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स्वदेशी देश की आवश्यकता, चीन का विरोध ज़रूरी

ये स्वदेशी का विचार कोई बंदवाद भी नहीं है बल्कि ये आत्मनिर्भरता व स्वलंबन के विचार को आत्मसात करके दुनिया से सम्पर्क बनाने का विचार है।

स्वदेशी का विचार भारत के पुरातन दैशिक चिंतन पर आधारित है ये दैशिक देश की रक्षा करने वाला एक विचार, शास्त्र है। स्वदेशी तो बस दैशिक विचार को समाज राष्ट्र से परिचित कराने का माध्यम है। इसलिए 1991 में बना “स्वदेशी जागरण मंच” कोई संगठन ना होकर समाज का आंदोलन है ये आंदोलन पूर्णरूपेण प्रखर राष्ट्र भक्ति से अभिप्रेरित है,समाज को पुनः अपनी जड़ों की और मोड़ना ही स्वदेशी आंदोलन का अभीष्ट है।

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स्वदेशी क्या है इसको लेकर दत्तोपंत जी ने एक जापान का उद्धरण दिया जिसमें वे कहते है “एक बार अमरीकी सरकार ने ज़बरदस्ती जापान की मंडियो में संतरा भेज दिया जापान की मंडियो में सारा संतरा पड़ा-पड़ा ख़राब हो गया परंतु किसी जापानी ने उसे ख़रीदा नहीं ये ही तो स्वदेशी एवं प्रखर राष्ट्र भक्ति है”। ये स्वदेशी का विचार कोई बंदवाद भी नहीं है बल्कि ये आत्मनिर्भरता व स्वलंबन के विचार को आत्मसात करके दुनिया से सम्पर्क बनाने का विचार है,जिसे दीनदयाल उपाध्याय जी ने राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता कहाँ था। जो लोग स्वदेशी को बंदवाद कह कर उसका उपहास करते हैं उनको ये जान लेना चाहिए की आप जिस वैश्विककरण की वकालत कर रहे हैं वास्तव में वो ही तो बंदवाद है इसमें बड़े उन्नत राष्ट्रों की दादागिरी साफ़-साफ़ दिख जाती है ये पेटेंट का क़ानून क्या खुलवाद है या बंदवाद है आप ही तय कर लें, पिछड़े राष्ट्रों को आर्थिक सहायता के नाम पर पिछले दरवजे से साम्राज्य और उपनिवेशवादी विचारों को पुनः दुनिया पर थोपना नहीं है तो क्या है?

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चीन और अमरीका जैसे राष्ट्रों ने किस प्रकार से तमाम तीसरी दुनिया के देशों को अपना ग़ुलाम बना रखा है कहने को तो ये राष्ट्र स्वतंत्र है लेकिन वास्तव में आर्थिक निर्भरता ने इन्हें उन्नत राष्ट्रों के नियम क़ानूनों को मनाने को मजबूर किया है। अभी हाल का उद्धरण हम अफ़्रीका महाद्वीप स्थित ज़ाम्बिया है जिस पर उसके कुल विदेशी क़र्ज़ का 44 प्रतिशत सिर्फ़ चीन से है इसके कारण ज़ाम्बिया में 280 से अधिक चीनी कंपनिया काम कर रही है वहीं तांबे समेत तमाम खनिज पर आज चीन का नियंत्रण है और वहाँ की स्थानीय राजनीति में भी चीन का दख़ल किसी से छुपा नहीं है।

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स्वदेशी का विचार ज़्यादा लोगों की सहभगिता और ग्राम स्वलंबन के विचार से जुड़ा है भारत में सदेव से ग्राम आधारित पेशे रहे है हमारे यह ज्ञाती का विचार था ना की जाति का ज्ञाती व्यक्ति के किसी विशेष कुशलता पर आधरित थी।इस स्वदेशी प्रतिमान में लोगों को काम आसानी से मिल जाता था और वही समान का वितरण भी सरल था । जितनी आवश्यकता उतना निर्माण वही जितने की लागत उसमें थोड़ा मुनाफ़ा जोड़ते हुए समान की क़ीमत का निर्धारण इससे उपभोक्ता का भी लाभ उत्पादक का भी मुनाफ़ा ये ही तो स्वदेश का विचार है।

