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राष्ट्रव्यापी बंद से भारत को होगा व्यापक आर्थिक नुकसान : मूडीज

मूडीज के सहायक उपाध्यक्ष एवं विश्लेषक देबोराह टैन का कहना है कि कोरोनावायरस महामारी की रोकथाम के लिए जारी बंद की वजह से खपत कम होने और कारोबारी गतिविधियां थमने से चुनौतियों का सामना कर रही घरेलू अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी। इसकी वजह से 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिल सकती है। कोरोनावायरस के प्रकोप से पहले ही अर्थव्यवस्था पिछले छह वर्षों में धीमी गति से ही आगे बढ़ रही थी।

नई दिल्ली। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने शुक्रवार को कहा कि भारत को कोरोनावायरस के कारण लागू राष्ट्रव्यापी बंद के परिणामस्वरूप व्यापक तौर पर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों पर काफी प्रभाव पड़ेगा। मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसे कोरोनावायरस – इंडिया: लॉकडाउन कंपाउंड्स इकोनोमिक चेलैंजेज एज क्रेडिट रिस्क राइज इन मैनी सेक्टर्स नाम दिया गया है।

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मूडीज के सहायक उपाध्यक्ष एवं विश्लेषक देबोराह टैन का कहना है कि कोरोनावायरस महामारी की रोकथाम के लिए जारी बंद की वजह से खपत कम होने और कारोबारी गतिविधियां थमने से चुनौतियों का सामना कर रही घरेलू अर्थव्यवस्था में गिरावट आएगी। इसकी वजह से 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट देखने को मिल सकती है। कोरोनावायरस के प्रकोप से पहले ही अर्थव्यवस्था पिछले छह वर्षों में धीमी गति से ही आगे बढ़ रही थी।

मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा, हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर में वास्तविक गिरावट आएगी। इससे पहले हमने वृद्धि दर शून्य रहने की संभावना जताई थी।

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा बयान में अनुमान लगाया है कि अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2021 में संकुचित या सिकुड़ जाएगी। हालांकि मूडीज ने 2021-22 में देश की अर्थव्यवस्था में सुधार होने की उम्मीद जताई। यह उसके पूर्ववर्ती 6.6 प्रतिशत की वृद्धि दर के अनुमान से भी मजबूत रह सकती है।

RBI Governor Shaktikanta Das

मूडीज इन्वेस्टर्स सर्विस ने कहा कि बैंक और वित्त कंपनियों की परिसंपत्ति की गुणवत्ता में व्यापक गिरावट देखी जाएगी, जबकि वित्त कंपनियों और छोटे निजी बैंकों को भी धन और नकदी से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

धीमे प्रीमियम, बढ़ते चिकित्सा दावे और नकदी दबाव बीमाकतार्ओं के लिए जोखिम पैदा करेंगे। हालांकि, सामान्य और स्वास्थ्य बीमाकर्ता मेडिकल प्रीमियम में कुछ वृद्धि जरूर दर्ज करेंगे, मगर इस क्षेत्र की चुनौतियां जारी रहेंगी।