नई दिल्ली। सिनेमा जगत से जुड़े कलाकार अपनी फिल्मों में हर तरह के किरदार निभाते हैं। फिर वह किरदार चाहे पॉजिटिव हो या फिर निगेटिव लेकिन असल जिंदगी में हर कलाकार की पहचान लोगों से किये गए व्यवहार से बनती है। अभिनेता सोनू सूद भी ऐसे ही कलाकार हैं। बॉलीवुड से लेकर साउथ इंडस्ट्री तक सोनू ने पर्दे पर विलेन बनकर हर हीरो से पंगा लिया लेकिन फैंस के बीच सोनू की छवि एक सच्चे हीरो की है। आज सोनू सूद अपना 49वां जन्मदिन मना रहे हैं। 30 जुलाई 1973 को जन्मे सोनू पंजाब के मोगा से ताल्लुक रखते हैं। इंजीनियरिंग के स्टूडेंट रहे सोनू सूद ने एक्टिंग में करियर बनाने के लिए जी तोड़ पापड़ बेले हैं। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं सोनू की पर्दे पर हिट विलेन से आम लोगों के बीच सुपर हीरो बनने तक की कहानी।
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मॉडलिंग के बाद एक्टिंग में रखा कदम
सोनू सूद ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मोगा में ही की थी लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए सोनू नागपुर आ गए थे। उन्होंने नागपुर से इलेक्ट्रॉनिक्स स्ट्रीम से इंजीनियरिंग की लेकिन सोनू को ये फील्ड रास नहीं आई और उन्होंने पढ़ाई छोड़ मॉडलिंग की दुनिया में आने का फैसला कर लिया। शुरू से ही सोनू सूद की पर्सनैलिटी शानदार रही यही कारण था कि उन्हें मॉडलिंग के क्षेत्र में काम भी मिलने लगा था। सोनू जब मुंबई आए थे, तब उनकी जेब में महज 5 हजार रुपये थे। हालांकि, उन्होंने अपनी शुरुआत साउथ इंडस्ट्री से की थी।
विलेन बन बनाई पहचान
यूं तो सोनू फिल्मों में हीरो बनने आए थे मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। वक्त के साथ उन्होंने इंडस्ट्री में अपनी पहचान एक दमदार विलेन के रूप में बना ली। सोनू की पहली फिल्म ‘कल्लाझागर’ थी, जो साल 1999 में रिलीज हुई थी और बॉलीवुड में उन्होंने साल 2002 में रिलीज हुई फिल्म ‘शहीद ए आजम’ से शुरुआत की थी। इस फिल्म में अभिनेता ने भगत सिंह का किरदार निभाया था। हालांकि, तेलगु फिल्म ‘अंरुधति’ सोनू सूद के करियर के लिए टर्निंग प्वाइंट बनी। इस फिल्म ने अभिनेता को सिनेमा जगत में असली पहचान दिलाई। ‘दबंग’, ‘सिंबा’ जैसी फिल्मों में विलेन के किरदार में सोनू खूब पसंद किए गए।
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पैनडेमिक में बने लोगों के मसीहा
बेशक फिल्मों में सोनू सूद विलेन बनते हैं लेकिन असल जिंदगी में वह हीरो निकले। कोरोना वायरस जैसे पैनडेमिक में गरीब लोगों की मदद के लिए सोनू आगे आए। जब लॉकडाउन में हजारों लोग शहरों से पैदल अपने गांव जाने पर मजबूर हुए थे तब सोनू सूद ने प्रवासी मजदूरों को बस-ट्रेन की सुविधा देकर उन्हें घर पहुंचाया था। इतना ही नहीं, उन्होंने गरीब लोगों को काम धंधे से लेकर इलाज की व्यवस्था भी की, जिसके बाद लोगों ने उन्हें मसीहा नाम दिया।
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मसीहा की छवि से निगेटिव रोल मिलने हुए बंद?
अपने एक इंटरव्यू में सोनू सूद ने बताया था कि मसीहा वाली छवि के बाद उन्हें निगेटिव किरदार मिलने बंद हो गए हैं। अभिनेता ने कहा था कि कौन रियल लाइफ हीरो को बड़े पर्दे पर एक विलेन के रूप में देखना पसंद करेगा? इंडस्ट्री में अब कोई भी मुझे निगेटिव रोल नहीं दे रहा है। यहां तक कि मेरे साइन किए हुए प्रोजेक्ट्स हैं, उनकी स्क्रिप्ट्स में बदलाव किए जा रहे हैं। मुझे लगता है कि मेरे लिए यह सब कुछ नया है। उम्मीद करता हूं कि यह मेरे लिए बेहतर हो।