Covid kits procurement in UP: AAP को UP में कोविड किट खरीदारी में दिखा ‘घोटाला’, लेकिन दिल्ली में जारी अनियमितताओं पर बंद है आंखें..

Covid kits procurement in UP: इस पूरे मामले की पोल जिस सोशल एंड पॉलिटिकल रिसर्च फांउडेशन (SOCIAL & POLITICAL RESEARCH FOUNDATION) ने खोली है उस पर भरोसा इसलिए भी ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि पद्म श्री राम बहादुर राय (Ram Bahadur Rai) दशकों के अनुभव के साथ इस क्षेत्र में कार्यरत रहे हैं। जनसत्ता के समाचार संपादक के रूप में कार्य करने के बाद, उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है और कई लेखकों के साथ उनके मेंटोर के तौर पर भी जुड़े रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्रियों चंद्रशेखर और वीपी सिंह पर उनकी आत्मकथाएं बहुत हिट रहीं। आपातकाल के दौरान वह जेपी आंदोलन से निकटता से जुड़े थे और संचालन समिति के प्रमुख सदस्य थे। अब इस पूरे मामले पर उनका खुलासा आम आदमी पार्टी सरकार की नींद उड़ाने के लिए काफी है।

Avatar Written by: September 27, 2020 6:01 pm

नई दिल्ली। ‘आप’ के नेताओं ने योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह के द्वारा इस मामले पर लगातार सावल उठाए जा रहे हैं और कोविड-19 किट और अन्य सामग्रियों की खरीददारी में घोटाले का आरोप लगाया जा रहा है। संजय सिंह तो योगी सरकार को घेरते हुए यह तक कह गए कि यूपी के अफसरों ने इस खरीद में घोटाला कर ‘आपदा को अवसर’ में बद लिया। जबकि सही तरीके से देखा जाए तो आपको पता चलेगा कि इस मामले में योगी सरकार ने जो भी फैसला किया उसमें कहीं भी अनियमितता नहीं नजर आ रही। यह हम नहीं एक एनजीओ की तरफ से दोनों राज्य दिल्ली और यूपी के द्वारा की गई कोविड किट खरीददारी को लेकर जो आंकड़े जारी किए गए हैं, उनकी तरफ से दावा किया गया है।

sanjay singh

सोशल एंड पॉलिटिकल रिसर्च फांउडेशन की तरफ से इस मामले की तहकीकात की गई है जिसमें आम आदमी पार्टी और संजय सिंह के द्वारा यूपी सरकार के द्वारा किए गए कोविड किट खरीददारी में घोटाले के जो आरोप लगाए गए हैं उस दावे को सिरे से खारिज किया गया है। एक तरफ भारत कोविड-19 महामारी की गंभीर चपेट में है, जिसके दैनिक आधार पर लगभग 85,000-90,000 मामले सामने आ रहे हैं। इस अभूतपूर्व संकट की घड़ी में देश हर किसी से एक इस घातक वायरस के खिलाफ एक सामूहिक और समन्वित लड़ाई का आह्वान करता है, लेकिन अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) के साथ ऐसा नहीं है। वह और उनकी पार्टी इस मौके पर यूपी में अपनी जमीन तलाशने में लगी है और इसके लिए आम आदमी पार्टी के नेता यूपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले खड़े हैं।

UP कोविड किट खरीदारी में ‘आप’ को दिखा ‘घोटाला’, इस संस्था के आंकड़ों ने खोल दी आप की पोल 

Yogi meeting

पिछले कुछ दिनों में AAP के कुछ नेताओं जिनमें राज्यसभा सांसद संजय सिंह और AAP विधायक सौरभ भारद्वाज सहित कई और नाम शामिल हैं ने यूपी सरकार के खिलाफ बोलते हुए कोविड-19 किट और संबंधित सहायक उपकरणों की खरीद में व्यापक घोटाले का आरोप लगाया। इसी को लेकर एक एनजीओ सोशल एंड पॉलिटिकल रिसर्च फांउडेशन की तरफ से दिल्ली और यूपी में इस महामारी से बचने के लिए स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद के आंकड़े और उसकी खरीद में दामों को लेकर भी एक पूरा रिसर्च किया गया। जिसमें यह पाया गया कि इस तरह की कोई बात यूपी सरकार के द्वारा की गई खरीद में नहीं है जिसका इल्जाम आप और उनके नेताओं के द्वारा लगाया जा रहा है। जबकि इसके साथ ही आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा की गई खरीद में यूपी सरकार से ज्यादा दाम पर समानों की खरीदी की गई है।

