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दक्षिण में भी नहीं नजर आता कांग्रेस का भविष्य !

आंध्र प्रदेश की यदि बात की जाए तो भी स्वतंत्रता के उपरान्त एवं भाषाई आधार पर राज्यों के गठन के उपरान्त कांग्रेस की ही सत्ता वहां पर थी। वर्ष 1953 से लेकर 1983 तक लगातार कांग्रेस की ही सरकार रही थी। उसके बाद कांग्रेस की राजनीति से क्षुब्ध होकर लोकप्रिय अभिनेता एनटी रामा राव ने तेलुगुदेशम पार्टी का गठन किया। चूंकि कांग्रेस लगातार अपने

लोकसभा चुनावों की घोषणा आज होने की संभावना है। चुनावों के बाद यह भी तय हो जाएगा कि अंतत: किसकी बात पर जनता ने विश्वास किया और किसे नकारा। यह राष्ट्रीय दलों की साख की भी बात होगी क्योंकि पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा है, उत्तर भारत से तो उसे जनता नकार ही रही है, दक्षिण से भी स्थिति बहुत आशान्वित करने वाली दिखाई नहीं दे रही है।
राहुल गांधी के लिए केरल से वायनाड सीट को चुना गया है और यह भी पूरी संभावना है कि वह वहीं से जीत जाए क्योंकि वहां पर अल्पसंख्यक मतदाता अधिक हैं. इसी कारण राहुल गांधी के लिए यह सीट सुरक्षित मानी जाती है।
भारत के दक्षिणी राज्यों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल पांच राज्य आते हैं तथा साथ ही यहां पर दो केंद्र शासित क्षेत्र जैसे पुद्दुचेरी एवं लक्षद्वीप भी हैं।
वर्तमान में दक्षिण के राज्यों में तेलंगाना एवं कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ और वाम दलों के गठबंधन एलडीएफ के बीच लड़ाई रहती है, तो तमिलनाडु में कांग्रेस डीएमके की सहयोगी बनकर रह गई है। आंध्रप्रदेश में जहां उसकी सरकार हुआ करती थी, वहां पर भी उसकी स्थिति कुछ ख़ास नहीं है।
ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि एक समय में भारत में निर्विघ्न शासन करने वाली कांग्रेस दक्षिण से भी क्यों सिमटती जा रही है ? हालांकि तेलंगाना में कांग्रेस की जीत को लेकर यह कहा जा सकता है कि ऐसा कुछ नहीं है क्योंकि तेलंगाना और कर्नाटक दोनों ही राज्यों में पार्टी की सरकारें हैं। परन्तु तेलंगाना में कांग्रेस की जीत को लेकर यह भी कहा गया कि यह जीत कांग्रेस की जीत नहीं है परन्तु बीआरएस की हार है।

