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समझें देव गुरु-बृहस्पति का केतु से सम्बंध तथा चीन में फेल रहे कोरोना वायरस का सम्बंध

हमारे देश का नाम भारत है और भारत नाम मकर राशि मे आता है। वैसे – राजा भरत के नाम पर इस देश का नाम रखा गया था। लेकिन इस देश की विशेषतायें भी मकर राशि से मिलती जुलती हैं । इसके लोग भी मकर राशि के स्वभाव से मिलते-जुलते है।

हमारे देश का नाम भारत है और भारत नाम मकर राशि मे आता है। वैसे – राजा भरत के नाम पर इस देश का नाम रखा गया था। लेकिन इस देश की विशेषतायें भी मकर राशि से मिलती जुलती हैं । इसके लोग भी मकर राशि के स्वभाव से मिलते-जुलते है। आध्यात्मिक संघर्ष की प्रतिक मकर-राशि के जातक अथवा भारतवासी युक्तिसंगत कार्यों में उलझे रहते हैं । इनकी त्वचा का रंग ना काला होता है ना गोरा होता है।

शनि की राशि वाले भारतीय लोग कड़ी मेहनत करते हैं। इनकी अपार क्षमता और तीक्ष्ण बुद्धि इन्हें वातावरण को समझने में और स्वयं को वैसा ढालने में सहायता करती है।उच्चाभिलाषी और सौम्य मकर-राशि के जातक सेवाभावी होते हैं। ये सब भारतीय लोगों में दिखता है ।पड़ोसी देश चीन का स्वामी गुरु बृहस्पति है जिसकी कारक राशि धनु राशि। जैसे धनु राशि – मकर राशि के करीब वाली राशि है। वैसे ही चीन – भारत के करीब वाला देश है । कभी इसे भद्राश्व कहा जाता था ।

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चीन में ज्योतिष का इतिहास पाँच हजार वर्ष से अधिक पुराना है। वहाँ के मनीषियों ने अपनी ज्योतिष विद्या को पौर्वात्य देशों में विस्तारित किया है। भारत ही नहीं, विश्व के अलग-अलग भू-भागों में मानव-सभ्यता और संस्कृति समानान्तर रूप से साथ-साथ जन्मीं और विकसित हुई हैं। मानव-विकास की गाथा अनबूझ रहस्यों की परतें खोलने कि दिशा में प्रेरित किया। रहस्य की परत-दर-परत खोलते हुए मानव अतल गहराईयों में उतरता चला गया।

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फलस्वरूप विकास और विज्ञान निरन्तर बढ़ता गया। तथाकथित ज्ञान बहुरूपों में प्रकट हुआ। विश्व के किसी भी भू-भाग में जन्मने और विकसित होनेवाला चाहे धर्म हो, योग हो, दर्शन-मनोविज्ञान हो, वेद-वेदांग या ज्योतिष या अन्य कोई विधा हो, उसका मूल्य उदेश्य आत्म-ज्ञान प्राप्त करना, उसकी दिशा में बढ़ना और बढ़ते जाना ही रहा है। अध्यात्म का लक्ष्य तो यही है। विधा कोई भी हो, ये सब आत्मज्ञान की प्राप्ति हेतु मानव द्वारा किये गए शताब्दियों नहीं, सहस्राब्दियों के ज्ञान-पिपासु प्रयासों के साक्षात् प्रमाण हैं।

चीनी ज्योतिष के अन्तर्गत ‘पशु-नामांकित राशि-चक्र’ भी इसी मूल उद्देश्य की प्रतिपूर्ति करता है। चीन, जापान, कोरिया, वियतनाम आदि देशों में यह बहुप्रचलित है। भारत में इसका प्रचलन तो दूर, इसके बारे में भी बहुत कम लोग थोड़ा-बहुत जानते होंगे। तथा किसी भी भारतीय भाषा के लिए चीन का यह ज्ञान अपरिचित है।

