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Minority Status To Hindus: ‘मामला संवेदनशील, दूरगामी नतीजे होंगे’, हिंदुओं को 8 राज्यों में अल्पसंख्यक का दर्जा देने पर सुप्रीम कोर्ट में बोली मोदी सरकार

साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को रखा था। इस लिस्ट में साल 2014 में जैन धर्म मानने वालों को भी शामिल किया गया था। अश्विनी उपाध्याय की अर्जी में कहा गया है कि 8 राज्यों के तमाम जिलों में हिंदुओं से ज्यादा दूसरे समुदाय के लोग हो गए हैं और बहुसंख्यक होने के बाद भी उनको अल्पसंख्यकों वाले लाभ मिल रहे हैं। जबकि, लाभ हिंदुओं को मिलना चाहिए।

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर समेत देश के 8 राज्यों के कई जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं। इन राज्यों में पंजाब, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और केंद्र शासित लक्षद्वीप भी हैं। बीजेपी के प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने इन सभी जगह हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग वाली अर्जी दी है। इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है। केंद्र की मोदी सरकार ने अदालत को बताया कि हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने का मामला संवेदनशील है और इसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं। सरकार ने इस मामले में अपना रुख साफ करने के लिए कोर्ट से और वक्त मांगा है।

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मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में बताया कि उसने इस मामले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से विचार मंगाए। अब तक पंजाब, मिजोरम, मेघालय, मणिपुर, ओडिशा, उत्तराखंड, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, यूपी, तमिलनाडु, लद्दाख, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव और चंडीगढ़ ने अपनी राय भेजी है। सरकार का कहना है कि इस बारे में अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों से राय लेने की जरूरत है। इसकी वजह मामले का संवेदनशील होना है।

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केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि कुछ राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन ने सुझाव दिया है कि हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से पहले सभी हितधारकों से व्यापक चर्चा की जाए। इसके लिए उन्होंने और ज्यादा वक्त की मांग की है। केंद्र के मुताबिक राज्य सरकारों से कहा गया था कि वे मामले की गंभीरता को देखते हुए तेजी से काम करें। जिससे उनके विचारों को अंतिम रूप दिया जा सके और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय को भी जरूरी कदम उठाने के लिए कहा जा सके। साल 2002 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यकों में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसियों को रखा था। इस लिस्ट में साल 2014 में जैन धर्म मानने वालों को भी शामिल किया गया था। अश्विनी उपाध्याय की अर्जी में कहा गया है कि 8 राज्यों के तमाम जिलों में हिंदुओं से ज्यादा दूसरे समुदाय के लोग हो गए हैं और बहुसंख्यक होने के बाद भी उनको अल्पसंख्यकों वाले लाभ मिल रहे हैं। जबकि, लाभ हिंदुओं को मिलना चाहिए।