वर्ष 2023 में जब तेलंगाना में तीसरे विधानसभा चुनाव संपन्न हुए तो कांग्रेस पार्टी के रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। चुनावों के नतीजों को लेकर बीबीसी की एक रिपोर्ट में इसे विकल्पहीनता की जीत बताया गया था। इस रिपोर्ट में लिखा गया था कि “तेलंगाना में भाजपा नहीं है, इसलिए जब लोगों ने बीआरएस के खिलाफ़ वोट देने का फ़ैसला किया, तो उन्हें लगा कि वो कहां जाएं ? वो कांग्रेस के पास गए। उनके पास यही विकल्प उपलब्ध था।”
और इस जीत के विषय में रेवंत रेड्डी का अतीत भी खंगाला जा रहा है जो कांग्रेसी अतीत नहीं है। इन चुनावों में कांग्रेस को विजय दिलाने वाले रेवंत रेड्डी छात्र जीवन में एबीवीपी से जुड़े रहे थे और उनकी राजनीतिक यात्रा पहले स्वतंत्र एवं उसके बाद तेलुगुदेशम पार्टी के साथ आरम्भ हुई थी। वर्ष 2017 में वह कांग्रेस में शामिल हुए थे। अत: कुछ लोगों के अनुसार यह जीत कांग्रेस की न होकर रेड्डी की अधिक थी।
आंध्र प्रदेश की यदि बात की जाए तो भी स्वतंत्रता के उपरान्त एवं भाषाई आधार पर राज्यों के गठन के उपरान्त कांग्रेस की ही सत्ता वहां पर थी। वर्ष 1953 से लेकर 1983 तक लगातार कांग्रेस की ही सरकार रही थी। उसके बाद कांग्रेस की राजनीति से क्षुब्ध होकर लोकप्रिय अभिनेता एनटी रामा राव ने तेलुगुदेशम पार्टी का गठन किया। चूंकि कांग्रेस लगातार अपने मुख्यमंत्रियों को बदलती आ रही थी, इस राजनीतिक अस्थिरता जनता भी त्रस्त थी, अत: एक विकल्प के रूप में तेलुगुदेशम पार्टी का गठन किया गया।
हालांकि वाईएसराजशेखर रेड्डी के रूप में कांग्रेस को एक ऐसा नेता मिला जिनके नेतृत्व में वर्ष 2004 में लगभग मर चुकी कांग्रेस को प्रदेश में दोबारा जीवित किया और फिर वर्ष 2009 में लगातार दूसरी बार चुनाव जीता। वर्ष 2009 में ही उनकी एक दुर्घटना में मृत्यु होने के बाद के रोसैया ने आंध्रप्रदेश का कार्यभार सम्हाला। कांग्रेस की सरकार तो बनी रही परन्तु जनता दूर होती रही क्योंकि जनता ने वोट वाई राजशेखर रेड्डी को दिया था, कहीं न कहीं कांग्रेस को नहीं। वर्ष 2014 के चुनावों में एक बार फिर तेलुगुदेशम पार्टी की जीत हुई उसके बाद वर्ष 2019 के चुनावों में वाईएसआर रेड्डी के नाम पर बनी कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी ने चुनावों में जीत हासिल की।
तमिलनाडु की राजनीति पर द्रविड़ राजनीति वाली पार्टियों का ही एकाधिकार पिछले कुछ वर्षों से चलता चला आ रहा है। कांग्रेस वहां कामराज के नेतृत्व में 1950 और 60 के दशक में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति बनी रही। ये वही के. कामराज थे, जिन्होनें इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री बनना सुनिश्चित किया था। परन्तु उसके बाद कांग्रेस वहां पर भी नेपथ्य में जाने लगी। जस्टिस पार्टी से अलग हुए सीएन अन्नादूरई ने वर्ष 1949 में इस द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की स्थापना की थी। वर्ष 1967 में डीएमके की सरकार बनी और उसके बाद वर्ष 1972 में एम जी रामचंद्रन ने एक और द्रविड़ पार्टी अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम अर्थात एआईडीएमके की स्थापना की और उसके बाद से तमिलनाडु की राजनीति इन्हीं दो दलों के बीच सिमट कर रह गई है। के. कामराज की कांग्रेस अब एक छोटा सहयोगी बनकर ही वहां पर संतुष्ट है।
दक्षिण के राज्यों में कांग्रेस का नेपथ्य में जाना अचानक से नहीं हुआ है, बल्कि इसके पीछे कई वर्ष लगे हैं। आजादी के बाद जनता ने कांग्रेस पर विश्वास व्यक्त किया था, परन्तु कांग्रेस द्वारा लगातार प्रांत के नेतृत्व को कमजोर करना और मुख्यमंत्री के स्तर पर बार-बार प्रयोग करना कहीं न कहीं जनता को पसंद नहीं आया, साथ ही दिल्ली में बैठकर शासन चलाने वाली आदत से भी स्थानीय नेतृत्व तथा आम जनता में असंतोष की स्थिति उत्पन्न हुई। यही कारण है कि कांग्रेस आम जनता से दूर होती चली गई और सिमटती गई। उत्तर से दक्षिण तक सिमटती कांग्रेस का आगे भी बहुत उज्ज्वल भविष्य हाल फिलहाल तो नजर नहीं आ रहा.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत की कुल 130 लोकसभा सीटों में कांग्रेस के खाते में 28 सीटें आई थीं, जिनमें केरल में उसकी अपने दम पर 15 सीटें आई थीं. कर्नाटक में उसे आठ सीटों का नुकसान हुआ था और केवल एक ही सीट उसके खाते में आई थी. तमिलनाडु में उसे 8 सीटें मिलीं थीं एवं तेलंगाना में उसे तीन सीटें मिली थीं, एक पुद्दुचेरी की सीट थी. आँध्रप्रदेश में उसका खाता तक नहीं खुला था. अभी तक जो भी ओपिनियन पोल 2024 के चुनावों को लेकर आए हैं, उनमें भी कमोबेश ऐसे ही परिणामों का अनुमान लगाया जा रहा है. हालांकि आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में इंडी गठबंधन को नुकसान की आशंका जताई जा रही है और तमिलनाडु में भी डीएमके को ही बढ़त बताई जा रही है, अब इसमें कांग्रेस की कितनी सीटें आती हैं, यह देखना होगा !

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं।