नई दिल्ली। 9 सितंबर को हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2021) मनाई जा रही है। इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए व्रत रखती हैं। ये निर्जल व्रत होता है यानी पूरे दिन महिलाएं बिना कुछ खाए गुजारती है। इस व्रत में बालूरेत से भगवान शंकर के साथ ही माता पार्वती का मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है। महिलाओं के साथ ही कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत को रख सकती है। कुंवारी कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए इस व्रत को करती है। तो चलिए आपको बताते हैं क्या है इस व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और कथा…
हरतालिका तीज मुहूर्त
तृतीया तिथि प्रारंभ- 8 सितंबर, बुधवार को दोपहर 3.59 से
तृतीया तिथि समाप्त- 9 सितंबर, गुरुवार की रात्रि 2.14 मिनट तक
प्रातःकाल पूजा का मुहूर्त – 9 सितंबर, गुरुवार को सुबह 06.03 से 08.33 तक
प्रदोष काल पूजा मुहूर्त- 9 सितंबर, गुरुवार को शाम 06.33 से रात 08.51 मिनट तक
ये है हरितालिका तीज व्रत की विधि
पहले घर को अच्छे से साफ कर लें। अब एक पवित्र चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाएं। इस मिट्टी से शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि समेत गणेश, पार्वती और उनकी सखी की आकृति (प्रतिमा) बनाएं।
इन प्रतिमाएं को बनाते वक्त भगवान का स्मरण करें। देवताओं का आह्वान कर षोडशोपचार पूजा करें। इस व्रत की पूजा रात भर चलती है।
महिलाएं इस दौरान जागरण भी करती हैं साथ ही कथा-पूजन के साथ कीर्तन भी किया जाता है।
प्रत्येक प्रहर (औसतन एक प्रहर तीन घंटे या साढ़े सात घटी का होता है) में भगवान भोले को सभी तरह की वनस्पतियां जैसे बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते के अलावा केवड़ा अर्पित किया जाता है।
जब आप देवी पार्वती की पूजा करते हैं तो उस दौरान आपको ऊं उमायै नम:, ऊं पार्वत्यै नम:, ऊं जगद्धात्र्यै नम:, ऊं जगत्प्रतिष्ठयै नम:, ऊं शांतिरूपिण्यै नम:, ऊं शिवायै नम: मंत्र बोलना चाहिए।
भगवान शिव की आराधना के दौरान ऊं हराय नम:, ऊं महेश्वराय नम:, ऊं शम्भवे नम:, ऊं शूलपाणये नम:, ऊं पिनाकवृषे नम:, ऊं शिवाय नम:, ऊं पशुपतये नम:, ऊं महादेवाय नम: मंत्रों का जप करें।
इस व्रत की पूजा दूसरे दिन सुबह समाप्त होती है। तब महिलाएं अपना व्रत खोलती (तोड़ती) हैं और अन्न ग्रहण करती हैं।
हरतालिका तीज व्रत कथा
हरतालिका का शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है हरत और आलिका, हरत का मतलब होता है अपहरण और आलिका अर्थात् सहेली। इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा भी मिलती है जिसके अनुसार पार्वती जी की सखियां उनका अपहरण कर उन्हें जंगल में ले जाती है। ताकि पार्वती जी के पिता उनका विवाह इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें। ऐसे में अपनी सखियों की बात मानकर पार्वती जी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव को पाने के लिए अराधना करती हैं। पार्वती जी ने भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में मिट्टी से शिवलिंग बनाकर विधि विधान के साथ पूजा की थी साथ ही रातभर जागरण भी किया था। जिसके बाद पार्वती जी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।