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Jammu-Kashmir : जानिए कौन है मसरत आलम, जिसे बनाया गया है हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का नया मुखिया

Jammu-Kashmir: मसरत आलम भट्ट की पहचान देश विरोधी कट्टरपंथी नेता के रूप में की जाती है। जिन्हें अलगाववादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का करीबी भी  माना जाता है। साल 2008-2010 के बीच मसरत पर पत्थरबाजी के आतंक की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था।

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी दलों के गठबंधन ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने मसरत आलम भट को नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया है। बता दें कि हाल ही में सैयद अली शाह गिलानी का निधन हो गया था, जिसके बाद ये फैसला लिया गया। मसरत आलम कश्मीर का कट्टरवादी चेहरा है जो पिछले कई सालों से जेल में कैद है। एपीएचसी ने श्रीनगर में एक बैठक का आयोजन जिसमें यह घोषणा करते हुए शब्बीर अहमद शाह और गुलाम अहमद गुलजार हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष बनाने का फैसला लिया। वहीं मौलवी बशीर अहमद इरफानी एपीएचसी में महासचिव के रूप में कार्य करते रहेंगे।

कौन हैं मसरत आलम भट्ट 

मसरत आलम भट्ट की पहचान देश विरोधी कट्टरपंथी नेता के रूप में की जाती है। जिन्हें अलगाववादी हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का करीबी भी  माना जाता है। साल 2008-2010 के बीच मसरत पर पत्थरबाजी के आतंक की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था। जिसके बाद उस पर कार्रवाई करते हुए जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 10 लाख का रुपये का इनाम भी रखा था। इतना ही नहीं मसरत आलम पर खिलाफ युद्ध छेड़ने के साथ-साथ अलावा दर्जनों मामले दर्ज किए हैं। खबरों कि मानें तो मसरत आलम सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए देश विरोधी विचारों को फैलाने का काम भी करता था। वो मस्जिदों में एंटी-इंडिया की ऑडियो सीडी बांटकर लोगों को भड़काया करता था।

बात अगर मसरत की पढ़ाई की करें तो वह साइंस में ग्रेजुएट किए हुए है, जो फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलता है। साल 1990 में मसरत को हिजबुल्लाह उग्रवादी संगठन का कमांडर भी बनाया गया था। साल 2008 में अमरनाथ भूमि आंदोलन के दौरान करीब 100 युवक पत्थरबाजी के दौरान मारे गए थे। वह उस आंदोलन का मास्टरमाइंड था। उसे चार महीनों की तलाश के बाद अक्टूबर 2010 में पकड़ा गया था। मसरत पर संवेदनशील इलाकों में भड़काऊ भाषण देने के कई आरोप भी लगाए थे।

साल 2010 में दिए एक मीडिया इंटरव्यू में उसने बताया था कि वो बचपन से ही पत्थर फेंक कर विरोध जताया करता था। उसने बताया कि कश्मीर में साल 1980 से पत्थर फेंककर विरोध जताया जाता है। ये श्रीनगर में एक आम बात थी, उसने बताया कि सर्दियों में हम कंगरी फेंका करते थे।