नई दिल्ली। भगवान जगन्नाथ, रथ यात्रा के बाद अपनी मौसी के यहां जाते हैं। यहां वह नौ दिन ठहरते हैं उनकी मौसी का घर ही गुंदेचा मंदिर है जोकि जनकपुर में है। वह यहां दसों अवतार का रूप धारण करते हैं। भगवान के इन रूपों का दर्शन करने के लिए 9 दिनों तक भक्तों का तांता लगा रहता है। भगवान को मौसी के घर स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है। जब भगवान जगन्नाथ बीमार हो जाते हैं, तब यहां पथ्य का भोग लगाया जाता है जिससे भगवान जल्द ही ठीक हो जाते हैं। रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी को लक्ष्मी जी भगवान जगन्नाथ को ढूंढ़ते हुए यहां आती हैं।
तब द्वैतापति दरवाजा बंद कर देते हैं जिससे लक्ष्मी जी नाराज़ होकर रथ का पहिया तोड़ देती है। यहां यानी जनकपुर में गुंदेचा मंदिर के पास ही ‘हेरा गोहिरी साही’ पुरी का एक मुहल्ला जहां लक्ष्मी जी का मंदिर है, माता वहां लौट आती हैं। बाद में भगवान जगन्नाथ लक्ष्मी जी को मनाने जाते हैं। उनसे क्षमा मांगकर और अनेक प्रकार के उपहार देकर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। इस आयोजन में एक ओर द्वैतापति भगवान जगन्नाथ की भूमिका में संवाद बोलते हैं तो दूसरी ओर देवदासी लक्ष्मी जी की भूमिका में संवाद करती है।
Ahemdabad bhagavan ni Rathyatra ???? pic.twitter.com/aq4Tfksw3e
— Seema Rathore (@SeemaRathore17) July 12, 2021
लोगों की अपार भीड़ में यह संवाद पढ़कर सुनाए जाते हैं। माता लक्ष्मी जी को भगवान जगन्नाथ के द्वारा मना लिए जाने को विजय का प्रतीक मानकर इस दिन को विजया दशमी और वापसी को बोहतड़ी गोंचा के रूप में मनाया जाता है और नौ दिन पूरे हो जाने के बाद भगवान जगन्नाथ, जगन्नाथ मंदिर चले जाते हैं। और हर साल यह क्रम निरंतर जारी रहता है।