है कि किसी समय में भगवान शिव माता पार्वता को अमर कथा सुनाने के लिए एक गुप्त स्थान की तलाश कर रहे थे। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले नंदी को छोड़ दिया था। जिस जगह पर उन्होंने नंदी को छोड़ा, उसे ‘पहलगाम’ के नाम से जाना जाने लगा और अमरनाथ की यात्रा इसी स्थान से शुरु होती है।
चंदनबाड़ी
गुप्त स्थान की तलाश करते हुए भगवान शिव और आगे बढ़े और वहां उन्होंने चंद्रमा को अपनी जटाओं से अलग कर दिया। जहां चंद्रमा को उन्होंने अलग किया वो स्थान ‘चंदनबाड़ी’ कहलाया। इसके अलावा, इसी स्थान पर उन्होंने अपने माथे पर लगा चंदन और भभूत भी उतार कर रख दिया था। तब से इस स्थान के कण-कण को बहुत पवित्र माना जाने लगा। यहां की मिट्टी का माथे पर तिलक लगाकर श्रद्धालु अमरनाथ की यात्रा शुरू करते हैं।
पिस्सू घाटी
इस स्थान के लिए कहा जाता है कि यहां तक पहुंचते-पहुंचते यात्रियों की चाल पिस्सू जैसी हो जाती है। इसलिए इसे ‘पिस्सू घाटी’ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, ये कथा भी प्रचलित है कि एक बार देवता और राक्षस भगवान शिव के दर्शन करने के लिए आ रहे थे। यात्रा में पहले आगे बढ़ने की ईर्ष्या और होड़ में दोनों युद्ध आरंभ हो गया, जिसके बाद देवताओं ने राक्षसों को पिस्सू की तरह मारा। तब से इस स्थान को ‘पिस्सू घाटी’ कहा जाने लगा।
शेष नाग झील
यात्रा के अगले पड़ाव शेषनाग झील में भगवान शिव ने अपने गले से सर्प उतार दिया था। इस झील की आकृति भी नाग के समान प्रतीत होती है। इसके अलावा कहा जाता है कि 24 घंटे में से एक बार शेषनाग इस झील में दर्शन जरूर देने आते हैं। इसलिए इसे ‘शेषनाग झील’ कहते हैं।
महागणेश पर्वत
हरे और भूरे रंग के इस विशालकाय पर्वत का आकार काफी आश्चर्यजनक है। कहा जाता है कि भोलेनाथ ने यहां पर अपने पुत्र गणेश को बैठा दिया था। इसलिए इस स्थान को ‘महागणेश पर्वत’ या ‘गणेश टॉप’ के नाम से जाना जाता है।
पंचतरणी
यहां पर पांच अलग-अलग धाराओं में पांच नदियां बहती हैं। इस स्थान के विषय में कहा जाता है कि यहां पर शिव जी की जटाएं पांच दिशाओं में बिखरी हुई थी। जटाओं का प्रतीक मानी जाने वाली इन पांच धाराओं यानी ‘पंचतरणी’ को पार करने के बाद आगे की यात्रा शुरू होती है।
बाबा बर्फानी की गुफा
पंचतरणी से आगे तीन कि.मी तक एक बर्फीला मार्ग है। इस स्थान पर पैदल चलने का रास्ता भी बर्फ के पुल से होकर गुजरता है। इसके नीचे पवित्र अमरावती नदी बहती है, जिसके ऊपर बर्फ जमी रहती है। बिना किसी द्वार, बिना किसी प्रतिबंध के, पर्वत के बीच बनी 20 फीट लंबी तीस फीट चौड़ी और लगभग 15 फीट ऊंची गुफा के अंदर भगवान शिव का प्राकृतिक शिवलिंग निर्मित है। बर्फ से बनी इसी शिवलिंग को ‘बाबा बर्फानी’ कहा जाता है। यहां का प्राकृतिक पीठ पक्की बर्फ से बना है, जबकि गुफा के बाहर कच्ची और मुलायम बर्फ देखने को मिलती है।