
नई दिल्ली। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को लेकर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। कांग्रेस का कहना है कि यह कानून देश में धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए बेहद जरूरी है, जो संविधान की एक बुनियादी विशेषता है। कांग्रेस ने अपनी याचिका में पहले से दायर याचिकाओं को चुनौती दी है और कहा है कि इस कानून में किसी भी प्रकार का बदलाव भारत के सांप्रदायिक सद्भाव और धर्मनिरपेक्षता के ताने-बाने को नुकसान पहुंचा सकता है।
भाजपा नेता की याचिका के खिलाफ कांग्रेस ने दी चुनौती
इससे पहले भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर कर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की वैधता को चुनौती दी थी। इसके जवाब में कांग्रेस ने अपनी याचिका में कहा है कि यह चुनौती दुर्भावनापूर्ण है और धर्मनिरपेक्षता के स्थापित सिद्धांतों को कमजोर करने का प्रयास है। कांग्रेस ने इस कानून के संवैधानिक और सामाजिक महत्व को रेखांकित किया और कहा कि इसका उद्देश्य सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना और देश की एकता व अखंडता को मजबूत करना है।
BREAKING: Congress moves Supreme Court to defend the Places of Worship Act, 1991🤯
~ This shields structures from Historical Scrutiny. Open DEFIANCE of Hindu temples buried under invaders’ monuments!
Vote bank politics at its PEAK! pic.twitter.com/KK6G0ljaAs
— The Analyzer (News Updates🗞️) (@Indian_Analyzer) January 16, 2025
कांग्रेस ने दी दलीलें
कांग्रेस का कहना है कि यह अधिनियम किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता और धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को मजबूत करता है। पार्टी ने तर्क दिया कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का उद्देश्य धार्मिक स्थलों में बदलाव को रोककर देश में शांति और सद्भाव बनाए रखना है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है?
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के अनुसार, 15 अगस्त 1947 से पहले मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति को जस का तस बनाए रखा जाएगा। इस कानून का उद्देश्य धार्मिक स्थलों में बदलाव को रोकना है, ताकि सांप्रदायिक विवाद न बढ़े। हालांकि, अयोध्या मामले को इस कानून से अलग रखा गया था।
अगली सुनवाई कब?
इस मामले पर अब 17 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। कांग्रेस ने अपील की है कि इस कानून को बरकरार रखते हुए भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की रक्षा की जाए।