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Sudhanshu Trivedi On Constitution Debate In Rajya Sabha : चीन छीन देश का गुलाब ले गया…बीजेपी सांसद सुधांशू त्रिवेदी ने राज्यसभा में क्यों कही ये बात?

Sudhanshu Trivedi On Constitution Debate In Rajya Sabha : संविधान पर चर्चा के दौरान बीजेपी सांसद ने पूर्व कांग्रेस सरकारों की विदेश नीति पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि 1971 में युद्ध के बाद 90 हज़ार से अधिक युद्धबंदियों को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान या आज के बांग्लादेश में छोड़ने के बावजूद हमें तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान यानी आज के पाकिस्तान से अपने 54 युद्धबंदी वापस क्यों नहीं मिल पाए? ये कैसी कूटनीति थी? यह रहस्यपूर्ण यक्ष प्रश्न है।

नई दिल्ली। राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने सोमवार को पूर्व कांग्रेस सरकारों की विदेश नीति पर सवाल उठाया। त्रिवेदी ने कहा कि 16 दिसंबर का दिन बांग्लादेश विजय का दिन है लेकिन ये विचार करने का विषय है कि यह दिन कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व के लिए गर्व का दिन है या ग्लानि का। क्योंकि कांग्रेस के वर्तमान नेतृत्व को उसी पाकिस्तान से पुरज़ोर और भरपूर समर्थन मिल रहा है जिसके 1971 में टुकड़े करने का दावा वो करते हैं। बीजेपी सांसद ने कहा कि इससे और भी बड़ा गंभीर प्रश्न है कि 90 हज़ार से अधिक युद्धबंदियों को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान या आज के बांग्लादेश में छोड़ने के बावजूद हमें तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान यानी आज के पाकिस्तान से अपने 54 युद्धबंदी वापस क्यों नहीं मिल पाए? ये कैसी कूटनीति थी? यह रहस्यपूर्ण यक्ष प्रश्न है। पीओके का समाधान नहीं कर पाए।

पंडित नेहरू के लिए बोलते हुए उन्होंने कहा कि ‘चीन छीन देश का गुलाब ले गया, ताशकंद में वतन का लाल सो गया, ये सुलह की शक्ल को संवारते रहे और जीतने के बाद बाजी हारते रहे।‘ सुधांशु त्रिवेदी ने गांधी परिवार पर निशाना साधते हुए कहा इंदिरा गांधी की आत्मा जहां कही भी होगी तो अचंभित और स्तब्ध होगी। उनको मैं इन्हीं शब्दों में श्रद्धांजलि देता हूं, ‘बूढ़ा वंश इंदिरा जी का उपजा ऐसा लाल, इज्जत सारी डूबो गई है ऐसा किया कमाल।‘ कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के मनुस्मृति वाले बयान पर पलटवार करते हुए सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि आज मामला मनुस्मृति बनाम संविधान का नहीं है, बाबा साहेब के संविधान की पहचान और संविधान पर शरिया के निशान का है। उन्होंने कहा कि 1967 तक देश में सारे चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की व्यवस्था उस समय खत्म हुई जब इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी को चुनाव हरवा दिया।