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इसी को लेकर सोशल एंड पॉलिटिकल रिसर्च फांउडेशन जिसका संचालन राम बहादुर राय सहित कई बड़े नामीगिरामी पत्रकारों और वकीलों के द्वारा किया जाता है उन्होंने इस पूरे मामले की पोल खोलकर रख दी है। इस संस्था ने साफ तौर पर बता दिया कि यूपी में कोविड किट खरीदारी में कोई अनियमितता नहीं हुई है बल्कि market dynamics की वजह से दामों का अंतर देखने को मिल रहा है। जबकि इसी संस्था ने स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली में स्वास्थ्य विभाग ने Oximeter जो 66320 रुपये की कीमत पर खरीदा, वही वन्य विभाग ने मात्र 3,000 रुपये में खरीदा। ऐसे में संजय सिंह की नजर अपने सरकार के कारनामों पर नहीं गई है। जबकि यूपी में कोरोना के प्रसार की शुरुआत में जब सामानों की मांग ज्यादा थी तब इसकी ज्यादा कीमत देकर खरीद हुई और जैसे-जैसे इसका उत्पादन देश में बढ़ा इसके दामों में वैसे-वैसे कमी देखने को मिली। वहीं दिल्ली में खरीदारी का market dynamics से कोई नाता नहीं, यहां पहले से लेकर हाल तक की गई खरीददारी में दामों का अंतर आपको खुद ही पता नहीं चल पाएगा।

फिर भी इस पूरे मामले पर यूपी में योगी आदित्यनाथ को अनियमितता का थोड़ा सा ही आभास हुआ तो उन्होंने तुरंत इसके जांच के लिए SIT का गठन कर दिया। लेकिन दिल्ली सरकार की तरफ से इस खरीददारी में किसी किस्म की अनियमितता को देखा ही नहीं जा रहा है बल्कि ये माना जा रहा है कि इस खरीददारी को दिल्ली सरकार बड़े पाक-साफ तरीके से कर रही है। जबकि तस्वीर तो कुछ और ही बयां कर रही है।

(Courtesy: Social and Political Research Foundation)

इस पूरे मामले की पोल जिस सोशल एंड पॉलिटिकल रिसर्च फांउडेशन ने खोली है उस पर भरोसा इसलिए भी ज्यादा बढ़ जाता है क्योंकि पद्म श्री राम बहादुर राय दशकों के अनुभव के साथ इस क्षेत्र में कार्यरत रहे हैं। जनसत्ता के समाचार संपादक के रूप में कार्य करने के बाद, उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है और कई लेखकों के साथ उनके मेंटोर के तौर पर भी जुड़े रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्रियों चंद्रशेखर और वीपी सिंह पर उनकी आत्मकथाएं बहुत हिट रहीं। आपातकाल के दौरान वह जेपी आंदोलन से निकटता से जुड़े थे और संचालन समिति के प्रमुख सदस्य थे। अब इस पूरे मामले पर उनका खुलासा आम आदमी पार्टी सरकार की नींद उड़ाने के लिए काफी है।

इस पूरी रिपोर्ट से यह स्पष्ट हो गया है कि उत्तर प्रदेश में कोरोना आपदा के बीच पल्स आक्सीमीटर, इन्फ्रारेड थर्मोमीटर, मास्क, सैनिटाइजर आदि उपकरणों की खरीद में कथित अनियमितता को लेकर वे प्रतिपक्षी झूठे आंकड़े पेश कर सरकार पर सवाल उठाते हैं, जिन्होंने आपदा के शुरुआती काल में बिहार और उत्तर प्रदेश के लाखों मजदूरों एवं कामगारों को अपने प्रदेशों से बाहर भगाया। सरकार पर भले ही सवाल उठ रहे हों, लेकिन इसके विपरीत वास्तविकता यह है कि सरकार ने केंद्र सरकार और उच्चतम न्यायालय द्वारा सुनिश्चित गाइडलाइंस, तय मानकों और निर्धारित कीमतों पर ही पल्स आ, इन्फ्रारेड थर्मोमीटर, मास्क, सैनिटाइजर आदि चिकित्सकीय उपकरणों/सामग्रियों की खरीद की है। बहुत से सरकारी दस्तावेजों को खंगालने पर परत-दर-परत सच्चाई इस रिपोर्ट में दिखी है।

(Courtesy: Social and Political Research Foundation)

