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Dhak Dhak Movie Review: रत्ना, फातिमा, दिया और संजना के इस रोड ट्रीप को देखकर फिर से देखने लगेंगे सपने, पढ़ें पूरा रिव्यू

Dhak Dhak Movie Review: रोजमर्रा की भाग दौड़ भरी जिंदगी की जद्दोजहद में हमारे सपने कहीं खो जाते हैं या यूं कहूं कि मर जाते हैं। दिल धड़कता तो है पर धड़कनो को हम अनसुना कर देते हैं। लेकिन निर्माता तापसी पन्नू की चार महिलाओं की रोड ट्रिप वाली फिल्म ‘धक -धक’ आपको दिल की उसी अनसुनी धड़कन को सुनने पर मजबूर कर देती है, तो आइए जानते हैं क्या है फिल्म में खास…

नई दिल्ली। इंसान के सपनों का मर जाना ठीक वैसा है जैसे शरीर से आत्मा का मर जाना। आखिर सपने ही तो है जो हमारी जिंदगी को नयी उम्मीदें देते हैं, कुछ नया करने का हौसला देते हैं। इसे लेकर पाश की एक मशहूर लाइन भी है- ‘घर से निकलना काम पर और काम से लौटकर घर आना। सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना।’ लेकिन रोजमर्रा की भाग दौड़ भरी जिंदगी की जद्दोजहद में हमारे सपने कहीं खो जाते हैं या यूं कहूं कि मर जाते हैं। दिल धड़कता तो है पर धड़कनो को हम अनसुना कर देते हैं। लेकिन निर्माता तापसी पन्नू की चार महिलाओं की रोड ट्रिप वाली फिल्म ‘धक -धक’ आपको दिल की उसी अनसुनी धड़कन को सुनने पर मजबूर कर देती है, तो आइए जानते हैं क्या है फिल्म में खास…

तापसी पन्नू की फिल्म ‘धक धक’ उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर अपनी जिंदगी की परेशानियों से जूझ रही समाज के अलग-अलग हालातों में रह रहीं चार औरतों की कहानी है। ये चारों औरतें दिल्ली से सबसे ऊंची पहाड़ी चोटी खारदुंगला तक का सफर बाइक से तय करने के लिए निकलती हैं। सात दिनों के इस चैलेंजिग रोड ट्रिप के दौरान इन चारों महिलाओं की जिंदगी, और जिंदगी को देखने का उनका तरीका और सोच किस तरह बदलती है, फिल्म में ये देखने लायक है।

 

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अब अगर आपको लग रहा है कि ये फिल्म जोया अख्तर की फिल्म ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा’ का फीमेल वर्जन तो नहीं, तो ऐसा बिलकुल नहीं है। ये फिल्म अपनी वर्तमान जिंदगी से ऊबकर विदेश की ट्रिप पर निकली चार रईस औरतों की कहानी नहीं बल्कि समाज के चार अलग-अलग परिवेश में अपनी जिंदगी से लड़ रही उन चार औरतों की कहानी है जो अपनी खुद की जिंदगी से 7 दिन अपने सपनों के लिए चुराती हैं, जिसके बाद इनकी पूरी जिंदगी बदल जाती है।

क्या है फिल्म की कहानी

फिल्म ‘धक-धक’ की कहानी पति की मौत और बेटियों की शादी के बाद अकेले जिंदगी गुजार रहीं 60 पार मनप्रीत कौर (रत्ना पाठक शाह), एक हादसे का दर्द झेल रही सोलो ट्रैवल ब्लॉगर शशि कुमारी यादव उर्फ़ स्काई (फातिमा सना शेख), रिंच पाने से महज चंद मिनटों में किसी भी बिगड़ी हुई बाइक की तबियत सुधार देने का हुनर होने के बावजूद किचन के हांड़ी-चूल्हे के बीच उलझी हुई उज्मा (दिया मिर्जा) और अपने होने वाले पति से बिना किसी जान-पहचान के अरेंज मैरिज करने जा रही मंजरी (संजना सांघी) की है।

जहां इस ट्रिप के जरिए मनप्रीत कौर अपने बच्चों की नजर में सम्मान पाना चाहती हैं तो वहीं स्काई इस ट्रिप के जरिए अपनी नई पहचान बनाना चाहती हैं। ये ट्रिप उज्मा के लिए उसकी बेटी के बेहतरीन भविष्य की चाबी है, वहीं ये ट्रिप मंजरी के लिए पहली बार दुनिया को अपनी नजर से देखने का माध्यम है।

 

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तरुण डुडेजा ने इस फिल्म के डायरेक्शन का जिम्मा संभाला है और उन्होंने पारिजात जोशी के साथ मिलकर फिल्म की कहानी भी लिखी है। जो एक एडवेंचर से भरे सफर के बहाने औरतों के साथ घर से सड़क तक और ऑफिस से लेकर बिस्तर तक में होने वाले भेदभाव पर कड़ी टिप्पणी करती है। फिल्म की खास बात ये है कि वीमेन सेंट्रिक फिल्म होने के बावजूद ये फिल्म रिवायती महिला प्रधान फिल्मों की तरह मर्दों को विलन पोट्रे नहीं करती है। बल्कि फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे एक अनजान सफर पर एक विदेशी मुसाफिर इन चार औरतों को उनकी मंजिल तक पहुंचने में मदद करता है तो वहीं एक सरदार जी राह भटकी मंजरी को जिंदगी की सबसे बड़ी सीख देकर जाते हैं। वो मंजरी से कहते हैं कि- ‘हम इंसान अपनी प्रॉब्लम में टेंशन और पड़ोसी की प्रॉब्लम में सॉल्यूशन ढूंढते हैं, तो कभी खुद के पड़ोसी बन जाओ।’ फिल्म में आपको कई ऐसे दार्शनिक डायलॉग सुनने को मिलेंगे जो गुदगुदाते हुए जिंदगी का फलसफा समझा जाएंगे।

कैसी है एक्टिंग

ऐक्टिंग की बात करें, तो रत्ना पाठक शाह फिल्म की जान हैं। उनका हर सीन, हर डायलॉग दिखाता है कि एक अनुभवी ऐक्टर क्या होता है। वहीं, दीया, फातिमा, संजना भी कहीं से कमतर नहीं लगती। हर एक्टर ने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है। यहां मैं कहूंगी कि इस फिल्म को जिस तरह सन्नाटे के साथ रिलीज किया गया है, उसके बजाय इसे डंके की चोट पर जोर-शोर से रिलीज किया जाना चाहिए था। ताकि ज्यादा से ज्यादा दर्शक इस फिल्म के बारे में जान पाते, क्योंकि धक धक वो महिला प्रधान फिल्म है, जिसे जरूर देखा जाना चाहिए।