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इसलिए स्वदेशी जागरण मंच ने ये समान पर कुल लागत आदि को छापने के पुरज़ोर वकालत की है। अब दुनिया में गैट के नाम पर आर्थिक साम्राज्य को फैलाने की शुरूवात हुई वही 1991 में उदारवाद,निजीकरण,वैश्वीकरण का जब तेज़ी से प्रसार हुआ तब तीसरी दुनिया के राष्ट्रों के मन में एक आशा दिखाई गई की बस अब जादू की छड़ी की तरह दुनिया की सारी असमानता समाप्त हो जाएगी लोगों को रोज़गार मिलेगा इन पिछड़े, विकासशील राष्ट्रों में तरक़्क़ी आयगी परंतु हुआ क्या ये सारे राष्ट्र केवल केवल उन्नत राष्ट्रों के लिए मंडिया ही तो बनकर रह गई, जिसमें बड़े राष्ट्रों के बने समान की भारी खपत इन विकासशील राष्ट्रों में होने लगी एक उद्धरण से देखे की चीन से भारत का व्यापार लगभग 2019 के आँकड़ों के अनुसार 92.68 अरब डालर का है जिसमें भारत ने चीन से आयत किया है 74.72 अरब डालर और चीन ने भारत से मात्र 17.95 अरब डालर का आयत किया है।

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इस आधार पर भारत का चीन से व्यापार घाटा 56.77 अरब डालर का है ये घाटा आयत-निर्यात के आधार पर निकाला जाता है। लेकिन इसमें समझने वाली बात ये है की भारत से चीन अपने व्यापार का मात्र 3 प्रतिशत ही व्यापार करता है बल्कि भारत 9 प्रतिशत के क़रीब कुछ लोग इसको लेकर भी चीन के साथ सम्बंधो को लेकर कुछ डरे हुए है वैसे हम फ़रमास्यूटिकल इंडस्ट्री से सम्बंधित व्यापार ही 90 प्रतिशत करते है वही इलेक्ट्रोनिक में 45 प्रतिशत के क़रीब अब चीन ने निर्माण क्षेत्र में भारत में प्रवेश किया है। लेकिन सरकार ने भारतीय निर्माण क्षेत्र के उन्नयन के लिए काफ़ी प्रयास किए है जिनके कारण अब काफ़ी बड़े क्षेत्र में कोई भी विदेशी कम्पनी नहीं आ पाएगी।

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इसलिए सरकारें कोई निर्णय लेगी इस पर कुछ स्पष्ट नहीं कहा जा सकता लेकिन समाज ज़रूर निर्णय ले सकता ये ही पर स्वदेशी विचार का जन्म हो जाता है जिसमें हम किसी का विरोध नहीं करते बल्कि अपने देश के बने समान को ही अपना मान उसको स्वीकार करते है, इस पूरे कोरोना काल में हम सभी के जीवन को कौन बचा रहा था तो वही हमारे अपने स्वदेशी , स्थानीय उत्पादक ही तो थे अगर देश में खुलकर किसी ने दान किया तो कौन थे हमारे देश के अपने उद्योगपति रतन टाटा ने 1500 करोड़ कोरोना से निपटने के लिए दिये अन्य भी भारत के उद्योगपतियों ने दान किया लेकिन क्या जोनसन एंड जोनसन, हिंदुस्तान लिवर , टोयोटा कर निर्माता कम्पनी या तमाम नबी ब्राण्ड जो करोड़ों का व्यापार भारत से करते है क्या इन सबने कोई सहायता भारत की तो उतर आता है नहीं , तो ऐसे समय में भारत के लोगों ने क्यू नहीं अपनी चीज़ों के लिए स्थानीय निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिये ।इसको लेकर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने “लोकल के लिए वोकल” का नारा दिया आज हमें हमारे उत्पादन को स्थानीय उत्पादों को प्रोत्साहित करके अपने देश को स्वलंबी भारत की और ले जाना होगा।

इस लेख के लेखक:- 

डॉ. प्रवेश कुमार
सहायक प्राध्यापक,
सेंटर फॉर कंपैरेटिव पॉलिटिक्स एंड पोलिटिकल थ्योरी
स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज,
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी

इस लेख में व्यक्त सारे विचार इनके निजी हैं।