लखनऊ। यूपी में चुनाव होने जा रहे हैं और इससे पहले तमाम नेता और मंत्री बीजेपी का साथ छोड़कर समाजवादी पार्टी यानी सपा में जा रहे हैं। जो मंत्री और विधायक सपा में गए हैं, वे ज्यादातर पिछड़ी जाति के हैं। यूपी में पिछड़ी जातियों का वोट करीब 42 फीसदी है। ऐसे में बीजेपी ने चुनाव में सपा को पटकनी देने के लिए अब नई रणनीति बनाई है। ये रणनीति कुल 403 विधानसभा सीटों में से 300 सीटों के लिए बीजेपी बना रही है। ये 300 सीटें ऐसी हैं जिनमें दलित वोटर जीत और हार तय करते हैं। यानी बीजेपी अब दलित+अगड़ा के जरिए यूपी की सत्ता दोबारा हासिल करना चाहती है। बीजेपी अगर ऐसा कर ले जाती है, तो ये सोशल इंजीनियरिंग का सबसे बड़ा उदाहरण होगा। साल 2007 में बीएसपी सुप्रीमो मायावती भी दलितों और ब्राह्मणों का साथ लेकर यूपी की सत्ता में बैठ चुकी हैं।
यूपी में दलित वोट करीब 21 फीसदी है। इनमें 11.70 फीसदी जाटव हैं। ये वोटर बीएसपी सुप्रीमो मायावती की जाति के हैं और उनके ही कोर वोटर माने जाते हैं। इसके अलावा 3.30 फीसदी पासी, 3.15 फीसदी बाल्मीकि, गोंड और खटीक 1.05 फीसदी, अन्य दलित जातियां भी करीब 1.50 फीसदी हैं। यूपी में 84 सीटें अनुसूचित जाति यानी दलितों के लिए आरक्षित हैं। अब बीजेपी का निशाना जाटव के अलावा अन्य दलित जातियों के वोटरों पर है। ताकि, पिछड़े वर्ग के जो नेता और मंत्री उसका साथ छोड़कर गए हैं, उनके भरोसे सत्ता तक पहुंचने का सपना देख रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को झटका दिया जा सके।
यूपी का इतिहास रहा है कि दलित वोटर जिधर जाता है, उसी पार्टी की सरकार यूपी में बनती है। 2017 में बीजेपी ने 70 आरक्षित सीटें जीती थीं। जबकि, 2012 में समाजवादी पार्टी ने 58 और 2007 में बीएसपी 62 आरक्षित सीटें जीती थीं। सबसे ज्यादा 41 फीसदी दलित वोट सोनभद्र जिले में है। जबकि, कौशांबी में दलित वोटरों की तादाद 36 फीसदी है। कुल मिलाकर अब मार दलित वोटों के लिए मचना तय है। इसमें बीएसपी और बीजेपी के बीच टक्कर होगी। क्योंकि दलित वोटर 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में बीजेपी के लिए यूपी में एकमुश्त वोट देता रहा है।