चीनी ज्योतिष के अन्तर्गत ‘पशु-नामांकित राशि-चक्र’ में बारह राशियाँ हैं, जिन्हें चीन, जापान, कोरिया और वियतनाम में ‘वर्ष’ या ‘सम्बन्धित पशु-वर्ष’ के नाम से पुकारते हैं। ऐसी धारणा है कि चीन में लगभग 2000 साल पूर्व एक दिन, जिसे वियतनाम में ‘टेट’ कहा जाता है, चीन को संकट से उबारने के लिए भगवान बुद्ध ने सभी जानवरों को आमन्त्रित किया, किन्तु उस दिन वहाँ पर केवल बारह पशु ही पहुँचे-चूहा, बैल, चीता, बिल्ली, ड्रैगन, सर्प, अश्व, बकरी, वानर, मुर्ग, श्वान् यानी कुत्ता और सुअर। भगवान बुद्ध ने, जिस क्रम से ये पशु वहाँ पहुँचे थे, उसी क्रम में उन्हें वर्ष का अधिष्ठाता’ बना दिया; ये पशु-वर्ष हर बारह साल बाद पुनः चाक्रिकक्रम में वापस आ जाते हैं। भारतीय ज्योतिष की तरह इन एशियाई देशों की गणना चन्द्र-आधारित है। अन्तर यह है कि हमारे यहाँ एक राशि में ढाई दिन रहता है। जबकि चीन आदि देशों में यह गणना चान्द्र-वर्ष पर आधृत है- एक चान्द्र-वर्ष में 12 कृष्ण-पक्ष होते हैं 13वाँ बारह वर्ष बाद जुड़ता है- फलतः टेट का दिन कभी एक ही तारीख को नहीं पड़ता है।

समझें ओर जाने चीनी ज्योतिष शास्त्र के 12 प्राणी को

चीनी ज्योतिष शास्त्र के 12 प्राणी अपनी सांसारिक विशेषताओं (तत्व) सहित निम्न प्रकार है:

मूषक (यांग लकड़ी)- 1912, 1924, 1936, 1948, 1960, 1972, 1984, 1996, 2008

बैल (यिन लकड़ी)- 1913, 1925, 1937, 1949, 1961, 1973, 1985, 1997, 2009

बाघ (यांग अग्नि)- 1914, 1926, 1938, 1950, 1962, 1974, 1986, 1998, 2010

शशक/खरगोश (यिन अग्नि)- 1915, 1927, 1939, 1951, 1963, 1975, 1987, 1999, 2011

ड्रैगन (यांग भूमि)- 1916, 1928, 1940, 1952, 1964, 1976, 1988, 2000, 2012

सर्प (यिन भूमि)- 1917, 1929, 1941, 1953, 1965, 1977, 1989, 2001, 2013

अश्व (यांग धातु)-1918, 1930, 1942, 1954, 1966, 1978, 1990, 2002, 2014

बकरी/भेड़ (यिन धातु)-1919, 1931, 1943, 1955, 1967, 1979, 1991, 2003, 2015

वानर (यांग जल)-1920, 1932, 1944, 1956, 1968, 1980, 1992, 2004, 2016

कुक्कुट/ मुर्गा (यिन जल)- 1921, 1933, 1945, 1957, 1969, 1981, 1993, 2005, 2017

श्वान (यांग लकड़ी)- 1922, 1934, 1946, 1958, 1970, 1982, 1994, 2006, 2018

वराह/ शूकर (यिन लकड़ी)-1923, 1935, 1947, 1959, 1971, 1983, 1995, 2007, 2019

उपरोक्त तालिका में, “यिन” तथा “यांग” मूल रूप से, अपने प्रतिनिधित्व प्राणियों के, सम तथा विषम संख्याओं के पैर, पंजों एवं खुरों के कारण है। उदाहरण के तौर पर, ड्रैगन के प्रत्येक पैर में 5 उँगलियाँ होती थी, इसलिए वह विषम (यांग) है, और कुक्कुट/मुर्गे के प्रत्येक पैर 4 उँगलियाँ होने से वह सम (यिन) है।

समूह

पहला समूह: मूषक,वानर, तथा ड्रैगन पहले समूह  है। पहले समूह की राशियाँ शुभ मानी जाती है, क्योंकि पहले समूह के अन्तर्गत आने वाले व्यक्ति विशेष, बलशाली, तथा उनमें नेतृत्व की क्षमता होती है, परन्तु यह अक्सर अप्रत्याशित होते है।

पहले समूह में आने वाले जातक,स्वभाव से आकर्षक, विद्धान, आत्मविश्वासी तथा कलात्मक माने जाते है, परन्तु,साथ ही ईर्षालु तथा स्वार्थी भी होते है।

दूसरा समूह:  बैल,कुक्कुट/मुर्गा, तथा सर्प दुसरे समूह में आते है। दुसरे समूह के अन्तर्गत आने वाले जातकों में धैर्य तथा सहनशीलता पायी जाती है।

दुसरे  समूह के व्यक्ति विशेष सत्यवादी, धैर्यवान तथा न्यायपसंद होते है, परन्तु, अहंवादी, संकीर्ण विचारधारा तथा आत्मतुष्ट भी होते है।

तीसरा समूह: बाघ, अश्व तथा सर्प तीसरे समूह में आते है।  यह आत्मनिर्भर, सच्चे प्यार के  खोजी, तथा सामाजिक कार्य करने वाले होते है।

