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Pradosh Vrat: भगवान शिव के इस व्रत को करने के बाद खत्म हो जाते हैं हर संकट

Pradosh Vrat: त्रयोदशी तिथि भगवान शिव की उपासना के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन भगवान भोले भंडारी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। प्रदोष व्रत चंद्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। जिसमें से एक शुक्ल पक्ष के समय तो वहीं दूसरा कृष्ण पक्ष के समय किया जाता है।

नई दिल्ली। भगवान शिव को भोले भंड़ारी भी कहा जाता है क्योंकि शिव जी अपने भक्तों की हर प्रार्थना सुनते हैं और इसे प्रसन्न करना भी काफी आसान होता है। कहा जाता है अपने शिव जी अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होते हैं तो उसकी हर मनोकामना तो पूरी करते ही है साथ ही उसपर आने वाले हर संकट को हर लेते हैं लेकिन आज हम आपको भगवान शिव के ऐसे व्रत के बारे में बताएंगे जिसे अगर आप करते हैं तो आपके हर संकट को प्रभू खुद हर लेते हैं। तो चलिए आपको बताते हैं कौन सा है वो व्रत…

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प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित एक ऐसा पावन व्रत है जिसे लेकर कहा जाता है कि अगर आप करते हैं तो भगवान शिव अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यह व्रत अति मंगलकारी और भगवान शिव की कृपा प्रदान करने वाला कहा जाता है। कहते हैं ये व्रत हर तरह के दोष और संकट को खत्म कर देता है।

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त्रयोदशी तिथि भगवान शिव की उपासना के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन भगवान भोले भंडारी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। प्रदोष व्रत चंद्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। जिसमें से एक शुक्ल पक्ष के समय तो वहीं दूसरा कृष्ण पक्ष के समय किया जाता है। शास्त्रानुसार प्रदोष काल सूर्यास्त से दो घड़ी तक रहता है। ये समय एक तरह से दिन और रात के मिलन का होता है। ऐसे में इसे काफी उत्तम माना जाता है। प्रदोषकाल में ही भगवान शिव की पूजा संपन्न होना जरूरी होता है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नहाकर भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप दीप के साथ पूजा की जानी चाहिए। इसके बाद संध्या काल में दोबारा नहाकर इसी तरह शिव की पूजा करनी चाहिए। प्रदोषकाल में घी के दीपक जलाया जाना चाहिए। प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा किए बिना भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। पूजा के बाद आप फल खा सकते हैं, लेकिन नमक से परहेज किया जाना चाहिए। त्रयोदशी तिथि पर ही प्रदोष व्रत का उद्यापन करना चाहिए।