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Central Vista Project: सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर स्टे से दिल्ली हाईकोर्ट का इनकार, याचिकाकर्ता पर भी लगाया जुर्माना

Central Vista Project: सेंट्रल विस्टा के निर्माण कार्य पर रोक लगाने से दिल्ली हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है। साथ ही हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

नई दिल्ली। सोमवार को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट मामले (Central Vista Project) में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi highcourt ) में सुनवाई हुई। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है। सेंट्रल विस्टा के निर्माण कार्य पर रोक लगाने से दिल्ली हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया है।  मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा, “यह राष्ट्रीय महत्व की एक आवश्यक परियोजना है। जनता इस परियोजना में बहुत रुचि रखती है।” अदालत ने याचिकाकतार्ओं पर एक लाख रुपये का जुमार्ना भी लगाया, यह देखते हुए कि याचिका एक वास्तविक जनहित याचिका नहीं है, बल्कि एक ‘प्रेरित’ याचिका है।

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कोर्ट ने कहा कि निर्माण समय पर पूरा करना होगा। अदालत ने कहा, “एक बार जब वर्कर साइट पर रह जाते हैं और सभी सुविधाएं प्रदान की जाती हैं और कोविड-19 व्यवहार का पालन किया जाता है, तो परियोजना को रोकने का कोई कारण नहीं है।”

केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आरोप लगाया था कि याचिका काम को रोकने के लिए एक ‘मुखौटा’ है। शापूरजी पलोनजी एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड, जिसे टेंडर दिया गया है, ने भी जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि इसमें वास्तविक कमी है, और निर्माण फर्म अपने कर्मचारियों की देखभाल कर रही है।

Central Vista project
याचिकाकतार्ओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने प्रस्तुत किया था कि याचिकाकर्ता केवल साइट पर श्रमिकों की सुरक्षा में रुचि रखते है और इस परियोजना की तुलना द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन कंसंट्रेटर शिविर ऑशविट्ज से की थी। याचिकाकर्ताओं, अन्या मल्होत्रा और सोहेल हाशमी ने राजधानी में कोविड-19 की स्थिति और संभावित सुपर स्प्रेडर के रूप में निर्माण गतिविधियों से उत्पन्न खतरे की पृष्ठभूमि में सेंट्रल विस्टा की निर्माण गतिविधियों पर रोक लगाने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी को पहले ही परियोजना को हरी झंडी दे दी थी, क्योंकि उसने परियोजना के लिए भूमि उपयोग और पर्यावरण मानदंडों के उल्लंघन का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर विचार करने से इनकार कर दिया था।