सच यह है कि यूपी मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन ने पारदर्शी एवं विधिक प्रक्रिया के तहत निर्धारित मूल्य पर ही खरीद की है। इतना ही नहीं उच्चतम न्यायालय और केंद्र सरकार ने पीपीई किट आदि के लिए गुणवत्ता के जो मानक तय किए थे, उनका भी पूरा ध्यान रखा गया। आरोप लगाने वालों को मार्केट मैकेनिज्म की इतनी समझ नहीं है कि शुरू में जब इन उत्पादों का उत्पादन सामान्य स्तर पर था और अकस्मात मांग बढ़ी तो इनके बाजार मूल्यों में उछाल आया, लेकिन धीरे-धीरे उत्पादन बढ़ा तो दाम भी गिरते चले गये।

चूंकि आरम्भ में दाम ऊंचे थे और सरकार ने आमजन और कोरोना वॉरियर्स की जान बचाने को वरीयता दी। इसलिए उस समय के उपलब्ध मूल्यों पर वस्तुओं की ख़रीद की। जैसे मार्च में इन्फ्रारेड थर्मोमीटर 5298.20 रुपये, अप्रैल में 3366 रुपये और मई में 2538 रुपये में ख़रीदा गया। वहीं पल्स आक्सीमीटर मई और जून में क्रमश: 1392.16 और 1164.80 रुपये में क्रय किया गया। जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ा और दाम गिरते गये, वैसे-वैसे खरीद मूल्य भी नीचे आता गया। सरकार की खरीद प्रक्रिया पारदर्शी रहे, इसलिए जेम पोर्टल एवं ई-टेण्डरिंग प्रक्रिया से ही पल्स आक्सीमीटर, इन्फ्रारेड थर्मोमीटर, मास्क, सैनिटाइजर आदि उपकरणों की खरीद की गई।

कोरोना के बढ़ते दुष्प्रभाव के बीच पीपीई किट की बढ़ी मांग

यूपी मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन के आधिकारिक दस्तावेजों को देखें, तो मई माह में फिंगर टिप पल्स ऑक्सीमीटर की कीमत 1392.16 रुपए प्रति यूनिट थी। इसकी कीमत जून में 1164.80 रुपए प्रति यूनिट रही। इसी तरह मार्च में इंफ्रारेड थर्मोमीटर का मूल्य 5298.20 रुपए था, तो वहीं अप्रैल और मई में यह क्रमशः 3366 रुपए और 2538 रुपए प्रति यूनिट खरीदा गया। पीपीई किट की भी यही स्थिति रही। कोरोना के शुरुआती दिनों में जब पहली बार पीपीई किट खरीदी गई गई तो भारत सरकार की एजेंसी एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड को सीधे ऑर्डर दिया गया। पांच लाख पीपीई किट के लिए 1087.47 रुपए प्रति किट के हिसाब से भुगतान किया गया।

(Courtesy: Social and Political Research Foundation)

वहीं अप्रैल में पांच लाख पीपीई किट के लिए प्रति किट 950 रुपए का भुगतान किया गया। दरसअल, कोरोना के बढ़ते दुष्प्रभाव के बीच पीपीई किट की मांग बढ़ी और आपूर्ति प्रदाता कम्पनियों के बीच मूल्य को लेकर प्रतिस्पर्धा में भी इजाफा हुआ। नतीजतन दाम में गिरावट आ गई। इसी तरह 15 मई को एक पीपीई कवरऑल की कीमत सरकार को 367 रुपए पड़ी, तो 31 जुलाई तक इसका मूल्य 275 रुपए रहा। कुछ ऐसा ही हाल हैंड सैनिटाइजर और एन-95 मास्क का भी रहा।

ई टेंडरिंग और जैम पोर्टल से हुई खरीद

CM Yogi Adityanath

कोरोना की विभीषिका के बीच जब मेडकिल उपकरणों की कमी से पूरा विश्व जूझ रहा था, इस चुनौती के बीच भी उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी ई-टेंडरिंग नीति और जेम पोर्टल से खरीद नीति का अनुपालन सुनिश्चित किया। कोरोना के शुरुआती दिनों के संकटपूर्ण इक्का-दुक्का अवसरों को छोड़ दें तो यूपी मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन ने हर बार जैम पोर्टल से ही क्रय किया जाना सुनिश्चित किया। सामान्यतः सरकार की खरीद नीति के अनुसार जेम ई-पोर्टल के माध्यम से ही खरीद होनी है, इसलिए यहां उपस्थिति कंपनियों और एजेंसियों द्वारा निर्धारित उत्पाद मूल्यों पर ही खरीद की जाती है या फिर ई-टेण्डर की मानक प्रक्रिया द्वारा।