नई दिल्ली। शास्त्रों में शनिवार का दिन कर्मफल देवता शनिदेव को समर्पित है, उन्हें ‘न्याय का देवता’ भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है, कि शनिवार के दिन उनका पूजन करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और पापों से मुक्ति मिलती है। शनिदेव व्यक्ति को उसके कर्मों के हिसाब से फल देते हैं। शनिदेव का प्रकोप बहुत भयंकर होता है कहा जाता है, कि यदि किसी जातक पर शनि की साढ़े साती, शनि ढैय्या होती है या फिर उसकी शनि दशा खराब होती है, तो जातक मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से काफी परेशान रहता है, लेकिन शनिवार के दिन श्रद्धा और भक्ति से शनिदेव की पूजा करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सभी कष्ट दूर होते हैं। हिंदू शास्त्रों में लिखा है, कि शनिदेव भगवान श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna) के परम भक्त हैं, इसलिए कृष्ण भक्तों पर शनिदेव अपनी कुदृष्टि नहीं डालते। अगर शनिदेव के नाराज होने पर व्यक्ति को जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है, तो किसी व्यक्ति पर उनकी कृपा होने से जीवन में धन, वैभव और यश में भी वृद्धि होती है। शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए जातकों को निम्न उपाय करने चाहिए-
1. प्रत्येक शनिवार को महाराज दशरथ स्तोत्र का 11 बार पाठ करना चाहिए। इससे शनि देव की कृपा प्राप्त होती है।
2.शनिवार के दिन शाम के समय पश्चिम दिशा की ओर तेल का दीपक जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही ‘ॐ शं अभ्यस्ताय नमः’ का जाप भी करना चाहिए।
3.इसके अलावा मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर में तिल के तेल का दीपक जलाने से भी शनि देव के कष्टों से मुक्ति मिलती है। श्री हनुमान अपने भक्तों पर आने वाले सभी कष्टों को हर लेते हैं।
4.प्रत्येक शनिवार को ब्रह्म मुहूर्त में पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाकर सात परिक्रमा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। जल चढ़ाते और परिक्रमा करते समय ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का जाप करते रहें। अंत में पीपल को छू कर प्रणाम करें।
5.ऐसा माना जाता है, कि शनिवार के दिन गरीब और जरूरतमंदों को भोजन और दवा देना चाहिए, क्योंकि इससे भी शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है।
6.प्रत्येक शनिवार को शनि वैदिक मंत्र का जाप भी शनि देव के कष्टों से मुक्ति दिलाता है। शनिवार के दिन इस मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
‘ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्रवन्तु न:।’
‘ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसंभुतं नमामि शनैश्चरम।’
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