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आखिर राहुल गांधी देश के बहुंसख्यकों से इतनी घृणा क्यों करते हैं !

कभी हिंदुओं को सदन में हिंसक बताना, कभी मनुस्मृति हाथ में लेकर सरकार पर निशाना साधना, सावरकर पर सवाल उठाना, सम्भल में मारे गए उन्मादियों को मासूम बताना देश के बहुसंख्यक हिंदू समाज को नीचा दिखाना नहीं तो और क्या है

राहुल गांधी जब भी सदन में भाषण देते हैं कोई न कोई विवादास्पद बात बोल ही देते हैं। हिंदुओं को लेकर न जाने उनके मन में किसी तरह भाव है कि वह हमेशा किसी न किसी बहाने से उनकी निंदा कर देते हैं। हाल ही में संविधान की गौरवशाली यात्रा के 75 वर्ष पूरा होने पर सदन में चर्चा थी। तब भी राहुल गांधी ने हिंदुत्व को लेकर वीर सावरकर को लेकर और मनुस्मृति को लेकर सवाल खड़े किए, जबकि इन सब बातों को उठाने की वहां कोई आवश्यकता नहीं थी, कोई अर्थ भी नहीं था। राहुल गांधी ने सदन में कहा’ तपस्या का मतलब शरीर में गर्मी पैदा करना’ होता है। अब इसका अर्थ क्या निकलता है। यह सीधे तौर पर हिंदू आस्था पर प्रहार नहीं तो और क्या है? तपस्या अपने लक्ष्य को पाने और परमात्मा से साक्षात्कार के लिए की जाती है। वहीं राहुल गांधी इसे शरीर में गर्मी पैदा करने वाला बताते हैं।

बिना पढ़े, बिना जाने राहुल गांधी कुछ भी सदन में बोलते हैं। राहुल गांधी अपने भाषण में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की बात कही। जबकि सुप्रीम कोर्ट इसके लिए स्पष्ट मना कर चुका है। राहुल गांधी ने आरक्षण का मुद्दा और हाथरस में चार वर्ष पहले हुए दुष्कर्म का मुद्दा भी उठाया। यह मुद्दा उठाने का मतलब तो सीधा सा था कि चर्चा को किसी और दिशा में मोड़ दिया जाए। बार—बार आरक्षण की बात करना, बिना बात के मुद्दों को तूल देना, मनुस्मृति को हाथ में लेकर यह कहना भाजपा के लिए संविधान से ऊपर मनुस्मृति है, क्या यह जनमानस को भड़काने और जातिगत वैमनस्य फैलाने वाली बात नहीं है।

क्योंकि, सदन में कही गई किसी भी बात पर बाहर कोई मामला दर्ज नहीं कराया जा सकता, इसलिए राहुल गांधी बार—बार इस तरह के बेतुके बयान सदन में देते हैं। इससे पहले अपने भाषण में राहुल गांधी हिंदुओं को हिंसक बता चुके हैं। राहुल गांधी ने अपने भाषण में कहा कि सम्भल में पुलिस ने पांच निर्दोष लोगों को गोली मार दी। जिनको वह निर्दोष बता रहे हैं वे लोग दंगाइयों की भीड़ में शामिल थे। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में साबित हुआ है कि जिन गोलियों से उनकी मौत हुई वह अवैध हथियारों से चलाई गई थीं। यहां तक कि सम्भल में पाकिस्तान की आर्डिनेंस फैक्ट्री में बनाई गई गोलियों के खोखे मिले। इतना सब होने के बाद भी पुलिस ने वहां गोली नहीं चलाई।

राहुल गांधी बवाल करने की कोशिश करते उन्मादियों को मासूम बता रहे हैं, सिर्फ इसलिए कि सभी मुसलमान थे। क्या राहुल गांधी के इस बयान को भड़काने वाला नहीं माना जाना चाहिए। वहां जो टीम सर्वे करने गई थी कि वहां पर मस्जिद था या हरिहर मंदिर वह न्यायालय के निर्देश देने के बाद वहां गई थी, कांग्रेस ने पहले रामसेतु और राम तक को काल्पनिक बता दिया था। रामसेतु का काल्पनिक बताते हुए हलफनामा भी दाखिल किया था, यह स्पष्ट तौर पर हिंदू आस्था से खिलवाड़ था। उसी कांग्रेसी परंपरा का निर्वहन कर रहे राहुल गांधी भी यही कर रहे हैं।

आखिर राहुल गांधी हिंदुओं से इतनी घृणा क्यों करते हैं? राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी कैथोलिक ईसाई हैं, विदेशी मूल की हैं, लेकिन राहुल गांधी के पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तो भारत के ही हैं। ईसाई माता और पारसी पिता की संतान हैं, ऐसे में राहुल गांधी का उन्मादियों को मासूम बताना, मनुस्मृति को सदन में लहराकर भाजपा पर निशाना साधना, आरक्षण की सीमा को बढ़ाए जाने की बात करना क्या वैमनस्य फैलाने जैसा नहीं है। राहुल के भाषण के बीच लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने उन्हें एक बार रोका भी और कहा कि हम यहां पर संविधान की 75 साल की गौरवशाली यात्रा पर पर बोलने के लिए हैं, आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप उसी के अनुसार बोलें, लेकिन राहुल गांधी नहीं रुके।

राहुल के भाषण पर सिर्फ भाजपा ने ही नहीं बल्कि अभी तक इंडी गठबंधन में शामिल सपा के प्रवक्ता ने भी सवाल उठाए। सपा प्रवक्ता आईपी सिंह ने राहुल गांधी द्वारा संसद में मोदी और अडानी के मुखौटे के साथ वाले प्रदर्शन की तुलना एनएसयूआई के छात्र आंदोलन और प्रदर्शन से कर दी। सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए राहुल गांधी इस तरह का भाषण देते हैं जनहित से उनके भाषण का कोई सरोकार नहीं होता है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।