इतना ही नहीं, यह धनी, ऊर्जस्वी, तथा रक्षक भी होते है, परन्तु, झगड़ालु तथा व्याकुल भी माने जाते है।

चौथा समूह: शशक/खरगोश, बकरी/भेड़, तथा वराह/शूकर ये सभी चौथे समूह के अन्तर्गत आते है।  चौथे समूह के जातक शांत तथा बुद्दिजीवी,कलात्मकता  सोच रखने वाले, तथा संस्कारी एवं दयालु होते है।

चौथे समूह के व्यक्ति विशेष, परवाह करने वाले, बुद्दिमान, सृजनात्मक तथा सहानुभूति रखने वाले होते  ,परन्तु,असुरक्षित,मुर्ख,तथा निराशावादी भी होते है।

अंतर्मन के निर्देशों का कठोरता से पालन, प्रकृति के अनुसरण की इच्छा और ज्ञान प्राप्त करने की उत्कण्ठ अभिलाषा के कारण, चीनी लोगों का जीवन धनुष की प्रत्यंचा के सामान तनावपूर्ण रहता है । कदाचित कम्युनिज्म इसका उदाहरण हो सकता है और उससे पहले वहां के राजा और शासक भी इसी प्रवृति के रहें हैं ।

ऐसा लगता है कि – पृथ्वी के निर्माण के दौरान – पहले से निर्मित हो चुके शनि का प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप पर अधिक पड़ा होगा और गुरु बृहस्पति का चीनी क्षेत्र पर अधिक पड़ा होगा – तभी ऐसे लक्षणों से युक्त है – यहां के लोग ।

धनु राशि के विषय मे ज्योतिष ऐसे निर्देश करता है कि

अगर धनु राशि वाले जातकों को दिशा निर्देश देने वाला कोई गुरु ना मिले तो ये लोग दिशाहीन ही जाते हैं । आप देखें – चीन भी इसका अपवाद नही है। जब तक वो गौतम बुद्ध के निर्देशों पर चलते रहे है तभी तक वो उचित मार्ग पर चल पाते है अन्यथा भटक जाते है । कभी गौतम बुद्ध को वो ईश्वर मानते थे परंतु अब ऐसा नही है। आजकल स्वयं को भारत से अलग दिखाने के चक्कर मे वे लोग गौतम बुद्ध के निर्देशों की अवहेलना कर रहे है। फलस्वरूप समस्याओं से घिरते जा रहे हैं ।

कोरोना वायरस इसका जीता जागता उदाहरण है। चीनी लोग शाकाहार से दूर होते जा रहे है और माँसाहार उनका प्रिय होता जा रहा है । गौतम बुद्ध के निर्देशों से दूर होने का ये प्रत्यक्ष प्रमाण है ।

कोरोना वायरस मांसाहार के भक्षण से ही पनपा है । इसके ज्योतिषीय संकेत – धनु राशि मे गुरु-बृहस्पति के संचार से प्रकट हो गये थे ।

जब वो निच्चाभिलाषी मकर राशि की ओर बढ़ने को था और उसका बल निरन्तर कम होता जा रहा था कि – तभी वायरस के रूप में केतु उससे आकर मिला और गैसीय पिण्ड निर्बल गुरु बृहस्पति ने इसे फैलने में मदद की तथा कोरोना वायरस प्रकट हुआ।

इस वर्ष प्रबल और रोगकारक शनि – वायरस से मुक्ति देता दिखाई नही दे रहा है अर्थात – चीन को कोरोना से सारे वर्ष भर जूझना होगा ।

इस तरह चीन की मुश्किलें हल होती नही दिख रही हैं । जिस तरह गुरु बृहस्पति निरन्तर दो वर्ष तक निर्बल होने जा रहा है – उससे लगता है कि – चीन एक व्यापक तबाही की ओर बढ़ रहा है।

वायरस फैलने का एक कारण ग्लोबल वार्मिंग भी हो सकता है । इसकी वजह से ग्लेशियरों की और ध्रुवों की हज़ारों फ़ीट गहरी बर्फ की परतें पिघल रही है । फलस्वरूप इन परतों में हज़ारों वर्षों से जमे हुये जीवाणु, कीटाणु और रोगाणु आज़ाद हो रहे है और पहले से ना पहचाने हुये होकर पृथ्वी के वातावरण में फैल रहे है । जहाँ इन्हें अनुकूल जगह मिलती है – ये और ज्यादा पनपने लगते है ।

इससे नई और पहले ना पहचानी गई बीमारियां उपज रही है और ऐसा आगे और नही होगा – इसकी कोई गारण्टी नही है ।

आसार अच्छे नही है और ग्रहयोग भी अच्छे नही है – जनसाधारण सावधान, सतर्क एवम सजग रहे ।