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Devasthanam Board: चुनाव से पहले CM धामी ने देवस्थानम बोर्ड को किया भंग, सियासी पंडित बोले- मास्टरस्ट्रोक है ये

Devasthanam Board: इससे पहले उत्तराखंड सरकार ने इस पर फैसला करने से गुरेज करती हुई दिखी। लेकिन सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस भंग करके यूं समझ लीजिए बड़ा दांव चल दिया। पिछले कई सालों से साधु-संतों की तरफ से इसे भंग करने की मांग की जाती रही है। वहीं चुनाव से पहले इसे भंग करके पुष्कर सिंह धामी ने बड़ा दांव चल दिया है।

नई दिल्ली। अमूमन चुनाव से पहले एक चतुर सियासी सूरमा की यही कोशिश रहती है कि वे ऐसे दांव चले जिससे सारी सियासी फिजा उसके पक्ष में हो जाए जिसका फायदा उसे आने वाले चुनावी दंगल में मिले। कुछ ऐसा ही दांव उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव से पहले चला है। सियासी प्रेक्षकों की मानें तो इसका फायदा उन्हें आने वाले चुनाव में मिलेगा। उन्होंने जिस तरह अपने कार्यकाल में देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया है, उसे अब सियासी गलियारों में लोग आने वाले चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। बता दें कि देवस्थानम बोर्ड की शुरुआत त्रिवेंद्र सिंह सरकार के कार्यकाल में शुरू की गई थी जिसके बाद इसको भंग करने की मांग पिछले कई सालों से कई साधु संतों की तरफ से की जाती रही।

लेकिन इससे पहले उत्तराखंड सरकार ने इस पर फैसला करने से गुरेज करती हुई दिखी। लेकिन सीएम पुष्कर सिंह धामी ने इस भंग करके यूं समझ लीजिए बड़ा दांव चल दिया। पिछले कई सालों से साधु संतों की तरफ से इसे भंग करने की मांग की जाती रही है। वहीं चुनाव से पहले इसे भंग करके सीएम पुष्कर सिंह धामी ने बड़ा दांव चल दिया है। सरकार के इस फैसले के बाद से साधु-संतों में खुशी की लहर है। साधु-संतों प्रदेश सरकार के इस फैसले की सराहना करते हुए नजर आ रहे हैं। गौर करने की बात है कि देवभूमि में कई सरकारें आई और गई, लेकिन आज तक किसी भी सरकार ने इस पर कोई उचित फैसला लेना मुनासिब न समझा।

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पारित किया था अधिनियम 

आपको बता दें कि त्रिवेंद्र सिंह के कार्यकाल में देवस्थानम बोर्ड का गठन किया गया था। जिसके अंतर्गत प्रदेश के 51 मंदिरों के प्रबंधन का दायित्व बोर्ड के पास था। हालांकि चारों हिमालयी धामों-बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के तीर्थ पुरोहित लगातार देवस्थानम बोर्ड का विरोध कर रहे थे। विरोध करने वाले पुरोहितों का कहना था कि वोर्ड का गठन करने से उनके अधिकारों का हनन हो रहा है। लिहाजा इसे भंग किया जाए। पिछले दो वर्षों से पुरोहित समाज की तरफ से इसे भंग करने की मांग उठाई जा रही थी।