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Gomti River Front Scam: अखिलेश यादव की बढ़ी मुश्किलें, गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में CBI ने की बड़ी कार्रवाई

mti Nadi River Front case: इस मामले (गोमती रिवर फ्रंट) को लेकर CBI की एंटी करप्शन विंग ने बड़ी कार्यवाई करते हुए उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल समेत 40 से अधिक स्थानों पर एक साथ छापेमारी की। इतना ही नहीं लगभग 190 लोगों के खिलाफ मामले (FIR) दर्ज किए गए हैं।

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ी गई है। दरअसल अखिलेश यादव की सरकार के कार्यकाल के दौरान गोमती रिवर फ्रंट (Gomti River) घोटाले केस में सीबीआई (CBI) ने बड़ी कार्रवाई की है। गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में सीबीआई की एंटी करप्शन टीम ने उत्तर प्रदेश के साथ ही पश्चिम बंगाल (West Bengal) और राजस्थान (Rajasthan) के कई जिलों में छापा मारा है।

cbi

जांच से जुड़े सीबीआई के एक सूत्र ने आईएएनएस को लेकर जानकारी देते हुए कहा कि एजेंसी की कई टीमें उत्तर प्रदेश में 40 से ज्यादा जगहों पर तलाशी ले रही हैं। सूत्रों की मानें तो सीबीआई द्वारा परियोजना में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए एक नया मामला दर्ज करने के बाद तलाशी ली जा रही है। उन्होंने कहा कि आगरा में भी तलाशी चल रही है। इस मामले में दर्ज की गई यह दूसरी प्राथमिकी है।

40 से ज्यादा जगहों पर एक साथ CBI का छापा

आपको बता दें, इस मामले (गोमती रिवर फ्रंट) को लेकर CBI की एंटी करप्शन विंग ने बड़ी कार्यवाई करते हुए उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल समेत 40 से अधिक स्थानों पर एक साथ छापेमारी की। इतना ही नहीं लगभग 190 लोगों के खिलाफ मामले (FIR) दर्ज किए गए हैं।

gomtiriver front

सीबीआई ने दर्ज की है दूसरी FIR

उत्तर प्रदेश में आज लखनऊ के अलावा सीबीआई ने नोएडा, गाज़ियाबाद, बुलंदशहर, रायबरेली, सीतापुर, इटावा और आगरा में भी छापेमारी की है। इस छापेमारी 3 चीफ इंजीनियरों के अलावा 6 सहायक इंजीनियरों के घरों में भी हुई। दरअसल, सीबीआई ने दअखिलेश यादव सरकार (Akhilesh Govt) के दौरान गोमती नदी परियोजना में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए ये दूसरी FIR दर्ज की है।

Akhilesh Yadav

सपा सरकार में हुआ गोमती रिवर फ्रंट घोटाला

सपा सरकार के दौरान हुए इस गोमती रिवर फ्रंट घोटाले को लेकर साल 2017 में योगी सरकार की ओर से जांच का आदेश देते हुए न्यायिक आयोग का गठन किया गया। जांच के दौरान ये बात सामने आई थी की डिफॉल्टर कंपनी को ठेका देने के लिए टेंडर की शर्तों में ही बदलाव कर दिया गया था। चीफ इंजीनियर के अंडर इस पूरे प्रोजेक्ट के लिए तकरीबन 800 टेंडर निकाले गए थे। लखनऊ रिवर फ्रंट के लिए अखिलेश सरकार ने 1513 करोड़ रुपये को मंजूरी दी गई थी लेकिन बावदूद इसके सिर्फ 60 फीसदी काम ही किया गया था. 95 फीसदी बजट खर्च के बाद भी ठेका कंपनियों ने काम पूरा नहीं किया था। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर ही यूपी सरकार ने केंद्र से सीबीआई जांच की मांग की थी। जिसके बाद से सीबीआई इस घोटाले के बड़े जिम्मेदारों पर अपना शिकंजा कस रही है।